-हरिवंश-
ऐसा कम होता है. पर घटता है. जब संज्ञा, जीते-जी विशेषण बन जाये. मसलन, झारखंड के मुख्यमंत्री मधु कोड़ा. अब वह व्यक्ति (संज्ञा) नहीं रहे. विशेषण बन गये हैं. भारत में सामयिक सवालों पर शोध कम होता है. पर होना चाहिए. राजनीति में कोड़ा पर अध्ययन होना चाहिए, ‘कोड़ा कला’. जैसे आप पाक कला जानते हैं, भोग कला जानते हैं, संगीत कला जानते हैं,…उसी परंपरा में राजनीति में शोध अध्ययन होना चाहिए ‘कोड़ा कला’ पर.
जैसे विज्ञान वगैरह में ‘रमन इफेक्ट’ पर अध्ययन होता है. उसी परंपरा में भारतीय राजनीति को पतन के पाताल में पहुंचाने के लिए ‘कोडा कला’ पर विचार होना चाहिए.‘कोड़ा कला’ क्या बला है? इसके सुगंध-दुर्गंध क्या हैं? इसकी पहचान क्या है? इसके विशेषण और लक्षण क्या हैं?
शर्म की विदाई : सार्वजनिक जीवन से शर्म-हया की विदाई ! इतनी निर्लज्ज सरकार देश में इसके पहले नहीं रही. निर्लज्जता का रिकार्ड तोड़नेवाली सरकार. झामुमो ने समर्थन वापस लिया. इसके बाद कोई राजनीतिक दल मंत्रिमंडल में नहीं रहा. यह सरकार सिर्फ निर्दलीयों की, निर्दलीयों द्वारा और निर्दलीयों के लिए रह गयी है. लोकतांत्रिक ढांचे में एक निर्दल समूह ने पूरी व्यवस्था को ‘हाइजैक’ (अगवा) कर लिया है. देश में इसका भी दूसरा उदाहरण नहीं है.
अल्पमत में आयी सरकार बेशर्मी से नीतिगत फैसले कर रही है. बडे पैमाने पर ट्रांसफर-पोस्टिंग की योजना बना रही है. मंत्रिमंडल की बैठकें कर रही हैं. बैकडेट में माइंस एलॉट करने या किसी बिजनेस हाउस के पक्ष में अनुशंसा करने के आरोप भी लग रहे हैं. यह जगजाहिर है कि ये काम किस मकसद और लाभ के लिए किये जा रहे हैं? एक समझदार नागरिक की टिप्पणी थी कि लाश बन चुकी सरकार, अपने कफन के लिए भी सौदेबाजी कर रही है. नये अनुमंडल, नये जिले वगैरह बनाने में हाइकोर्ट से मशविरा करना पड़ता है.
पर इस सरकार को किसी पद्धति, नियम, कानून या प्रक्रिया की चिंता नहीं. कहीं किसी से भय नहीं. राज्यपाल ने उच्चतम न्यायालय के पूर्व फैसलों के आलोक में इस सरकार को 25 अगस्त तक बहुमत साबित करने का समय दिया. गौर करिए, कोड़ा जी 19 सितंबर तक समय चाहते थे. शायद ‘कोड़ा कला’ को और धारदार करने के लिए, मांजने के लिए. पर कैबिनेट फैसले में जो कार्य निर्दलीयों ने किये हैं, उससे लगता है, इस सरकार को सात मिनट भी सत्ता में नहीं रहना चाहिए.
इनके कामकाज देख कर लगता है कि ये साबित करने पर तुले हैं कि ‘निर्दल शाप हैं’ व्यवस्था के लिए. लोकतंत्र के लिए. समाज के लिए. झारखंड के लिए. कोड़ाजी अब तक यही अलाप रहे थे कि मुझे यूपीए का निर्देश नहीं मिला. 20 अगस्त को कांग्रेस प्रवक्ता का आधिकारिक बयान आया. कांग्रेस, को सरकार के खिलाफ वोट करेगी. इसके बाद क्या बचा? झामुमो का समर्थन वापस हो चुका है. कांग्रेस अपना स्टैंड साफ कर चुकी है. फिर भी यूपीए के आदेश का रट लगाना निर्लज्जता की पराकाष्ठा है. देर रात गये झारखंड कांग्रेस के सह प्रभारी अब्दुल मन्नान ने मुख्यमंत्री से इस्तीफा भी मांग लिया है.
संविधान विरोधी : आप कल्पना कर सकते हैं कि संविधान के तहत बनी सरकार, संविधान, कानून को अलिखित रूप से खारिज कर दे? अगर यह जानना चाहते हैं, तो कोड़ा सरकार के कामकाज की तह में जाना होगा. इस सरकार ने सरकार और मंत्रियों की ‘सामूहिक जिम्मेवारी’ की बुनियादी अवधारणा को ही पहले विदा किया. हर निर्दल मंत्री अपने विभाग का मुख्यमंत्री बन गया. संविधान कहता है, राज्य में एक मुख्यमंत्री होगा, पर कोड़ा सरकार अनेक मुख्यमंत्रियों का जमावड़ा थी.
निडर-निर्भय : देश में शायद ही कहीं, इतनी निर्भयता से सरकार ने ‘भ्रष्टाचार’ को संस्थागत बताया हो. न्यायपालिका, आयकर, विजिलेंस, सीबीआइ वगैरह किसी की परवाह नहीं है, इस सरकार को. ऐसे अनंत साक्ष्य हैं. पर एक ही पर्याप्त है, हांड़ी के चावल को परखने-समझने के लिए. एक घोटाले के आरोप में फरार अफसर पर मुख्यमंत्री छह माह पहले कार्रवाई का आदेश देते हैं. गिरफ्तारी का भी वीडियो कांफ्रेंसिंग में सार्वजनिक तौर से.
फिर वह मैनेज हो जाते हैं. एक मुख्यमंत्री जहां, ऐसा सार्वजनिक आचरण करे, वहां किस व्यवस्था या सरकार पर भरोसा कर सकते हैं, आप? पूरी व्यवस्था और सरकार को पूर्ण अविश्वसनीय बना देने के लिए ‘कोड़ा सरकार’ यादगार अध्याय रहेगा. निडर और निर्भय होकर भ्रष्टाचार में लीन होना. डूबना-उतराना. अल्पमत में आने पर भी यही काम.
लोकतंत्र को अविश्वसनीय बना देना :‘कोडा मैजिक’ ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को ही अविश्वसनीय बनाने में ऐतिहासिक काम किया है. लोकतंत्र के आलोचक कहते रहे हैं, लोकतंत्र की सबसे बड़ी कमजोरी है कि 51 चोर मिल कर 49 साधुओं को भगा देंगे. यहां सारे निर्दलों ने ‘दलवालों’ को सरकार से चलता कर दिया है. इस सरकार के काम का सांगोपांग अध्ययन हो, तो पता चलेगा कि लोकतंत्र की जडें कैसे कटी हैं, इस राज्य में?
इसी तरह कोड़ा कला के अनंत पहलू और चरित्र हैं. इस पर सांगोपांग अध्ययन के लिए सिविल सोसाइटी को आगे आना होगा. अदालतों की मदद लेनी होगी. इनके कामकाज की जांच सरकारी एजेंसियों से करानी होगी, जब ‘कोड़ा कला’ से परदा उठेगा.