रांची: सितंबर 1975 की वो शाम आज भी याद है. पूरा प्लाजा हॉल खचाखच भरा हुआ था. लोग बेसब्री से अपने चहेते गायक मन्ना डे का इंतजार कर रहे थे. ‘जोदि कागोजे लेखो नाम..’ गाने के साथ शुरू किये और एक के बाद एक कई बेहतरीन गाने पेश किये. मन्ना डे को लाइव सुनकर रांचीवासी रोमांचित थे. ‘कॉफी हाउसेर सेई आड्डा टा आज आर नेइ, शे आमार छोटो बोन..गानों को लोगों ने काफी सराहा. उन्होंने कई हिंदी व बांगला गाने भी गाये.
उस कार्यक्रम को याद कर कलाकार मधुसूदन गांगुली काफी रोमांचित हो उठे. उन्होंने बताया कि गाना शुरू होते ही हॉल का दरवाजा खोल दिया गया ताकि, बाहर खड़े लोग भी सुन सकें. यह कार्यक्रम यूनियन क्लब व डोरेमी संस्था की ओर से आयोजित किया गया था. श्री गांगुली के अनुसार कार्यक्रम में उन्होंने हिंदी गाने भी पेश किये. ‘झनक-झनक तोरी बाजे पायलिया…, छम-छम बाजे रे पायलिया…, कौन आया मेरे मन के द्वारे…. व पूछो ना कैसे मैने रैन बिताये… गीत पेश किये. उनका सबसे अंतिम गाना ‘लागा चुनरी में दाग छुपाऊं कैसे..था. इस गीत को सुनने के लिए लोग घंटो बैठे रहते थे. मन्ना दा जब तक इस गाने को नहीं गा लेते थे लोग सीट पर बैठे रहते थे.
कल यूनियन क्लब में श्रद्धांजलि
रांची: मन्ना डे को यूनियन क्लब की ओर से 26 अक्तूबर को क्लब परिसर में प्रार्थना गीत के जरिये श्रद्धांजलि दी जायेगी. इसका आयोजन शाम सात बजे से किया जायेगा. यह जानकारी क्लब के अध्यक्ष सुबीर लाहिड़ी ने दी.
सुप्रसिद्ध गायक मन्ना डे हमारे बीच नहीं रहे. दादा साहेब फालके व पद्मभूषण से सम्मानित गायक मन्ना दा अपने गीतों के माध्यम से सदा हमारे बीच रहेंगें. वर्ष 1975 में मन्ना दा रांची आये थे. यूनियन क्लब प्लाजा सिनेमा में उन्होंने अपनी प्रस्तुति दी थी . उस पल को याद कर आज रांची के सारे कलाकार मायूस है. रांची के कलाकारों ने मन्ना दा के बारे में अपने विचारों से प्रभात खबर को अवगत कराया.
दुखी हैं राजधानी के कलाकार
मन्ना दा ने केवल हिंदी और बांग्ला ही नहीं बल्कि गुजराती , मराठी हिंदी व अन्य भाषाओं में गीत गाया है. संगीत जगत में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है. उनको कभी भुलाया नहीं जा सकता. 1975 में प्लाजा सिनेमा में जिन्होंने भी उनकी प्रस्तुति देख[ वे आज बहुत दुखी है.
सुबीर लाहिड़ी :अध्यक्ष ,यूनियन क्लब
1975 में जब मन्ना डे प्लाजा सिनेमा में अपनी प्रस्तुति के लिए आये थे.तब उनके साथ काफी वक्त बिताने का अवसर मिला. बहुत कुछ सीखा. उनके कोलकाता और मुंबई स्थति घर पर भी मेरा आना जाना रहा. आज वो दिन याद कर बहुत दुख हो रहा है.
बुल्लु घोष : कलाकार
शास्त्रीय संगीत और देश भक्ति गीत उनके जैसा कोई नहीं गा सकता. उनके जाने से संगीत जगत में जो कमी आयी है उसे कोई पूरा नहीं कर सकता. वो एक महान कलाकार थे.
मिताली घोष :गायक
जब से होश संभाला. उन्हीं के गीतों से गायन की शुरुआत की. उनके समय में शास्त्रीय संगीत मन्ना दा को छोड़ कोई नहीं गाता था. लागा चुनरी में दाग सहित उनके तमाम गीत ताउम्र भुलाये नहीं जा सकते.
मधुसूदन गांगुली
मन्ना दा के जाने से हम गायकों को बहुत आघात लगा है. आज भी याद है दुर्गा पूजा के समय उनके बांग्ला एलबम निकलते थे. हमें वह एलबम खरीदने का इंतजार रहता था.
बेला गांगुली
वर्ष 1982 में वह बर्धमान में मन्ना डे का लाइव प्रोग्राम देखने गयी थी. पैर छूकर आशीर्वाद भी लिया. बांग्ला रवींद्र संगीत का हिंदी अनुवाद में गीत उन्हें काफी पसंद आये. हिंदी अनुवाद करनेवाले दाउलाल कोठारी की कविता को श्री डे ने सुर दिया था.
हिंदी रवींद्र संगीत कलाकार रिंकू बनर्जी