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-हरिवंश- झारखंड के हालात किसी भी समझदार नागरिक को स्तब्ध करनेवाले हैं. यह अलग प्रसंग है कि झारखंड में इन सवालों पर अब कोई बेचैन नहीं है. शायद पढ़ता भी नहीं और न ही चिंतित होता है. फिर भी यह दर्ज होना चाहिए कि झारखंड में जो हो रहा है, हर पतन-फिसलन के बावजूद वैसा […]

-हरिवंश-

झारखंड के हालात किसी भी समझदार नागरिक को स्तब्ध करनेवाले हैं. यह अलग प्रसंग है कि झारखंड में इन सवालों पर अब कोई बेचैन नहीं है. शायद पढ़ता भी नहीं और न ही चिंतित होता है. फिर भी यह दर्ज होना चाहिए कि झारखंड में जो हो रहा है, हर पतन-फिसलन के बावजूद वैसा किसी दूसरे राज्य में नहीं हो रहा है.
मसलन, झारखंड के स्पीकर का गृह मंत्री पर आरोप! इंदरसिंह नामधारी वरिष्ठ, समझदार और उल-जलूल नहीं बोलनेवाले नेता हैं. गृह मंत्री सुदेश महतो भी बयानबाज या वाचाल नहीं हैं. पर श्री नामधारी के आरोप अत्यंत गंभीर और स्पष्ट (स्पेसिफिक) हैं. उनका कहना है कि गृह मंत्री गुंडों को प्रश्रय दे रहे हैं : एक सीधा आरोप है कि एक दारोगा के तबादले के लिए वह एसपी पर दबाव डाल रहे हैं. गृह मंत्री की प्रतिक्रिया टालू जवाब है. इसलिए इस प्रसंग की जांच जरूरी है.
देश में शायद दूसरा उदाहरण न मिले, जहां स्पीकर ने गृह मंत्री पर इतना सीधा और स्पष्ट आरोप लगाया हो. यह विपक्ष का आरोप नहीं है. यह किसी नागरिक का आरोप भी नहीं है. स्पीकर के पद पर बैठा व्यक्ति, जो शासक घटक पक्ष (एनडीए) द्वारा चुना गया हो, जो अत्यंत महत्वपूर्ण संवैधानिक पद पर है, यह उसका आरोप है. गृह मंत्री का पद कितना महत्वपूर्ण और संवैधानिक है, यह बताने की जरूरत नहीं. दोनों संवैधानिक पदों पर हैं. पर झारखंड की जनता नहीं जानती कि कौन सही है? लोकतंत्र में जनता को जानने का हक है कि दोनों में से कौन सच बोल रहा है.

नामधारी जी या महतो जी? हालांकि झारखंड का विपक्ष उसी तरह दिशाहीन, पस्त और अकर्मण्य है, जैसे सरकार. पर विपक्ष, जागरूक नागरिकों और राजनीतिक दलों को मांग करनी चाहिए कि ‘हाइकोर्ट के रिटायर्ड जज’ श्री नामधारी के आरोप और श्री महतो के जवाब की जांच करें. लाचार मुख्यमंत्री जांच कराने का साहस नहीं करेंगे, क्योंकि उनकी सरकार खतरे में पड़ जायेगी. हालांकि कर्त्तव्यबोध और संवैधानिक जिम्मेदारी का तकाजा है कि इस प्रसंग पर सबसे पहले झारखंड के मुख्यमंत्री पहल करें.

उनकी सरकार के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति पर, स्पीकर पद पर बैठे व्यक्ति ने आरोप लगाया है. झारखंड के मुख्यमंत्री राजनीतिक मर्यादा, संवैधानिक परंपरा और मुख्यमंत्री पद की गरिमा के अनुसार चलें, तो उन्हें सरकार गिरने का जोखिम उठा कर ऐसी जांच का आदेश देना चाहिए. पर वह कई कारणों से यह साहस नहीं करेंगे. राजनीतिक मर्यादा और स्वस्थ संवैधानिक आचरण के अनुसार मुख्यमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति का यह फर्ज भी है कि वह उस संवैधानिक पद की रक्षा के लिए पहल करे और इस प्रकरण-विवाद की जांच कराये.

पर यह नहीं होगा, क्योंकि सरकार दिशाहीन है, विपक्ष श्रीहीन है और जनता में आंदोलन-संघर्ष का माद्दा नहीं बचा है. वरना झारखंड के कुराज के खिलाफ तो जन बगावत ही रास्ता है. एक मंत्री अपने विभाग के ठेके के काम में अपना पोकलेन चलवाता है, यह आरोप एक पूर्व मुख्यमंत्री लगाता है, पर कोई जवाब नहीं देता, क्या झारखंड के किसी मंत्री में यह गैरत और आत्मसम्मान भी नहीं बचा कि वह आरोप लगानेवाले को साबित करने की चुनौती दे.
या तो अपने को निर्दोष साबित करे या आरोप लगानेवाले को गलत सिद्ध करे. पर ये मंत्री चुनौती नहीं देंगे, अपनी पारदर्शिता नहीं दिखायेंगे, क्योंकि कुछ मंत्री चोरी नहीं कर रहे, डकैती डाल रहे हैं.ट्रांसफर-पोस्टिंग में खुलेआम सौदेबाजी हो रही है. 27 लाख में पद बिके हैं. बीडीओ ट्रांसफर के रेट बढ़ गये हैं, क्योंकि रोजगार गारंटी योजना के तहत केंद्र से हर ब्लॉक में गरीबों के लिए पैसे आ रहे हैं, पर ‘गरीबों के पैसे’ राजनीतिज्ञ-अफसर आपस में मिल कर उड़ा रहे हैं. चंबल के डकैत भी गरीबों के हक नहीं मारते. क्या विपक्ष भी इस लूट में साझीदार है? कई बार ऐसा आभास होता है, क्योंकि झारखंड में जो कुछ हो रहा है, उसके खिलाफ न कोई बुलंद आवाज है, न आंदोलन, न धरना, न प्रदर्शन. पूरा विपक्ष ऐसे संगीन सवालों पर कभी सक्रिय नहीं होता.
दिन-दहाड़े रांची-जमशेदपुर रोड पर डकैती होती है, बैंक लूटे जाते हैं, हर किस्म के अपराध होते हैं, पर गृह मंत्री के मौन पर कोई फर्क नहीं पड़ता.जो भी झारखंड को बेहतर बनाना चाहते हैं, उनके सामने एक ही विकल्प है, सार्वजनिक जीवन में शुचिता-पारदर्शिता और ईमानदारी की वापसी के लिए पहल करें. इसके तहत-
(1) झारखंड सरकार के सभी मंत्रियों की संपत्ति की जांच होनी चाहिए.
(2) चर्चित विभागों में हुए ट्रांसफरों के संबंध में हुई अनियमितताओं की जांच भी हाइकोर्ट के जज या राज्य के बाहर के किसी वरिष्ठ प्रशासनिक अफसर द्वारा हो.
(3) झारखंड के मंत्रियों द्वारा अपने-अपने विभागों में लिये गये बड़े फैसलों की जांच की भी मांग हो.
अगर झारखंड में बेहतर भविष्य बनाने का सपना लोगों में बचा है, तो इन मांगों के लिए लोक अभियान चलाना चाहिए.
अन्यथाइस राज्य में अपने-अपने सुरक्षित भविष्य के लिए हम खुदा से ही दुआ करें.

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