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नियुक्ति नियमावली में बदलाव करे सरकार: बंधु

रांची: राज्य सरकार द्वारा वर्तमान में जो शिक्षक भरती प्रक्रिया प्रारंभ की गयी है, इससे झारखंड के स्थानीय युवकों को काफी कम संख्या में नौकरी मिलेगी. इससे राज्य के अभ्यर्थी बेरोजगार होंगे और स्थानीय लोगों में आक्रोश होगा. विधायक बंधु तिर्की ने शनिवार को संवाददाताओं के समक्ष ये बातें कहीं. श्री तिर्की ने कहा कि […]

रांची: राज्य सरकार द्वारा वर्तमान में जो शिक्षक भरती प्रक्रिया प्रारंभ की गयी है, इससे झारखंड के स्थानीय युवकों को काफी कम संख्या में नौकरी मिलेगी. इससे राज्य के अभ्यर्थी बेरोजगार होंगे और स्थानीय लोगों में आक्रोश होगा.

विधायक बंधु तिर्की ने शनिवार को संवाददाताओं के समक्ष ये बातें कहीं. श्री तिर्की ने कहा कि शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया में जिन 14 हजार को बहाल किया जाना है, उनमें से मात्र चार हजार ही झारखंड के होंगे.

बाकी 10 हजार बाहरी होंगे. ऐसे में हम सभी दलों के नेताओं से आग्रह करेंगे कि वे ऐसी नीति बनाये जिससे स्थानीय युवाओं को अधिक से अधिक रोजगार मिले. इसके लिए नियुक्ति नियमावली में भी बदलाव किया जाये. श्री तिर्की ने कहा कि देश के बाकी सारे राज्यों में नियुक्ति नियमावली स्थानीय युवाओं को देख कर बनायी जाती है, परंतु यहां सबके लिए दरवाजा खुला छोड़ दिया गया है. श्री तिर्की ने राज्य के युवाओं से आह्वान किया कि वे अपनी मांगों को लेकर सड़क पर उतरें.

मुख्यमंत्री से रखेंगे मांग
श्री तिर्की ने कहा कि नियुक्ति नियमावली में बदलाव की मांग को लेकर वह जल्द ही सीएम से मिलेंगे. उनसे मिल कर इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग करेंगे. श्री तिर्की ने कहा कि मुख्यमंत्री ने हाल ही में कहा था कि स्थानीय नीति पर राजनीति हो रही है. मैं उनसे मांग करता हूं कि कौन नेता राजनीति कर रहा है, उनके नामों का खुलासा करें.

बंधु हुए नाराज : जब श्री तिर्की से यह पूछा गया कि आप जब मानव संसाधन विकास मंत्री थे,तो उस समय आपने क्या किया. इस पर बंधु तिर्की नाराज हो गये. उन्होंने कहा कि जिस मुद्दे पर बात कर रहे हैं, उसी मुद्दे को लेकर सवाल किया जाये.

हम क्या किये थे और दूसरा क्या किया. इन सब सवालों के कारण मूल मुद्दे से सबका ध्यान भटक जायेगा.सीएनटी एक्ट की धारा 71-ए को खत्म करे सरकार: श्री तिर्की ने राज्य सरकार से सीएनटी एक्ट के धारा 71-ए(3) को खत्म करने की मांग की. इससे आदिवासियों के अधिकार सुनिश्चित नहीं होते. सीएनटी एक्ट की मूल भावना ही समाप्त हो जाती है. काश्तकारी अधिनियम का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता है. अत: इसे समाप्त कर देना चाहिए.

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