रांची: संस्कृत विषय में गोल्ड मेडल पानेवाली मुन्नावती को अब अपनी मां के इलाज की चिंता है. पिता को खोने के बाद वह अपनी मां को खोना नहीं चाहती. उसी मां की दोनों किडनी खराब है. इलाज महंगा है, लेकिन पैसे नहीं है.
मुन्नावती कहती है कि अगर सरकारी नौकरी मिल जाती, तो वह अपनी मां का बेहतर इलाज कराती. मेरी मां ने एक साड़ी वर्षो पहनी है. एक ही साड़ी पहन कर हमें पढ़ाया है. वह शिक्षा का महत्व बखूबी समझती है. मैंने उसके चेहरे पर खुशी नहीं देखी. आज मेरा फर्ज बनता है कि मैं मां के चेहरे पर खुशी ला सकूं. लापुंग के दुलक्ष्चा गांव की रहनेवाली मुन्नावती ने झारखंडी भाषा को छोड़ कर संस्कृत को चुना और इस विषय में दक्षता हासिक की. आज वह धड़ल्ले से संस्कृत के ोक का उच्चरण करती है.
गरीबी में कभी बालू उठाया, तो कभी सीमेंट
मुन्नावती ने बताया कि पढ़ाई के दौरान जब भी मौका मिलता, वह रेजा का काम करती. रेजा का काम कर एक-एक पैसा जोड़ा और उससे पढ़ाई की. मैंने रोड, तालाब, नाली में रेजा का काम किया. जहां मकान बनता है, वहां बालू-सीमेंट उठाया. रेजा का काम करनेवाली लड़कियों से कहना चाहती हूं कि पढ़ाई मत छोड़ो, मेहनत का फल तुम्हें जरूर मिलेगा. मुन्नावती की इच्छा है कि वह लेररक बने. वर्तमान में एमफील कर रही हूं. लेरर बन कर अपने क्षेत्र के लोगों को शिक्षित करने की तमन्ना है.