-हरिवंश-
आज सात वर्ष हुए झारखंड बने. गुजरे सात वर्षों में सरकार, विधायिका और राजनीति की सबसे बड़ी सौगात झारखंडवासियों को क्या है? पूरी व्यवस्था (सिस्टम) को अविश्वसनीय बना देना. एक पंक्ति में कहें, तो झारखंड के शासक वर्ग ने गुजरे सात वर्षों में दिखा दिया है कि वे ‘स्टेट’(राज्य) भी बेच सकते हैं.
झारखंड में राजनीति करनेवाले दलों ने एक नया राजनीतिक ग्रामर ही गढ़ दिया है. हालांकि देश की राजनीति में इस ग्रामर के सूत्र यत्र-तत्र दिखाई देते थे, पर झारखंड ने यह नया राजनीतिक ग्रामर स्थापित कर दिया. भ्रष्टाचार के प्रैक्टिशनर, आचार-व्यवहार में जो प्रामाणिक तौर पर सबसे भ्रष्ट हैं, वे ही भ्रष्टाचार की बुराई भी कर रहे हैं. यानी चोर और साधु की भूमिका एक हो गयी है. नायक, खलनायक अलग नहीं रहे. यह झारखंड द्वारा स्थापित नया राजनीतिक ग्रामर है. एक लोक कहावत है, सेन्ह (चोरी स्थल) पर बिरहा (बिरहा, ऊंची आवाज में गाया जाता है). यानी चोरी स्थल से ही चोर ललकार रहे हैं. भयमुक्त चोर. सात वर्षों के झारखंड की देन है, यह.
पर क्या संभावना है कि झारखंड एक बेहतर, व्यवस्थित और सुशासित राज्य बन सकता है? यह संभव है, पर इसकी पहली शर्त है कि हम मान लें कि झारखंड की मौजूदा राजनीतिक पार्टियों में से कोई भी दल ‘झारखंड पुनर्निर्माण’ नहीं कर सकता. लोक पहल, छात्र शक्ति का उदय, झारखंड के सार्वजनिक जीवन की संपूर्ण सफाई के लिए नागरिक समाज का बनना-विकसित होना और कुराज के खिलाफ लोक आक्रोश यही रास्ते बचे हैं, झारखंड गढ़ने के. सिर्फ एक उदाहरण पर्याप्त है, इस निष्कर्ष तक आपको पहंचाने के लिए. झारखंड बनने के बाद ही लॉ स्कूल की स्थापना की प्रक्रिया शुरू हो गयी.
देश के कई राज्यों में केंद्र की योजना के तहत ऐसे लॉ स्कूल बन चुके हैं. ये लॉ स्कूल विश्व स्तर के हैं. पर झारखंड में सात वर्षों बाद भी यह नहीं बन सका, क्यों? झगड़ा यह है कि उसका चासंलर कौन बने? एक पद के झगड़े में, झारखंड की युवा प्रतिभाएं जगह और अवसर नहीं पा रहीं. अन्य राज्यों में बाद में यह योजना शुरू हई. एकाध वर्ष में पूरी हो गयी. बिहार में भी. इस तरह शासकों के ‘एटीट्यूट’ के अनंत प्रकरण हैं. क्या झारखंड के कॉलेजों में, छात्रसंघों के चुनावों के माध्यम से जिस छात्रशक्ति का उदय हुआ है, वह एक मंच पर आकर राजसत्ता से ऐसे कुकर्मों का हिसाब मांगेगी?
यह स्थापित और प्रमाणित तथ्य है कि ईमानदार ब्यूरोक्रेसी बड़ा काम कर सकती है. झारखंड में पर्याप्त ईमानदार और अच्छे ब्यूरोक्रेट हैं. उनके पक्ष में माहौल बनाना, नागरिक समाज के लिए बड़ी चुनौती है. नया झारखंड गढ़ने के लिए ‘इंस्टीट्यूशंस’ की बुनियाद जरूरी है. किसी भी समाज का चाल, चरित्र और चेहरा ‘इंस्टीट्यूशंस’ ही बदल सकते हैं. इंस्टीट्यूशंस, शिक्षा में, प्रशासन में, राजनीति में यानी उन सभी क्षेत्रों में जहां ‘ह्यूमन रिसोर्स’(मानव संसाधन) को गढ़ा और बनाया जाता है. जाति, धर्म, समुदाय और क्षेत्र से परे उदार राजनीति को प्रश्रय देना जरूरी है. आज हर दल में, शासन में, मीडिया में, अच्छे लोग हैं, पर वे पीछे हैं. ऐसे लोगों की एकजुटता और सक्रियता ‘कानून का राज’ स्थापित करने में मददगार होगी.
यही हिरावल दस्ता, समाज और राजनीति को अनुशासित और नैतिक बनाने की बुनियाद रख सकता है. पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक मंच से पीड़ा व्यक्त की. उनका आशय था, ‘कोलिशन पालिटिक्स’ (साझी सरकारें) से गंभीर संकट है. साझा सरकारों की भूमिका, उनके काम, निर्दलीयों की निरंकुशता के अनुभव, झारखंड और झारखंडवासियों से बेहतर किसको है? यह हालात जनता ही बदल सकती है. किसी भी दल को निर्णायक बहुमत देकर. निर्दलीयों पर लोक अंकुश, झारखंड की जनता का स्वर होना चाहिए.
जो राजनीति बदलना चाहते हैं या जिन्होंने अलग झारखंड के लिए लंबा संघर्ष किया है, भोगा है, पर आज उदास और अलग-थलग हैं, वे बड़ा काम कर सकते हैं. ग्लोबलाइजेशन या तेजी से बदलती दुनिया को महज एक स्वर में नकारते रहने से हल नहीं निकलनेवाला. यह करनेवाले अप्रासंगिक होते जायेंगे. आज जरूरत है, मौजूदा माहौल के संदर्भ में एक सुस्पष्ट विचारधारा (आइडियालाजी) तय करना. इस विचारधारा के अनुकूल राजनीति गढ़ना.
इस राजनीति या वैकल्पिक विचार के अनुसार इस ‘पश्चिमी ग्रोथ माडल’(कंज्यूमर ओरिएंटेड) के विकल्प में गांधीवादी, स्वदेशी ‘ग्रोथ माडल’ गढ़ना.यह नहीं हुआ, तो महज आलोचना, संघर्ष और नकारात्मक बातों से हम इस पश्चिमी ग्रोथ माडल, जीवन संस्कृति और मूल्यों को नहीं रोक सकते. दुनिया में यह ‘टेक्नोलाजी लेड कंज्यूमर ग्रोथ माडल’ का दौर है. इस बाढ़ को रोकना बड़ा कठिन है. दुनिया जिस तेजी से आज बदल रही है, पहले कभी नहीं बदली. यह तथ्य समझना जरूरी है.
मसलन, झारखंड के खनिज संपदा का मसला. खनिज झारखंड की एकमात्र संपदा है. एक वर्ग मानता है कि इसका दोहन ही न हो. पर केंद्र और राज्य सरकार, दोहन के लिए लाइसेंस दे रही हैं. इन दोनों स्थितियों से अलग हर साल, दो-ढाई हजार करोड़ का कोयला, झारखंड से बाहर ब्लैक मार्केट में जा रहा है. खुलेआम झारखंड से चीन को लौह अयस्क ‘स्मगलिंग’ से भेजा जा रहा है. यह सब सरकार और शासन की देखरेख में हो रहा है. खनिजों के ब्लैक माकट से लोग अरबों कमा रहे हैं, पर झारखंड को कोई लाभ? क्यों नहीं हम स्पष्ट कानून बना कर झारखंड की खनिज संपदा का उपयोग, राज्य के हित में करें? यहां खनिज आधारित उद्योग लगें. लोकल लोगों को रोजगार मिले. अगर हम बिना समझे विरोध करते रहें, तो खनिज संपदा भी हमारे हाथ से निकल जायेगी और इसका लाभ भी झारखंड को नहीं मिलेगा. जैसे कोडरमा में अबरख का हआ. अबरख भंडार खत्म हो गया. अबरख के कारोबारी और उनसे जुड़े राजनेता अमीर हो गये, पर राज्य को क्या मिला? इसलिए एक ‘प्रैक्टिकल खनन नीति’ और उद्योग नीति का बनना जरूरी है.
ऐसे अनेक प्रयास झारखंड की मौजूदा निराशा को तोड़ सकते हैं. निजी और सामाजिक स्तर पर छोटे-छोटे अनेक अन्य प्रयास-पहल भी हों, तो सकारात्मक पृष्ठभूमि बन सकती है.इसी जनचेतना को पैदा करने और झारखंड नवनिर्माण के लिए प्रभात खबर स्थापना दिवस परिशिष्ट निकालता रहा है. झारखंड स्थापना वर्ष 2000 से इस वर्ष तक लगातार पाठक इस स्थापना अंक की प्रतीक्षा करते हैं.
इस अंक के प्रति पाठकों के इस उत्साह और प्रतीक्षा में ही, झारखंड के बेहतर बनने की किरण दिखाई देती है. और प्रभात खबर का ड्रीम है, झारखंड नवनिर्माण. झारखंड के संघर्ष का साझीदार और वाहक रहा है, यह समाचारपत्र. अलग राज्य बनने के बाद बिजनेस लाभ के लिए प्रभात खबर नहीं जन्मा. इसीलिए ‘झारखंड स्थापना दिवस ’ परिशिष्ट देश के जानेमाने सृजनात्मक लोगों के विमर्श का मंच बने, यह कोशिश होती है. देश के मशहूर ‘इंडिक्स एनालिटिक्स’ जैसी संस्था से ‘झारखंड डेवलेपमेंट रिपोर्ट’ तैयार कराना, महत्वपूर्ण सर्वे-शोध कराना, देश के नीति निर्धारकों से लिखवाना, विजनरी उद्यमियों, प्रशासकों, अर्थशास्त्रियों वगैरह से परामर्श, इसी ‘झारखंड नवनिर्माण’ के प्रयास की कड़ी हैं.
और इस काम में प्रभात खबर की टीम कई महीनों पहले लगती है. इस बार भी युवा, कल्पनाशील साथी विनय के नेतृत्व में प्रभात खबर दिल्ली की टीम, झारखंड के हमारे सभी वरिष्ठ सहकर्मी व अन्य साथी, सुदूर इलाकों के प्रभात खबर के पत्रकार इस परिशिष्ट की तैयारी में लगे रहे.
पुन: स्पष्ट कर दें कि ऐसे परिशिष्टों, शोधों और विचारों का मकसद है, झारखंड को सर्वश्रेष्ठ राज्य बनाना. पर इसे साकार करना तो आप पाठकों के हाथ में है. और यह संकल्प पुन: याद करने का दिन तो आज ही है.