-हरिवंश-
और मुख्यमंत्री मधुजी के मधु स्वर में निकला ‘सारा खेला हाउस में होगा’. इस बयान को दुनिया ने टीवी पर भी देखा. पढ़ कर लगा कि कोड़ाजी नहीं माननेवाले. जाते-जाते वे कई रिकार्ड बनाना चाहते हैं. योग विद्या में एक हठयोग है. हठयोगी प्रकृति के खिलाफ हठ कर प्रकृति को बस में करना चाहते हैं. कोड़ाजी, लगता है, राजनीति में हठ अवतार हैं. वह अपने हठ पर डटे हैं. एक लोकतांत्रिक और पारदश मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें बताना चाहिए कि वह कैसे 17 विधायकों की जुगाड़ करेंगे? उल्लेखनीय है कि झामुमो के 17 विधायकों ने समर्थन वापस ले लिया है.
सृष्टि के बारे में चर्चा और मान्यता है कि ब्रह्मा ने इसे रचा. पर कहावत है कि विश्वामित्र भी ब्रह्मा के समानांतर सृष्टि बसाना चाहते थे. पर नहीं कर सके. क्या कोड़ाजी ने लगभग दो वर्षों की मुख्यमंत्री गद्दी से ‘समानांतर 17 विधायकों’ के गढ़ने की विधा सिद्ध कर ली है?
या जब तक हो, सीएम कुरसी पर कब्जा रहे, यह सिद्धांत वह मान रहे हैं? राजनीति में कुरसी को लेकर तरह-तरह की बातें कही जाती हैं. मसलन लालूजी पहले बिहार की जनसभाओं में मजाकिया तौर पर कहते रहे हैं, कुरसी बांध कर रखो. अन्यथा दूसरा कब्जियायेगा? खाली ही नहीं करेंगे, तो बैठेगा कौन? भारतीय राजनीति में एक अनोखे चरित्र हुए. समाजवादी राजनारायणजी. वह अपने तप, त्याग और संघर्षशील व्यक्तित्व के कारण कम जाने गये. अपने अन्य हरकतों के कारण अधिक. जब वह सत्याग्रह, धरना या आंदोलन में होते थे, तो उनकी गिरफ्तारी का आदेश होता था. गिरफ्तार होते समय वह कुरसी में पैर फंसा देते थे. उनसे कुरसी छुड़ाना कठिन था.
पुरानी बात है. ऐसे ही यूपी में एक मंत्री हुए. उनके बारे में अब भी लोग चर्चा करते हैं. वह जिस कुरसी पर बैठते थे, चाहते थे कि घर लौटें, तो कुरसी भी साथ जाये. सुबह दफ्तर आयें, तो कुरसी भी साथ आये. इसलिए कुरसी प्रेम पुरानी परंपरा और प्रक्रिया है. महाभारत के भीष्म अमर पात्र हैं. ऐसे महापुरुष क्षमा करेंगे, हम घोर कलयुगी और पापी लोग भी उनका नाम घसीट रहे हैं. पर वे मानते थे कि उनकी निष्ठा हस्तिनापुर गद्दी से बंधी है. संभव है, उसी परंपरा में कोड़ाजी झारखंड के मुख्यमंत्री पद की गद्दी से बंधे महसूस करते हों. इसलिए वे झारखंड के प्रति गद्दी निष्ठा के कारण गद्दीमुक्त नहीं होने के लिए चमत्कार करना चाहते हैं.
कोडाजी कुरसी पर बैठे हैं. लेकिन शिबू सोरेन की चेतावनी की अनदेखी कर रहे हैं. शिबू सोरेन ने उनकी स्थिति इन शब्दों में बता दी है –
सांपेर आगे बेंगा नाचे
तार पीछोने केऊ गुनी आछे
इसका अर्थ है कि सांप के आगे बेंग नाच रहा है. पीछे गुनी ओझा है. वे गुनी या ओझा क्या चमत्कार करेंगे कि बेंग बच जायेगा या कुरसी बच जायेगी? किस भरोसे कोड़ाजी यह खेला करेंगे? उनके किस चमत्कार को झारखंड की जनता नमस्कार करेगी ? क्योंकि भारतीय संविधान में चमत्कार का स्कोप है ही नहीं.
संविधान कहता है, विधानसभा में बहुमत प्राप्त घटक, समूह या दल का नेता ही मुख्यमंत्री होगा. झामुमो की समर्थन वापसी के बाद क्या परिदृश्य बनता है?
गणित खिलाफ है
झारखंड विधानसभा में 81 विधायक हैं. एक नामिनेटेड एंग्लोइंडियन हैं. एनडीए के साथ 34 लोग हैं. भाजपा के 30 और जदयू के 4. इसी तरह यूपीए के 42 विधायक हैं. जेएमएम के 17, कांग्रेस के 9, आरजेडी के 7, निर्दल 9. इन दोनों खेमों से अलग हैं, भाकपा के रामचंद्र राम. भाकपा माले के विनोद सिंह. इंदर सिंह नामधारीजी. सुदेश महतो और अपर्णा सेन, फारवर्ड ब्लॉक की. नामधारीजी और सुदेश महतो एनडीए के करीबी कहे जा सकते हैं. अपर्णा सेन यूपीए सरकार की समर्थक हैं. आज की तारीख में कोड़ाजी के खिलाफ घोषित कितने विधायक हैं ? एनडीए के 34, झामुमो के 17 और अपर्णा को छोड़ कर चार अन्य विधायक (भाकपा, भाकपा माले, इंदरसिंह नामधारी और सुदेश महतो). इस तरह 81 विधायकों वाली इस विधानसभा में 55 विधायक घोषित रूप से कोड़ाजी के खिलाफ हैं.
मान लिया जाये कि कांग्रेस और राजद अब भी कोड़ाजी के साथ हैं, तब भी उनके कुल 25 (कांग्रेस 9 + राजद 7 + निर्दल 9) विधायक हैं. कहां 25 और कहां 55! कोड़ाजी कैसे 20 विधायकों को गढेंगे? पर कांग्रेस कोड़ा सरकार के खिलाफ मत डालेगी. ऐसी स्थिति में कोड़ा के साथ कुल 16 लोग बचेंगे. जो हालात हैं, उनके अनुसार राजद भी साथ छोड़ सकता है. तो क्या एक तरफ 9 निर्दल होंगे और दूसरी तरफ 72 विधायक, जो सरकार के खिलाफ खड़े होंगे? सरकार के पराजित होने का नया रिकार्ड भी कोड़ाजी बना लेंगे.
कैसे यह सरकार बहुमत साबित करेगी? कोड़ाजी के शब्दों में कहें, तो यह खेला हाउस में होगा? पर कैसे? यह चमत्कार तीन रास्ते संभव है. पहला, कोड़ा सरकार के उच्च विचार, आदर्श और लक्ष्य. शायद इससे प्रेरित होकर झारखंड के विभिन्न दलों के विधायक अपने-अपने दलों से विद्रोह कर कोडाजी के साथ हो जायें. दूसरा, ऐसा व्यक्तित्व या जननेता का उभार, जो दलों और विचारों की सीमा तोड़ कर विधायकों को, अपने निजी चुंबकीय व्यक्तित्व से अपनी ओर खींच ले.
कोड़ा जी निर्दल हैं. उनका कोई दल ही नहीं है, तो उनके दल, विचार और आदर्श के बारे में बात ही नहीं हो सकती? वह भले इंसान हो सकते हैं, पर उनका व्यक्तित्व भी इतना बड़ा नहीं हुआ कि वह सबको अपनी ओर खींच लें. फिर खेला कैसे होगा? एक ही रास्ता बचता है. तीसरा, मैनेज करने की कला. इसी क्षेत्र में उन्होंने महारत हासिल की है. उनका यह हुनर लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड बन गया है. राजनीति में मैनेज करने की यह कला कैसे संभव है? पैसा + अमर सिंहों की फौज. इसी संस्कृति और कला में महारत हासिल है, कोड़ाजी को.
नहीं तो एक निर्दलीय, जिसके खिलाफ आज की तारीख में घोषित रूप से 55 विधायक हैं, वह कहां से खेला करेगा? इसका अर्थ यह हुआ कि विधानसभा में खेला करने का काम पैसों, दलालों और अनीति के बल पर होगा? कहां पहुंचा दिया राजनीति को कोड़ाजी ने? झारखंड की यह परंपरा तो एक अंधकारमय भविष्य की नींव डाल ही चुकी है. क्या राजनीति में नीति-अनीति, मूल्य-पाखंड, खरीद-फरोख्त में कोई अंतर नहीं बचा है? क्या झारखंड यही संदेश देश को देगा? कोड़ाजी के एक निर्दल मंत्री फरमाते हैं, अंतर्रात्मा की आवाज पर हम वोट मांगेंगे. जिस ढर्रे पर झारखंड के नेता राजनीति कर रहे हैं, क्या उसमें आत्मा भी है? अच्छे और बुरे के बीच भेद करने की क्षमता है? आत्मा, विवेक, समाज, स्वस्थ परंपरा इनके शरीर में हैं? जो आत्माएं निरंतर अनीति के भंवर में फंसी हैं, उनकी अंतर्रात्मा से उठी आवाज पर झारखंड के विधायकों का मानस बदल जायेगा? ये विचार, सिद्धांत, दल, निष्ठा सब छोड़ कर कोड़ाजी के समर्थक बन जायेंगे और इस तरह सारा खेला हो जायेगा?
कोड़ाजी और उनके हमसफर बार-बार कह रहे हैं, यूपीए का कोई बड़ा नेता कहे, हम इस्तीफा दे देंगे. यूपीए बड़ा है या संविधान? संविधान के नियमों के तहत कोड़ाजी मुख्यमंत्री हैं. संविधान कहता है, विधायकों के बहुमत से ही मुख्यमंत्री होगा या रहेगा. आज विधायकों का बहुमत कोड़ाजी के पास नहीं है. वह बुरी तरह अल्पमत में हैं. जिस संविधान के तहत वे मुख्यमंत्री हैं, उसके प्रति उनकी आंशिक निष्ठा होती, तो वह संविधान की भावना का आदर करते. क्योंकि बहमत का गणित उनके खिलाफ चला गया है. फिर यूपीए कोई दल नहीं है. यूपीए एक समूह है, जहां हरेक मुक्त है. अपने आचरण और निर्णय के लिए. अब तो कांग्रेस ने भी संकेत दे दिया है कि वह झामुमो के साथ है. इसके पीछे दो महत्वपूर्ण कारण हैं. पहला, केंद्र में यूपीए को झामुमो का समर्थन चाहिए. केंद्र सरकार को 275 सांसदों का समर्थन मिला था. आज गुरुजी अलग हो जाते हैं, तो केंद्र में यूपीए की फजीहत शुरू होगी. लोकसभा का सत्रावसान अभी नहीं हुआ है. जल्द ही लोकसभा की बैठक की संभावना है. उधर न्यूक्लीयर डील पर बात हो रही है. ऐसे माहौल में कांग्रेस, झामुमो के पांच सांसदों को लूज नहीं कर सकती. कोड़ा सरकार की बलि देकर भी.
दूसरा कारण है, आगामी लोकसभा चुनाव. आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को झामुमो का संग चाहिए, निर्दलीयों का बोझ नहीं. कांग्रेस के ऊपर एक पुराना बोझ भी है, जिसके तहत झारखंड कांग्रेस का दम घुट रहा है. वह है झारखंड के प्रभारी अजय माकन का झारखंड कांग्रेसियों से किया गया वादा. वह और उनकी पार्टी 90 दिनों में यह सरकार गिरानेवाले थे. पर कांग्रेस यह काम नहीं कर सकी और झामुमो ने कर दिखाया. अब कांग्रेस, झामुमो के नाम पर गंगा नहायेगी. यूपीए के तीन महत्वपूर्ण नेता हैं, सोनियाजी, लालूजी और शिबू सोरेन. कोड़ाजी इन्हीं तीनों के नाम भजते थे. वह यह भी कहते थे कि गुरुजी जब चाहें, उनके लिए गद्दी खाली कर दूंगा. इस तरह वह ‘आधुनिक भरत’ बनने की घोषणा भी करते रहते थे. अब यूपीए के इन तीन बड़े नेताओं में से शिबूजी पहले ही इस्तीफा मांग चुके हैं. कांग्रेस के समर्थन का संकेत मिल चुका है. सोनियाजी या उनके किसी प्रतिनिधि ने सार्वजनिक रूप से इसका खंडन भी नहीं किया है. इस तरह यूपीए के दो वरिष्ठ समूहों के विचार स्पष्ट हैं. लालूजी ने सार्वजनिक रूप से कोड़ा जी के बने रहने का बयान कहीं दिया नहीं है. हालांकि पूरा देश झारखंड सरकार का यह संकट देख रहा है. अब कोड़ाजी कैसा संकेत चाहते हैं, जिससे लगे कि यूपीए के वरिष्ठ नेता उन्हें ही मुख्यमंत्री पद पर चाहते हैं. कहावत है, समझदार को इशारा काफी. पर दो वर्षों तक मुख्यमंत्री की गद्दी संभालनेवाले ‘समझदार कोड़ाजी’ शायद यह दृश्य नहीं समझ पा रहे हैं.
एक ही चमत्कार बाकी है. गिरिनाथ सिंह ने एक अर्थपूर्ण बयान दिया है, लालूजी के हवाले से. उनके अनुसार दिल्ली में गुरुजी के लिए तीन पद प्रतीक्षा कर रहे हैं. इस अर्थपूर्ण बयान के संकेत साफ हैं. गुरुजी और उनकी टीम दिल्ली, केंद्र सरकार में शरीक हो जायें और झारखंड का संकट टल जाये. पर वह भूल गये कि गुरुजी ने इस बार सही समय पर सही कदम उठाया है. इस बार वह चूके, तो फिर झारखंड उनके हाथ से निकल जायेगा. झामुमो का आधार कम होगा. वह केंद्र छोड़ कर झारखंड में अपनी पार्टी का आधार मजबूत करना चाहते हैं. इसलिए अब वह किसी ऐसे प्रस्ताव पर नहीं लौटेंगे, जो उनके लिए आत्मघाती होगा. गुरुजी के दोनों हाथों में लड्डू है. अगर वह सरकार नहीं बना सके, तो आंदोलन पर उतरेंगे. जनता को यह मैसेज देंगे कि मेरे साथ अन्याय हुआ है. उनकी पार्टी को प्रभावी चुनावी मुद्दा मिलेगा. वह सवाल उठायेंगे कि सात निर्दलों को हम 17 लोगों ने दो वर्ष ढोया, पर ये सात, डेढ़ वर्ष के लिए भी मुझे अवसर देना नहीं चाहते? इससे जो उन्हें, उनके समर्थकों और लोगों की सहानुभूति मिलेगी, उससे झामुमो मजबूत बन कर उभरेगा. अगर उन्हें सत्ता मिल गयी, तो वह अपने ढंग से झामुमो को मजबूत करेंगे और इस बार कांग्रेस को समर्थन देना उनकी मजबूरी है, यह वह बखूबी समझ रहे हैं. इसलिए अपने खूंटे पर दम-खम से कायम हैं. इस तरह उनके हाथ में परिस्थितियों ने दोनों हाथों में लड्डू दे दिया है.
दिल्ली में जो कोड़ाजी के समर्थक हैं, वे एक और दावं या चाल चलेंगे. वे हर निर्दलीय के मन में भरोसा देंगे कि वे उसे ही मुख्यमंत्री बना देंगे. वे कोड़ाजी के साथ डटे रहें. इसके पीछे की रणनीति होगी कि निर्दलीय झामुमो के साथ न जायें. और यह कहा जायेगा कि गुरुजी या झामुमो कोई और नया नेता चुन ले, हम उसको समर्थन देंगे, पर गुरुजी को नहीं. लेकिन गुरुजी इतनी दूर निकल आये हैं कि पीछे के सारे दरवाजे उन्होंने बंद कर लिये हैं, ताकि झामुमो का किला या दुर्ग मजबूत हो सके. सत्ता या राष्ट्रपति शासन, यह वह घोषित कर चुके हैं.