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-दर्शक- मधु कोड़ा व उनके साथियों पर पड़े छापों की खबरों से देश स्तब्ध है. पिछले तीन-चार दिनों से राष्ट्रीय अखबारों-चैनलों की सुर्खियां ये छापे ही हैं. इंटरपोल, प्रवर्तन निदेशालय के अफसर रांची में हैं. आयकर विभाग के बुलावे पर. आयकर के आला अफसर भी रांची पहुंचे हैं. स्पष्ट है कि सरकार की नजर में […]

-दर्शक-

मधु कोड़ा व उनके साथियों पर पड़े छापों की खबरों से देश स्तब्ध है. पिछले तीन-चार दिनों से राष्ट्रीय अखबारों-चैनलों की सुर्खियां ये छापे ही हैं. इंटरपोल, प्रवर्तन निदेशालय के अफसर रांची में हैं. आयकर विभाग के बुलावे पर. आयकर के आला अफसर भी रांची पहुंचे हैं. स्पष्ट है कि सरकार की नजर में मामला कितना गंभीर है. है भी यह गंभीर प्रकरण. आजादी के बाद भ्रष्टाचार का कोई इतना बड़ा मामला सामने नहीं आया.

नेहरूजी के कार्यकाल में कृष्णमेनन रक्षा मंत्री थे. सेना के लिए जीप खरीद हुई. पता चला, उसमें कुछेक लाख रुपयों की गड़बड़ी थी. इंदिराजी के जमाने में चुनाव लड़ने के लिए दो मुख्यमंत्रियों ने मिल कर चुनाव कोष में चार करोड़ एकत्र किये. ऐसी चर्चा सामने आयी, तो राजनीति में यह गंभीर मुद्दा बन गया. ‘74 आंदोलन का निर्णायक मुद्दा था, भ्रष्टाचार. फिर 65 करोड़ का बोफोर्स राष्ट्रीय मुद्दा बना. केंद्र में सरकार बदल गयी. फिर सामने आया लगभग 900 करोड़ का पशुपालन घोटाला. अब झारखंड से सूचना मिल रही है कि हजारों करोड़ बाहर भेजे गये. देश के अंदर अलग से हजारों करोड़ की तिजारत हुई.

साफ है कि लगातार भ्रष्टाचार की राशि, मात्रा बेतहाशा ब़ढ़ रही है. न इस पर कोई अंकुश है, न रोक-टोक. क्या भ्रष्टाचार ऐसे ही बढ़ता रहेगा? इसकी कीमत है, गरीबी, किसानों की बदहाली, सड़कों का न होना, खराब स्वास्थ्य, शिक्षा की अव्यवस्था, देश का कमजोर होना वगैरह-वगैरह. विशेषज्ञ फरमाते हैं, भ्रष्टाचार देशद्रोह से भी अधिक गंभीर और खतरनाक है. बड़े अखबार बता रहे हैं कि अब तक 4000 करोड़ के लेन-देन के संकेत मिले हैं. टाटा स्टील जैसी बड़ी साखवाली कंपनी अपने जन्म के 75 वर्षों बाद अपना टर्नओवर 10,000 करोड़ से अधिक कर पायी. पर नेताओं का 2-1 वर्षों में यह 4000 करोड़ का टर्नओवर?

देश से सीधे विदेश इतना पैसा भेजने का शायद यह पहला मामला होगा. आजादी के बाद मनी लाउंड्रिंग से हजारों करोड़ बाहर. कोड़ाजी 23 महीने बतौर मुख्यमंत्री रहे. उपलब्ध तथ्यों के अनुसार मुख्य करामात इन 23 महीनों में हुए. वैसे भी कोई पूछ नहीं रहा कि इसमें शरीक पात्रों की संपत्ति में बेतहाशा वृद्धि कैसे हुई? कोड़ाजी की कुल ज्ञात संपत्ति 2004 में चुनाव लड़ते समय 25 लाख की थी. ऐसा उन्होंने शपथ पत्र में बताया था. 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ते समय शपथ पत्र दिया कि उनके पास एक करोड़ 28 लाख की संपत्ति है. यह उनकी ज्ञात संपत्ति है. अज्ञात की बात तो ईश्वर जानें. ज्ञात संपत्ति में इतनी वृद्धि किस फार्मूले के तहत?

अचानक संपत्ति वृद्धि का कौन सा मॉडल कोड़ाजी के लिए और कैसे कारगर हुआ? क्योंकि वह सत्ता में थे. सत्ता से संपत्ति बढ़ी. यह स्पष्ट है. सत्ता का कितना दुरुपयोग हुआ, यह तो जांच से ही पता चलेगा. इसी तरह उनके संगी-साथी, बिनोद सिन्हा, संजय चौधरी वगैरह कैसे कुछेक वर्षों (सबसे अधिक 22 महीनों में जब वह मुख्यमंत्री रहे) में दूध बेचते-बेचते, खैनी-बालू बेचते-बेचते, सड़क से उठ कर अरबपति हो गये?

अर्थशास्त्र का वह कौन सा नुस्खा और चमत्कार है, जिससे यह जादू हुआ? कैसे 2-4 वर्षों में लोग हजारों करोड़ में खेलने लगते हैं? बिना कल कारखाना लगाये, बिना उत्पादन किये, कहां से पूंजी की बरसात होती है? रातोंरात फटेहाली से अरबों में खेलना-खाना, सड़क से उठ कर दुनिया के कोने-कोने में निवेश करना. यह किस जादुई या अलीबाबा (व चालीस चोर) के चमत्कार से संपन्न हुआ है? आर्थिक विकास का यह झारखंडी मॉडल, देश के गरीबों के काम आयेगा. इसलिए भी इसकी गहन जांच- पड़ताल जरूरी है.

देश स्तब्ध है, इस लूटकांड से, पर झारखंड में क्या हालात हैं? यहां चुनाव होने हैं. यहां से भ्रष्टाचार का देशव्यापी विस्फोट हुआ है. पर यहां न वह बेचैनी है, न राजनीतिक प्रतिकार की झलक. सामान्य दिनों में ऐसा प्रकरण गंभीर मुद्दा बनता. राजनीतिक विस्फोटक की भूमिका में. इससे जुड़े सामाजिक-आर्थिक सवालों से समाज बेचैन होता? आमतौर से चुनावों में ऐसे मुद्दे, तो आग में घी का काम करते हैं. पर झारखंड की राजनीति में यह सवाल आंधी या भूचाल नहीं पैदा कर रहा.

याद करिए, बोफोर्स घोटाला, जब फूटा. पशुपालन घोटाला सामने आया, तब क्या हुआ? ‘74 में तुलमोहन राम सांसद थे. एकाध लाख की राशि लेनदेन का उन पर आरोप लगा था, तो क्या स्थिति बनी? राजनीतिक भूचाल आ गया. धरना, तूफान, प्रतिकार, राजनीतिक मोरचेबंदी, जांच के लिए आंदोलन वगैरह-वगैरह. पर झारखंड का राजनीतिक माहौल, इस स्तब्धकारी प्रकरण के बावजूद खामोश है, क्यों?

1. भाजपा, मुख्य विपक्षी दल है. चुनाव में उसके लिए यह ईश्वरीय सौगात है. उसे तो आगे बढ़ कर यह प्रकरण-खुलासा लोक लेना चाहिए था. पूरे झारखंड में इस मुद्दे-सवाल को लेकर पसर जाना चाहिए था. घर-घर. द्वार-द्वार. पर वह खामोश-स्तब्ध है? क्यों? कहीं इसकी आंच उन तक तो नहीं पहुंच रही? वरना बोफोर्स और पशुपालन पर रातोंरात सर पर आसमान उठानेवाले इस मामले की नजाकत नहीं समझ रहे, यह तो नहीं माना जा सकता? यह आजाद भारत का सबसे संगीन मामला है. लूट का. मनी लाउंड्रिग का. भाजपा के विशेषज्ञ यह नहीं समझ पा रहे? फिर चुप्पी क्यों?

2. कांग्रेस की चर्चा से ही एक फिल्मी गाने की पंक्ति याद आती है. तुम्हीं ने दर्द दिया, तुम्हीं दवा दोगे. कांग्रेस ने ही कोड़ा सरकार की सौगात-उपहार झारखंड को दिया. यह सही है. पर एक ईमानदार प्रधानमंत्री के कारण इतने बड़े भ्रष्टाचार से परदा उठा है, यह कांग्रेस की बड़ी पूंजी है. इस पूंजी को लेकर अतीत की अपनी गलतियों को स्वीकारते हुए कांग्रेस अपनी जमीन बना सकती है. नये राज्यपाल के कार्यकाल में हुए बुनियादी काम, राहल गांधी की छवि, देश में कांग्रेस का बढ़ता प्रभाव और प्रधानमंत्री की साख, ये कांग्रेस की पूंजी हैं.

कोड़ा जांच प्रकरण का लाभ भी कांग्रेस पा सकती है. बशर्ते वह भी घर-घर पहुंचे. अपनी भूल कबूले. पश्चाताप करे और कहे कि अब जो कार्रवाई हो रही है, उसका हम खुलेआम समर्थन करते हैं. इसे आगे रोकने के ठोस विकल्प-एजेंडा ये हैं. पर कांग्रेस यह कर नहीं पायेगी. क्योंकि इस पश्चाताप की बेदी पर राज्य के कई महत्वपूर्ण कांग्रेसियों की बलि देनी पड़ेगी. क्योंकि कोड़ा सरकार के बेनीफिशियरी (लाभुक) ये भी हैं. इन लाभुक कांग्रेसियों के रहते, इस भ्रष्टाचार प्रकरण से लाभ उठाने की नैतिक स्थिति में कांग्रेसी नहीं हैं.

झारखंड विकास मोरचा, अपनी पूंजी मानता है, बाबूलाल मरांडी की स्वच्छ छवि. पर वह भी इस संगीन मामले पर चुप है. उसे बताना चाहिए कि वह इस मुद्दे पर क्या सोचता है और सत्ता में आने पर वह क्या कदम उठायेगा? क्या उसके पास कैंसर बन चुके भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई पुख्ता प्लान है? यह मामला देश के सबसे चर्चित एवं सबसे बड़े मामलों में से एक है. क्या जेवीएम इसकी सीबीआइ जांच करायेगा? राज्य का विजिलेंस डिपार्टमेंट विभाग बदहाल है, बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं, पर्याप्त लोग नहीं हैं, अच्छे वकील नहीं हैं. क्या भ्रष्टाचार के मामलों की त्वरित कार्रवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाना चाहेगा जेवीएम? झारखंड के चुनाव में ही हर दल को इस मामले पर अपना रुख साफ करना चाहिए सार्वजनिक वायदा कर. क्योंकि इस राज्य का सबसे बड़ा मुद्दा भ़्रष्टाचार ही है.

इस सवाल पर झामुमो सांसत में है. उसे समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करे. कोड़ा सरकार का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ रहा है झामुमो, पर हर संकट-संशय ही मौका देता है. भ्रष्टाचार के मौके पर झामुमो को अपना स्टैंड साफ करना चाहिए. सार्वजनिक बयान देकर. सार्वजनिक स्टैंड लेकर. यही मौका भी है, जब झामुमो अपनी साख बनाने का बड़ा काम कर सकता है. झारखंड के सबसे बड़े और अहम मुद्दे भ्रष्टाचार पर झारखंड का सबसे मजबूत क्षेत्रीय दल चुप या खामोश रहे, तो क्या अर्थ निकलेगा? अतीत की बड़ी से बड़ी भूल भी पश्चाताप या नये संकल्प से ही सुधरती है.

राजद, लालूजी ने कहा है कि अब वह कोड़ा जैसे लोगों से मदद नहीं लेंगे. उल्लेखनीय है कि कोड़ा के सबसे बड़े मददगार लालूजी ही रहे हैं. पर इसकी क्या गारंटी है कि कल झारखंड में कोई नया निर्दलीय खड़ा नहीं हो, उसे फिर ऐसे ही समर्थन ये दल न दें? कोड़ा खुद पहले ऐसे नहीं रहे होंगे. उस पद पर एक निर्दलीय के बैठने की कीमत है, कोड़ा बन जाना. कोड़ा अब व्यक्ति नहीं, विशेषण हैं. कोड़ा मुंह खोल दें, तो तूफान आ जायेगा.

इसलिए होना यह चाहिए कि लालू प्रसाद जैसे मंजे, चतुर और अनुभवी नेता अब यह कहें कि कोड़ा प्रयोग भारी भूल थी. अब भविष्य में किसी निर्दलीय के साथ ऐसा प्रयोग नहीं करेंगे.

निर्दलीय सरकार बनते समय ‘प्रभात खबर’ ने आगाह किया था. सात-आठ लेख लिख कर. चेताया था कि आग से मत खेलिए, लोकतंत्र झुलस जायेगा, तब राजद को पत्रकार सनकी, फालतू और बेकार नजर आ रहे थे. लालूजी ने कोड़ा के बारे में कहा था कि मधु में मधु है, और कोड़ा भी है. वह मधु भी देंगे और कोड़ा भी बरसायेंगे. मधुजी ने भ्रष्टाचार पर कोई कोड़ा तो नहीं चलाया, लेकिन राज्य का मधु सोख लिया.

मधु कोड़ा इस रास्ते पर चले क्यों? इस पद पर बैठ कर उन्हें लगा कि वह दूसरों के लिए धनार्जन कर रहे हैं, तो अपने लिए क्यों नहीं? कोड़ा एंड कंपनी खुलेआम कहती, मानती और साबित करती रही कि पैसे से सब मैनेजेबल है, बिकाऊ है. यह मानस ही खतरनाक है, पर आज की राजनीति का सफल मानस यही है.

राजद या लालू प्रसाद, देश-झारखंड की बड़ी सेवा करते अगर कहते कि कोड़ा समर्थन के पश्चाताप में हमारा संकल्प है, हम भविष्य में इस राजनीतिक अपसंस्कृति के खिलाफ अभियान चलायेंगे. किसी निर्दल के हाथ सत्ता नहीं सौंपेगे.

वामपंथी हैं. भाकपा है, माकपा है, भाकपा माले है. ये बिखरे हैं, पर शुद्ध ताकत हैं. गरीबों की बात करते हैं. अभी भी सिद्धांत-आदर्श शेष हैं. विचार भी हैं. यह ताकत भ्रष्टाचार के खिलाफ सही लड़ाई लड़ सकती है. माले के निवर्तमान विधायक विनोद सिंह या स्वर्गीय महेंद्र सिंह की भूमिकाएं आदर्श हैं. वामपंथियों की यह जमात मिल कर भ्रष्टाचार को सबसे बड़ा मुद्दा बनाये, संकल्प करे कि इस प्रकरण की सीबीआइ जांच करायेंगे. पुराने किसी मामले में गड़बड़ी की आशंका हो, तो उसकी भी जांच कराने की मांग करेंगे. वामपंथी अपने बूते सत्ता में आने की तो स्थिति में नहीं हैं, बिखरे हैं, पर राज्य में सबसे सशक्त जनांदोलन वे खड़ा कर सकते हैं. विधानसभा के अंदर कारगर ढंग से इस सवाल को उठा सकते हैं. इस दृष्टि से विनोद सिंह की भूमिका धारदार रही है, पर अनेक विनोद सिंह विधानसभा में तभी पहुंचेंगे, जब वाम ताकतें इस लूट संस्कृति के खिलाफ प्रभावी जनांदोलन खड़ा कर सकें. चुनाव के दौरान ये छापे एक तरह से वामपंथ के लिए वरदान हैं, मुद्दे की दृष्टि से.

अब नक्सल भी चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में हैं. ऐसी सूचना है कि अनेक लोग जगह-जगह से परचा भरेंगे, जब ऐसी ताकतें लोकतंत्र को अपना रास्ता मानेंगी, संसदीय राजनीति में आयेंगी, तो उन्हें भी अपना रुख और एजेंडा स्पष्ट करना होगा.

अन्य फुटकर दल भी हैं, एनसीपी, फारवर्ड ब्लॉक, झापा, और आजसू वगैरह. इन्हें भी झारखंड के कैंसर (भ्रष्टाचार) पर अपनी नीति सार्वजनिक करनी होगी. इनके लिए भी अपने अतीत के दागों से मुक्त होने का मौका है. अगर भविष्य में ये सरकार बनाते हैं या उसमें शरीक होते हैं, तो भ्रष्टाचार के खिलाफ इनके क्या कदम होंगे? गलतियां जीवन का हिस्सा हैं. इंसान भूलों से ही सीखता है. जो दल इंसान या देश गलतियों से सबक लेते हैं, वे ही नया रास्ता बनाते हैं, बताते हैं, इस दृष्टि से ये छोटे-छोटे दल भी झारखंड की राजनीति में निर्णायक एजेंडा बना सकते हैं.

जब मधु कोड़ा मुख्यमंत्री बने थे, उन्होंने कहा था कि अर्जुन मुंडा के कार्यकाल में हुए काया की वे जांच करायेंगे. फिर कोड़ा मुकर क्यों गये? कांग्रेस-राजद ने भी यही कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता है एनडीए सरकार के खिलाफ जांच कराना. पर वे मुकर गये. क्या उन्हें कोड़ा सरकार के भावी कामों की आहट थी? या जो काम एनडीए सरकार यूपीए की निगाह में धीमी गति से कर रही थी, उसे तेज गति से करने के लिए कोड़ा को शिखंडी के रूप में आसीन किया गया?

यह तो हुई दलों की भूमिका पर चर्चा, पर जनता की भूमिका क्या हो, मतदाता कैसा माहौल बनाये, जनसंगठन, स्वैच्छिक संगठन, सचेत नागरिक, सिविल सोसाइटी वगैरह क्या कर सकते हैं? दुर्गा उरांव, कुमार विनोद, राजीव शर्मा वगैरह जैसे लोगों की लोकहित याचिकाओं ने झारखंड का राजनीतिक दृश्य बदल दिया है. इन्होंने कोर्ट में मुकदमे ले जाकर इतिहास बनाया है. ऐसे नागरिक एवं जनसमूह चुनाव लड़ रहे राजनीतिक दलों, संभावित विधायकों को बाध्य कर सकते हैं कि वे राज्य के महत्वपूर्ण सवालों पर अपने दल के दृष्टिकोण स्पष्ट करें.

1. मसलन राज्य का विजिलेंस डिपार्टमेंट खराब हाल में है. न पर्याप्त अफसर हैं, न बेहतर वकील हैं, न संसाधन हैं, जबकि झारखंड का सबसे अहम मुद्दा भ्रष्टाचार है. उल्लेखनीय है जब झारखंड के पूर्व मंत्रियों पर पीआइएल हुआ, तो सुप्रीम कोर्ट से महंगे वकील रांची लाये गये, इन मंत्रियों के खिलाफ मुकदमे न चले, इसकी पैरवी करने के लिए. क्यों महंगे वकील बुलाये गये? जनता के पैसे से यानी सरकारी कोष से. प्रयास यह था कि सरकारी सार्वजनिक पैसे के गबन करे और उस गबन पर मुकदमा न चलने देने के लिए भी सरकारी कोष से ही सुप्रीम कोर्ट के वकील बुलाये. चोरी और सीनाजोरी दोनों. गांव की भाषा में इसे कहते हैं, जबरा मारे भी और रोने भी न दे. कोशिश यह थी कि पूर्व मुख्यमंत्री या पूर्व मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच न हो, मुकदमा न चले, याचिका अस्वीकृत हो जाये. यानी दुर्दशा देखिए. जनता को लूटा जा रहा है, और जनता के कर के सरकारी पैसे से ही इस लूट के खिलाफ जांच न हो, यह बहस करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के जाने माने वकील बुलाये जाते हैं. दूसरी ओर इन मंत्रियों पर जो मामले चल रहे हैं, उसे लड़ने के लिए राज्य सरकार के वकील हैं, जिसे पीपी कहते हैं, उन्हें महज चार सौ रुपये देते हैं. कम पैसे पर वकील. न उनके अंदर उत्साह है, न ऊर्जा और न मोटिवेशन. इस कम पैसे में वे कैसे श्रेष्ठ काम कर सकते हैं. राजनीतिक दल बताये कि सत्ता में आने पर वे इसे ठीक करने के लिए क्या करेंगे?

2.कोड़ा मामले की जांच सीबीआइ से हो या न हो? विजिलेंस, आयकर, प्रवर्तन, इंटरपोल अपनी-अपनी जांच करेंगे, पर पूरी जांच एक जगह लाकर ही परिणाम निकल सकता है. वह सीबीआइ ही कर सकती है. जनता, दलों से पूछे कि अगर आप सत्ता में आते हैं, तो आप इस घटना की जांच सीबीआइ से करायेंगे या नहीं?

3. विजिलेंस डिपार्टमेंट के मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए स्पेशल फास्ट ट्रैक ट्रायल कोर्ट बनने चाहिए. याद करिए, बिहार की सबसे बड़ी चुनौती दो थी-अपहरण और अपराध. मुख्यमंत्री बनने के पहले नीतीश कुमार ने जनता को आश्वासन दिया था कि इन दोनों मुद्दों का समाधान निकालेंगे. उन्होंने फास्ट ट्रैक कोर्ट के माध्यम से अपराध से जुड़े मामलों की त्वरित सुनवाई करायी. इस तरह बड़े-बड़े मामलों में कार्रवाई हुई. उसी तरह झारखंड में भ्रष्टाचार सबसे संगीन मुद्दा है. मंत्री के पीए के पास 14 करोड़ की राशि मिलती है. ऐसे अनगिनत मामले हैं. क्या भ्रष्टाचार को रोकने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने पर राजनीतिक दल सहमत हैं या नहीं, इन्हें अपना स्टैंड साफ करना चाहिए?

4. झारखंड में हुए संगीन भ्रष्टाचारों में बड़े पैमानों पर ब्यूरोक्रेट भी शामिल रहे हैं. एक विभाग के सचिव के रिटायर होने पर विदाई पार्टी दी गयी. उसमें बतौर मुख्यमंत्री कोड़ाजी पांच घंटे बैठे रहे. इस तरह राजनीतिज्ञों के बाद अब ब्यूरोक्रेटों की जांच, राजनीतिक एजेंडा पर होनी चाहिए. जनता, राजनीतिक दलों पर दबाव डाले कि आप वादा करें कि भ्रष्ट नौकरशाहों के खिलाफ सख्त कार्रवाई आरंभ करायेंगे.

5.राजनीतिक दल यह वायदा करें कि वे अब निर्दलीयों को सिरमौर बना कर न सरकार बनायेंगे, न उनके पिछलग्गू बनेंगे.

6. हर संभावित विधायक से जनता यह वादा ले कि चुनाव जीतने के बाद वह छुप-छुप कर नहीं भागेगा. न जयपुर जायेगा, न छत्तीसगढ़, न केरल, न हरियाणा के रिसोर्ट में. झारखंड के बाहर बैठ कर सौदेबाजी से सरकार नहीं बनायेगा, जो इस बार हुआ है. जनता, इन दलों और विधायक रहे लोगों से यह भी पूछे कि आप बतायें 2004 से 2009 के बीच प्रति व्यक्ति आमद कितनी बढ़ी, पर इसी अवधि में अनेक बार संशोधन करके विधायकों ने अपना वेतन, देश के सभी राज्यों में सबसे अधिक कैसे कर लिया. आज झारखंड के विधायक देश के सभी राज्यों से सबसे अधिक विधायक हैं.

सबसे अधिक तनख्वाह पानेवाले विधायक हैं और जनता सबसे गरीब. इसके लिए कौन दोषी है? यह सवाल जनता दलों से विधायक और मंत्री रहे और लोगों से बार-बार पूछे. हजार बार पूछे. नेताओं की जाति, धर्म, समुदाय और वोट मैनेज करने की कला को धता बताए. अगर जनता ने ये सवाल पूछने शुरू किये, तो झारखंड में बदलाव की पहली शुरुआत होगी. मुक्तिबोध की कविता की एक पंक्ति है- एक पांव रखता हूं, हजार राहें फूट पड़ती हैं. देखने में ये सवाल या जन-चेतना जगाने के प्रयोग मामूली हैं, पर हम करके देखें. झारखंड बड़े बदलाव के द्वार पर खड़ा मिलेगा.

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