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जांच से मत भागिए कोड़ाजी!

-प्रभात खबर- कोड़ाजी से प्रभात खबर का निजी विवाद नहीं है. हां, कोड़ाजी के मुख्यमंत्रित्व काल में जो अनियमितताएं हुईं, भ्रष्टाचार के जो गंभीर मामले सामने आये, उन्हें प्रभात खबर उठाता रहा है. अब ये मामले अदालत और निगरानी में हैं. अखबार का फर्ज है कि सत्ता के दुरुपयोग की चीजें वह जनता तक पहुंचाये. […]

-प्रभात खबर-

कोड़ाजी से प्रभात खबर का निजी विवाद नहीं है. हां, कोड़ाजी के मुख्यमंत्रित्व काल में जो अनियमितताएं हुईं, भ्रष्टाचार के जो गंभीर मामले सामने आये, उन्हें प्रभात खबर उठाता रहा है. अब ये मामले अदालत और निगरानी में हैं. अखबार का फर्ज है कि सत्ता के दुरुपयोग की चीजें वह जनता तक पहुंचाये. यह काम प्रभात खबर ने किया. सिर्फ श्री कोड़ा के कार्यकाल का ही नहीं, उसके पहले भी और उसके बाद के भी गलत कामों को प्रभात खबर ने उजागर किया.

ऐसे मामलों को कुछेक लोग अदालत ले गये. प्रभात खबर मानता है कि मुद्दों को सामने लाना अखबार का काम है. उसके आगे अन्य लोकतांत्रिक संस्थाएं ऐसे मामलों को देखती हैं. जांचती हैं. अब अदालतें या निगरानी अपना काम कर रहे हैं, तो कोड़ाजी उन पर तो बौखला नहीं सकते. उन्हें सॉफ्ट टारगेट प्रभात खबर मिला.

आरोप-1: प्रभात खबर ईमानदारी की बात करता है, लेकिन प्रभात खबर ने संपत्ति का ब्योरा एकपक्षीय छापा.

जवाब – आय से अधिक संपत्ति के आरोप में मधु कोड़ा सहित अन्य मंत्रियों के घर छापा पड़ा. जिन पूर्व मंत्रियों के घर छापा पड़ा, उनकी बातें भी प्रभात खबर में उसी दिन पहले पेज पर छपीं. क्या यह एकपक्षीय है? रही बात ब्योरा कि तो सभी पूर्व मंत्रियों और श्री कोड़ा के घर से मिले दस्तावेज और ब्योरा को प्रभात खबर ने छापा. पूर्व मंत्री बंधु तिर्की के घर से संपत्ति से संबंधित कोई दस्तावेज और सामान नहीं मिले, यह सूचना भी छपी. बंधु तिर्की, भानु प्रताप शाही और कमलेश सिंह के बयान भी उसी दिन पहले पेज पर छपे. कोड़ाजी को प्रभात खबर से एलर्जी है.

आज से नहीं. शुरू से. कारण वह जानें. इसलिए उनसे भी संपर्क करने की कोशिश की गयी. पर उन्होंने बात नहीं की. 26 जुलाई को संवाददाता सम्मेलन में कोड़ाजी ने प्रभात खबर पर और जिस कंपनी का प्रभात खबर से कोई फंक्शनल रिश्ता नहीं है, उस पर भी जो बातें कीं, वह भी प्रभात खबर में 27 जुलाई को छपी. अब यह पाठक तय करें कि क्या प्रभात खबर एक पक्षीय है? प्रभात खबर फिर स्पष्ट करना चाहेगा कि यह किसी का व्यक्तिगत मामला नहीं, भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रसंग है. प्रभात खबर आज से नहीं, शुरू से जिनके बारे में जो गंभीर तथ्य छापता है, उनका भी पक्ष छापता रहा है, क्योंकि वह पत्रकारिता के कुछ वसूलों के अनुसार चलता है. वह निर्दलीय नहीं है, जिसके न कोई विचार हैं, न ठौर. जब जहां लाभ मिला, लुढ़क गये. फिर भी कोड़ाजी से प्रभात खबर का एक मामूली अनुरोध. प्रभात खबर के खिलाफ जो-जो आरोप उन्होंने लगाये हैं, उसकी सीबीआइ या जिस किसी अन्य संस्था से कोड़ाजी चाहें, जांच के लिए प्रभात खबर न्यायालय में लिख कर देने को तैयार है. पर एक मामूली शर्त है. श्री कोड़ा, विनोद सिन्हा और संजय चौधरी के कामकाज, संबंध, राजसत्ता के दुरुपयोग की सीबीआइ जांच के लिए वह तैयार हों. प्रभात खबर सार्वजनिक जीवन में है और श्री कोड़ा भी सार्वजनिक जीवन में हैं. इसलिए यह जांच सबसे बेहतर समाधान है. विश्वास है, यह मामूली शर्त कोड़ाजी को स्वीकार्य होगा.

जहां तक इस निगरानी छापे में संपत्ति मिलने के विवरण का प्रसंग है, उन्होंने कहा कि गलत सूचना नहीं छापी जाये. सूचना गलत है, तो उसे भी प्रचारित नहीं करनी चाहिए. एकपक्षीय सूचना क्यों?

मधु कोड़ा के यहां जब्त चीजों के ब्योरे अन्य अखबारों में भी छपे, पर जमीन की खबर छपने पर खासतौर से प्रभात खबर पर वह बौखलाये. बता दें कि यह खबर अन्य अखबारों में भी छपी हैं. एक अखबार में 10 एकड़ की सूचना है. दूसरे में जमीन के कागजात मिले, यह उल्लेख है.

पर श्री कोड़ा सिर्फ और सिर्फ प्रभात खबर पर ही जमीन की सूचना पर बौखलाते हैं, क्योंकि उनके कार्यकाल के गलत कामों और उनसे जुड़े कुछ अप्रिय तथ्यों को प्रभात खबर ने उठाया है. सार्वजनिक किया है. यह दिखाता है कि वही सूचना दूसरे अखबारों में छपती है, तो कोड़ाजी नहीं बौखलाते हैं, पर वही चीज प्रभात खबर में पढ़ कर भड़क जाते हैं. बता दें, जो सूचनाएं निगरानी छापे के बाद मिलीं, वे सभी अखबारों में छपी हैं. जिस दिन कोर्ट में निगरानी के कागजात प्रस्तुत होंगे, तथ्यात्मक विवरण स्पष्ट होगा, फिर वे तथ्य छपेंगे.

आरोप – 2 : जब से मुख्यमंत्री बना, तब से मान-सम्मान को ठेस पहुंचाने का काम किया जा रहा है.

जवाब – कोड़ाजी की प्रभात खबर से नाराजगी उनके मुख्यमंत्री बनने से पहले से है. जिस दिन प्रभात खबर में महत्वपूर्ण ढंग से चाईबासा में सोनालिका ट्रैक्टर्स में घोटाले का प्रकरण, विनोद सिन्हा का रिश्ता और सत्ता का संरक्षण, यह सब छपा, उस दिन से कोड़ाजी अखबार से बेरुख हैं. सोनालिका ट्रैक्टर्स जांच रोकने के लिए क्या कुछ हुआ है, वह अलग अध्याय है.

फिर भी कोड़ाजी को बताना चाहिए कि वह कौन सी खबर है, जिससे उनके मान-सम्मान को ठेस पहुंची? हां, कोड़ाजी मुख्यमंत्री रहे हैं. उनके सरकार के कामकाज पर लगातार खबरें छपी हैं. अनियमितता और भ्रष्टाचार को सामने लाने का काम प्रभात खबर ने किया. हां, विनोद सिन्हा, संजय चौधरी जैसे लोगों से सत्ता की नजदीकी, प्रभाव, सिस्टम पर कब्जा, प्रभुत्व और कारनामे जरूर छपे. महज दो साल में सत्ता के दुरुपयोग से करोड़पति-अरबपति बनने का चमत्कार, पाठकों को जरूर बताया गया. क्या इससे कोड़ाजी के मान-सम्मान को ठेस पहंचा है?

आरोप -3 : पीआइएल हुआ, तो बड़े-बड़े अक्षरों में छपा, देखिए भ्रष्ट का कारनामा, देखिए उनके करामात.

जवाब – जिन-जिन लोगों के खिलाफ पीआइएल हुआ, उनसे संबंधित खबरें प्रभात खबर में छपीं. इसमें तरह-तरह के राजनेता, अफसर हैं. भाजपा और कांग्रेस के प्रभावी लोग भी हैं. प्रभात खबर में सबकी खबर छपी. हां, बड़े या छोटे अक्षरों में, यह परख कोड़ाजी की निजी है. हां, कोड़ाजी ने आरोप में जो शब्द इस्तेमाल किये हैं, वे नहीं छपे हैं. हां, कोड़ाजी की सरकार, उनके कामकाज पर प्रभात खबर

में लगातार तथ्यात्मक चीजें छपीं. इनमें से कुछेक मामले कुछ लोग अदालत में ले गये.

पीआइएल कीजिन याचिकाओं के दस्तावेजों के प्रति प्रभात खबर आश्वस्त लगा, उनको प्रमुखता से छापा. जिन दस्तावेजों को लेकर उसके मन में संशय रहा, उस पर भी उसने छोटी सूचना दी. कोड़ाजी एक पीआइएल के बारे में कह रहे हैं, जिसकी छोटी सूचना प्रभात खबर में छपी है. उसकी पूरी सुनवाई के बाद उसकी प्रामाणिक चीजें मिलेंगी, वह भी छापेंगे. उसमें कैसे और क्या कागजात हैं यह भी.

आरोप -4 : कोई किसी के साथ बाहर घूमे, तो उसका पार्टनर नहीं बन जाता?

जवाब – यह सही है कि कोई किसी के साथ घूमने से बिजनेस पार्टनर नहीं बन जाता, पर विनोद सिन्हा मामले में तबके मुख्यमंत्री मधु कोड़ा का रोज-रोज बदलता बयान काबिले गौर है. पहले तो उन्होंने कहा कि किसी विनोद सिन्हा या संजय चौधरी को नहीं जानते. फिर कहा कि उनके क्षेत्र का व्यवसायी है. फिर उन्हें अपना मित्र बताया. लेकिन कोड़ाजी ने विनोद-संजय से अपनी अंतरंगता को सदैव छुपाने का प्रयास किया. कोड़ाजी को विनोद-संजय से अंतरंगता को जगजाहिर करने में किस बात का भय है. यह तो वे ही जानें, पर कोड़ाजी आजतक इस बात पर खामोश हैं कि मुख्यमंत्री बनते ही विनोद-संजय को एक साथ आउट ऑफ वे जाकर बॉडीगार्ड किस काम के लिए मुहैया कराया? ये दोनों सरकार अथवा सार्वजनिक जीवन के ऐसे किस महत्वपूर्ण काम में लगे थे, जिससे इनकी जान पर ऐसा खतरा उत्पन्न हो गया कि सरकार को आउट ऑफ वे जाकर एक साथ दोनों को सरकारी अंगरक्षक देना पड़ा. संजय चौधरी को ऐसे किस आपातकालीन काम के लिए विदेश जाने की जरूरत थी कि उनका पासपोर्ट बिना विलंब रिन्यूअल करने के लिए भी कोड़ा को सिफारिशी पड़ा लिखना पड़ा. विनोद सिन्हा में ऐसी कौन बात दिखी कि कोड़ाजी ने खान मंत्री रहते विनोद को जेएसएमडीसी में मेंबर बनाने के लिए न सिर्फ सिफारिश की, बल्कि इसके लिए अनवरत प्रयास में लगे रहे. कोड़ाजी और विनोद सिन्हा के संबंधों पर, अभी प्रभात खबर न कुछ छाप रहा है, न सूचना दे रहा है, क्योंकि बहुत चीजें छपी हैं, बहुत चीजें शेष हैं.

जांच चल रही है, तो स्वत: शेष तथ्य आ जायेंगे. जांच होने देने से यह परेशानी क्यों? मुख्यमंत्री रहते हुए या पूर्व मुख्यमंत्री बन जाने पर जब-जब विनोद सिन्हा एंड कंपनी की जांच की मांग उठी, श्री कोड़ा क्यों विफर जाते हैं? क्या कोई राज है? विनोद सिन्हा ने मधु कोड़ा के कार्यकाल में कहां-कहां, किस-किस विभाग में क्या-क्या किया, उनमें से काफी चीजें छपी हैं, कुछेक जांच के बाद स्पष्ट हो जायेंगी. प्रभात खबर सिर्फ यह कहता रहा है कि यह रिश्ता सामान्य नहीं, यह बिजनेस रिश्ता है. कोड़ा मुख्यमंत्री थे, तो विनोद सिन्हा के ऊपर सरकार कैसे मेहरबान रही, इस पर भी काफी सामग्री छपी है. शेष चीजें जांच के बाद सामने आ जायेंगी. झारखंड सरकार के हेलीकॉप्टर में उड़ान भरनेवाले कौन-कौन थे? यह मामला भी अदालत में है. जांच हई, तो सब खुलासा होगा.

प्रभात खबर पर बौखलाये श्री कोड़ा ने यूएमआइ (उषा मार्टिन इंडस्ट्रीज) का प्रसंग उठाया. पहले यूएमआइ और प्रभात खबर के रिश्तों को जान लें. यूएमआइ और प्रभात खबर के बीच कोई फंक्शनल रिश्ता नहीं है. दोनों दो कंपनियां हैं. हां, प्रमोटर एक हैं. प्रभात खबर एक अलग कंपनी है. प्रभात खबर को प्रोफेशनल लोग चलाते हैं. शुरू से. यहां न कोई प्रमोटर बैठता है, न इसकी नीति में कोई दखल देता है. 1990 से इस कंपनी को चलाने के लिए अलग नियम-कानून, प्रावधान बने. प्रमोटरों की सहमति से. कंपनी उसी रास्ते चलती है. स्वायत्त तरीके से. अपना विकास, अपनी चुनौतियां खुद संभालती है. यह तथ्य हम समाज को, पाठकों को बता चुके हैं. श्री कोड़ा को भी मालूम होगा कि औद्योगिक ग्रुपों के अखबार बुनियादी और सैद्धांतिक तौर से सरकारों की खुशामद में रहते हैं. क्या प्रभात खबर ने श्री कोड़ा या अन्य पूर्ववत मुख्यमंत्रियों के बारे में जो तथ्य सामने लाया, उनसे लगता है कि वह उनकी खुशामद में रहा है? श्री कोड़ा की नाराजगी का राज यही है कि प्रभात खबर उनकी खुशामद में नहीं है.

प्रबंधन की सहमति से बनी स्वायत्त नीतियों से ही प्रभात खबर बढ़ा. पिछले बीस वर्षों में एक से बढ़ कर एक बड़े प्रकरण प्रभात खबर में छपे, जिन्होंने देश की राजनीति को प्रभावित किया. अनेक ताकतवर लोगों पर असर डाला और उनकी सत्ता गयी. श्री कोड़ा के आरोपों के अनुसार प्रभात खबर कंपनी के हितों के लिए काम कर रहा है, अगर यह सच है, तो यह सब प्रभात खबर कैसे करता? यह सवाल श्री कोड़ा खुद से पूछें? सार्वजनिक रूप से एक और सूचना. हां, प्रभात खबर के प्रमोटरों में वैल्यूज है, नहीं तो जिस स्वायत्त तरीके से इसको चलाने की नीति 1990 में बनी, वह नीति नहीं चलती.

फिर यह चीज भी स्पष्ट कर दें कि हम रोज कुआं खोदनेवाले और प्यास बुझानेवाले समूह हैं. ऐसी स्थिति में तो कोई अखबार सबसे पहले सत्ताधीशों की चरण वंदना करता, पर प्रभात खबर ने शुरू से भिन्न पत्रकारिता चुनी. इसी कारण श्री कोड़ा बौखलाये हैं. श्री कोड़ा ने दो पूर्व मंत्रियों के नाम लिये हैं. बाबूलाल मरांडी के जमाने के. श्री कोड़ा यह भी बता देते कि उन मंत्रियों पर क्या-क्या चीजें छपीं और कब-कब छपीं? उनका क्या रिश्ता कंपनी के हितों से था? अगर कंपनी के हित के अनुसार अखबार को चलाना होता, तो जिन मंत्रियों के पास कंपनी के हित हैं, सबसे पहले अखबार उनकी तीमारदारी करता. पर गुजरे 20 वर्षों में एक से एक ताकतवर लोगों के तथ्य प्रभात खबर में छपे, क्योंकि इसका फैसला सिर्फ और सिर्फ प्रभात खबर करता है. पत्रकारिता के अपने मापदंडों के तहत. कोई कंपनी नहीं.

हां, 1990 से आज तक यूएमआइ के खिलाफ भी खबरें प्रभात खबर में छपीं. 1990 से लेकर अब तक इन खबरों की ऑडिट या सूची श्री कोड़ा प्रभात खबर से तैयार कराना चाहें, या जांच कराना चाहें, तो प्रभात खबर उन्हें पूरी फाइल उपलब्ध करा देगा. हां, एक और बात श्री कोड़ा ने कही. उक्त कंपनी की किसी समूह कंपनी द्वारा नक्सलियों को लेवी देने की बात. तब कोड़ाजी मुख्यमंत्री थे. तब वह क्यों चुप रहे? दरअसल तथ्य यह है कि 15-20 कंपनियों के नाम आये कि इनकी चर्चा है कि इन्होंने नक्सलियों को लेवी दिया है. न इसका कोई कागजात मिला, न कहीं प्रमाण. न दस्तावेज. फिर भी प्रभात खबर से संबंधित संस्करण में यह खबर पूरी तरह छपी है. श्री कोड़ा अगर देखना चाहें, तो उस तारीख का समाचार पत्र हमारे जमशेदपुर संस्करण में उपलब्ध है.

वह देख सकते हैं. हां, झारखंड में तो सरकार के मुखिया थे कोड़ाजी, उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि सरकार में काम करनेवाले ही जहां नक्सली समूहों को लेवी देते हैं, वहां कॉमन मैन की क्या स्थिति है? पर प्रभात खबर पर जो आरोप कोड़ाजी ने लगाये हैं, उसे एक क्षण के लिए सच मान लें, तब भी प्रभात खबर अपने समूह के खिलाफ की खबरें भी छापता रहा है. पर कोड़ा सरकार के खिलाफ जो गंभीर आरोप लगे, उनमें से एक के लिए भी जांच से वह सहमत नहीं हैं. श्री कोड़ा ने उक्त समूह को माइंस देने या किसी अन्य काम का उल्लेख कर पूछा है कि हमने क्या राशि ली? बतायें. श्रीमान कोड़ाजी, न उस कंपनी से प्रभात खबर का कोई कामकाजी रिश्ता है, न इसकी जानकारी प्रभात खबर को है. आपके राजकाज की गंभीर अनियमितताओं की जो जानकारी प्रभात खबर को है, वे छपी हैं. उनके बारे में जांच से बेरुखी क्यों?

हां, श्री कोड़ा का एक आरोप यह भी है कि हमें ही टारगेट बनाया गया है. वह भूल रहे हैं, किसी मुख्यमंत्री के समय का प्रभात खबर उठा लें. अगर गलत हुआ है, तो वह प्रभात खबर में छपा है. हां, इसकी कीमत प्रभात खबर ने चुकायी है. लगभग तीन बार प्रभात खबर के विज्ञापन बंद किये गये. मधु कोड़ा के सत्ता में आने से पहले. एक से एक कटु तथ्य अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों के बारे में छपे, श्री कोड़ा चाहें, तो पिछले नौ वर्षों की फाइल देख कर आश्वस्त हो सकते हैं. यहां तक कि हर विभाग में भ्रष्टाचार के रेट और कमीशन भी छपे. पर आज एक फर्क दिखाई देता है कि किसी पूर्व मुख्यमंत्री के पास विनोद सिन्हा और संजय चौधरी नहीं थे. न उनके किसी यार मित्र या शागिर्द का दुबई में, थाइलैंड में, जकार्ता में अचानक कारोबार खड़ा हो गया. किसी अन्य मुख्यमंत्री के पद पर रहते हए कोई उनका खास मित्र राजसत्ता के संरक्षण में इतना जल्द इतना बड़ा नहीं बना. हां, उन पूर्व मुख्यमंत्रियों के भी किचेन कैबिनेट थे. निजी संबंधोंवाले लोग तब भी चीजों को प्रभावित कर रहे थे. पर एक सीमा तक.

एक और प्रसंग. कोड़ाजी को सत्यम आर्ट मीडिया प्रा.लि. के बारे में जरूर पता होगा. उनकी सरकार भी इस पर मेहरबान रही. इसके निदेशक विनोद सिन्हा हैं. साथ ही कोई अरविंद व्यास भी इसके डायरेक्टर रहे. ये अरविंद व्यास कौन हैं? अमितोष लीज एंड फाइनेंस प्रा.लि. कौन सी कंपनी है? अमितोष ने चाईबासा में इंडिया डीजल ट्रैक्टर के मामले में हुए ऋण घोटाले में किस तरह बैंक ऑफ बड़ौदा को पैसा दिया? वह कैसा पैसा है? इस कंपनी का खास क्षेत्रीय चैनल से क्या रिश्ता है? जहां कोड़ाजी की एकपक्षीय बातें बड़ी प्रमुखता से दिखायी जा रही है. यह सत्यम आर्ट मीडिया, उक्त क्षेत्रीय चैनल के किन-किन लोगों को उपकृत करता रहा है? कैसे-कैसे लोगों को उपकृत किया है? निश्चित रूप से इस कंपनी और इसके प्रतिनिधियों के कामों की जानकारी और उक्त क्षेत्रीय चैनल से इसके संबंध की सूचना, वहां के एमडी या ऊपर बैठे लोगों को नहीं होगी. हालांकि श्री कोड़ा खंडन करेंगे, पर श्री कोड़ा तो शिखंडी की भूमिका में हैं. असली खिलाड़ी कहीं और है. अदालती जांच आगे बढ़ी, तो तथ्य स्वत: सामने आयेंगे.

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