-हरिवंश-
फादर इग्नास को निजी तौर पर नहीं जानता था, पर उनकी हत्या से पता चला, झारखंडी समाज ने एक रत्न खो दिया है. वह क्यों मारे गये? क्योंकि दो झगड़ते समूहों में वह बीच-बचाव कराने गये थे. वह आपसी हिंसा-क्रोध-तनाव रोकना चाहते थे. ध्यान रखिए, हमारा समाज कहां पहुंच गया है? इस आत्मकेंद्रित होते समाज में एक इंसान हमें स्मरण कराने आया था कि हम इंसान हैं और इंसानों की तरह आपस में बरताव करें. आज चौराहे पर दो लोग झगड़ते हैं, हिंसक होना चाहते हैं, तो कोई बीच-बचाव करने नहीं आता. कहते हैं, झंझट कौन मोल ले?
पर फादर इग्नास ने जान-बूझ कर झंझट मोल लिया. वह पुरोहित थे. वह धर्म का काम करते थे. जहां तनाव हो, हिंसा हो, झगड़ा हो, वहां धर्म का काम ‘अमन-चैन’ कायम करना है. यही धर्म का उदात्त रूप है. झगड़ते मनुष्यों में विवेक वापस लाना, ‘यही प्रभु’ का काम है. प्रभु का यह काम करते हुए, फादर इग्नास मार डाले गये. हम सबको ईसा को सूली पर लटकानेवालों और उनके अंतिम प्रसंग को स्मरण कर प्राश्चित करना चाहिए, ‘हे प्रभु! माफ करना, हमें एहसास नहीं है, कि हम क्या (क्रूरतम अपराध) कर रहे हैं?’
हिंदू-मुसलमान विवाद के दौरान इसी तरह दो गुटों के बीच, बीच-बचाव करते गणेश शंकर विद्यार्थी, मार डाले गये. गांधीजी ने उनकी मौत से पूरी मानवता को सबक लेने की सलाह दी. यह कामना भी की कि हे ईश्वर! यह आपसी घृणा शांत कराने के ईश्वरीय काम में जिस तरह गणेश शंकर जी शहीद हुए, मेरी भी मौत ऐसी ही हो.
गांधीजी भी इसी नफरत के शिकार हुए. फादर इग्नास की मौत से हम झारखंडवासी सीखें. एक श्रेष्ठ इंसान, प्रभु का सच्चा पुजारी, हम झारखंडियों में आपसी विवाद न हो, कटुता न बढ़े, इसके लिए प्रयास करते हुए मार डाला गया
पहली चुनौती…
इससे बड़ी कोई कुरबानी नहीं हो सकती. यह घटना हम झारखंडियों के विवेक-संवेदनशील मन को बेचैन करने के लिए काफी है. अब तो हम ठहरें और हिंसा रोकें. तनाव कम करें, फिर बैठ कर हर विवाद पर बात करें. दुनिया में तनाव-हिंसा से अब तक कोई समाधान नहीं निकला है और हमारे झारखंड के सामने कितनी चुनौतियां हैं?
कल गिरिडीह के भेलवाघाटी में 15 निर्दोष लोग मारे डाले गये. समाज के सबसे गरीब लोग. निहत्थे लोग. वे डर से गांव से पलायन कर रहे हैं. अगर ऐसे गरीबों, बेकसूरों और निहत्थों की क्रूर हत्या से, घर-जलाने से, बच्चों के स्कूल उड़ा देने से समाज में क्रांति हो रही है, तो क्रांति का नया शास्त्र लिखा जाना चाहिए.
सिमडेगा में जो रंजीत प्रसाद क्रिटिकल हैं, या जो अन्य घायल हुए, या लोहरदगा में जो रिक्शा चालक बसुआ उरांव मरा, या दुमका के तनाव में जो शिकार हुए, खून बहा, क्या इन सबके खून का रंग अलग-अलग है? आज हमारी पहली चुनौती है कि मनुष्य बने रहें!