-हरिवंश-
झारखंड सरकार के खिलाफ अब कांग्रेस भी प्रदर्शन कर रही है. इस सरकार की मुख्य सूत्रधार कांग्रेस है. केंद्र की सरकार में भी निर्णायक पार्टनर. यानी सत्ता का सूत्रधार भी और विरोध भी. दोनों भूमिकाएं साथ-साथ. चित्त भी मेरी, पट भी मेरी. राज्य कांग्रेस की भूमिका में अचानक यह बदलाव क्यों?
दो कारणों से. पहला, अपराधों के खून के छींटे, गड्ढे के रूप में तब्दील सड़कों से उड़ते कीचड़ से बदरंग होते पार्टी के चेहरे, पसरते अंधेरे (बिजली आपूर्ति में अराजकता) से बदशक्ल दीखती अपनी सूरत, अनियंत्रित भ्रष्टाचार से उफनते आक्रोश, लॉ एंड ऑर्डर पर उठते गंभीर सवालों, जैसे अनेक मुद्दों से राज्य कांग्रेस अब मुक्ति के लिए कसमसा रही है.
सत्ता में बैठे हुए प्रतिनायक का चोंगा अचानक वह उतार नहीं सकती, इसलिए वह राज्य सरकार (जिसकी सत्ता कांग्रेस के सौजन्य से है) का विरोध कर नायक बनना चाहती है. भारतीय मुहावरे में कहें, तो सरकार के पापों से मुक्ति पाने के लिए वह गंगा नहाने को बेचैन है. फिर पाक साफ होने और पवित्र होने को आतुर. पर वह भूलती है कि गंगा नहा कर, वह फिर पुराने कुंड में ही लौट रही है, जहां बदशक्ल होना उसकी नियति है.
कांग्रेस की बेचैनी का दूसरा कारण प्रमुख है. दिल्ली कांग्रेस ने झारखंड कांग्रेस का बॉस अजय माकन को बनाया है. अपने आचार-विचार और बयानों से, अजय माकन भिन्न कांग्रेसी लगते हैं. युवा, समझदार और जन समस्याओं के प्रति संवेदनशील. सत्ता मैनेजरों को मैनेजेबुल नहीं लग रहे. वह नयी पीढ़ी के उन कांग्रेसी नेताओं में से लगते हैं, जो काम से सरोकार रखते हैं (अंगरेजी में कहे, तो ही मिंस बिजनेस). कांग्रेस के परंपरागत मूल्यों के प्रति भी वह सजग लगते हैं. इसलिए कांग्रेस की साख को वह और घटने देने की इजाजत देने को तैयार नहीं दिखते.
पर अजय माकन की सीमा भी साफ है. झारखंड सरकार का भविष्य लालू प्रसाद के हाथों में है. लालू प्रसाद केंद्र में कांग्रेस के सबसे विश्वस्त पार्टनर है.उनकी इच्छा के खिलाफ कांग्रेस आलाकमान नहीं जायेगा.
शिबू सोरेन का अंतर्विरोध अलग है. वह अब बड़े उपदेशक की भूमिका में हैं. अगर वह सचमुच अपने बयानों के प्रति गंभीर होते, तो झारखंड का नया इतिहास गढ़ते. उन्हें और उनकी पार्टी को ऐतिहासिक अवसर मिला था. लेकिन शिबू सोरेन और उनकी पार्टी ने, न सिर्फ ऐतिहासिक अवसर खोया, बल्कि राज्य के अराजक हाल के लिए सबसे अधिक जिम्मेवार वह और उनकी पार्टी हैं. बयान कुछ और, काम कुछ और. सरकार के सबसे बड़े घटक दल वह हैं, इसलिए झारखंड के अराजक हाल के लिए सबसे अधिक जिम्मेवारी उनकी और उनके दल की है.
सरकार के एक और बड़े घटक दल राजद की स्थिति? सत्ता लाभ तो यह दल लेता है, लेने को पल-पल आतुर भी लगता है, पर राज्य के चौतरफा बढ़ते संकट का बोझ नहीं उठाना चाहता. यानी पुण्य चाहिए, पर पाप में भागीदार न बनें.
पर चाहे कांग्रेस हो या झामुमो या राजद, इनकी जड़े तो अंतत: जनता के बीच है. इन दलों के राजनीतिक संगठन हैं. इन संगठनों से, इन दलों के बड़े नेताओं को भयावह जमीनी हालात की सूचनाएं मिल रही हैं. इन दलों को इससे डर लग रहा है. क्योंकि देर-सबेर इन दलों को जनता के बीच लौटना ही है. पर डर यह है कि किस मुंह से लौटें और कैसे मास (जनता) को फेस करें? इसलिए राज्य की राजनीति में अचानक उबाल बढ़ गया है.
07-06-2006
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