रांची: सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश ने कहा कि झारखंड में पेसा के जिस स्वरूप को लागू किया गया, उससे आदिवासियों के अधिकारों का हनन हुआ. पेसा को क्रियान्वयन करने से संबंधित रूल नहीं बने. यह सबसे बड़ा धोखा था. यहां पेसा के वास्तविक मर्म को नहीं समझा गया. इसी वजह से झारखंड में विस्थापन व पलायन बढ़ रहा है, लूट खसोट बढ़ रही है.
स्वामी अग्निवेश पेसा एवं मानवाधिकार के संबंध में एसडीसी सभागार में आयोजित सेमिनार में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि वे टूरिस्ट बनकर आदिवासियों का नाच गाना देखने नहीं आये हैं. झारखंड के संघर्ष को पूरी दुनिया तक पहुंचाना चाहते हैं. सेमिनार, राइट्स लाइवलीहुड फाउंडेशन स्वीडन, बंधुआ मुक्ति मोरचा नयी दिल्ली एवं आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया था.
इस मौके पर सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बरला ने कहा कि सरकार ने मल्टी नेशनल कंपनियों के साथ 104 एमओयू किये हैं ये अगर जमीन पर उतरे तो झारखंड की 80 फीसदी जमीन छिन जायेगी. सेमिनार में आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के विक्टर माल्तो, प्रेमचंद मुमरू सहित अन्य ने भी अपने विचार रखे.
हर वर्ष दिया जाता है राइट्स लाइवलीवुड अवार्ड
राइट्स लाइवलीवुड फाउंडेशन स्वीडेन द्वारा राइट लाइवलीहुड अवार्ड प्रतिवर्ष दिया जाता है. इस प्रतिष्ठित अवार्ड को अल्टरनेटिव नोबेल प्राइज कहा जाता है. इस अवार्ड को दुनिया भर में आम जनता के लिए जमीनी स्तर पर काम करने वाले व्यक्तियों/ संस्थाओं को दिया जाता है.
स्वामीअग्निवेश, मेधा पाटकर सहित कई भारतीयों को यह अवार्ड मिला है. अगले वर्ष संभावना है कि यह पुरस्कार किसी झारखंडी को मिले. गुरुवार को फाउंडेशन की सह अध्यक्ष मोनिका ग्रिफिथ ने फाउंडेशन के कार्यो व उद्देश्यों के बारे में बताया. फाउंडेशन के सदस्य श्रीनिवासन ने कहा कि झारखंड के लोग किसी व्यक्ति या संस्था को पुरस्कार के लिए नामित कर सकते हैं, जो उनके मापदंडों को पूरा करता हो. इस दौरान स्वामी अग्निवेश ने दयामनी बरला व उनके संघर्ष के संबंध में मोनिका ग्रिफिथ को बताया.
संसाधनों को छीन रही सरकार : मोनिका
मौके पर राइट्स लाइवलीहुड फाउंडेशन की सह अध्यक्ष मोनिका ग्रिफिथ ने कहा कि वे झारखंड में आदिवासियों के साथ हुए अन्याय व उनके संघर्ष को जर्मनी व स्वीडन सहित अन्य अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठायेंगी. उन्होंने कहा कि झारखंड में आदिवासियों के पास जमीन व संसाधन है. सरकार व कंपनियां उन्हें छीन रही है. उन्होंने कहा कि फाउंडेशन पूरी दुनिया में जमीनी स्तर पर संघर्ष करने वालों के संघर्ष को अपने पुरस्कारों के जरिये मान्यता देती है. यह संघर्ष एक बेहतर दुनिया के निर्माण के लिए है.
अफगानिस्तान व भारत की परिस्थितियां भिन्न नहीं
अफगानिस्तान से आयी डॉ सीमा समर ने कहा कि भारत व अफगानिस्तान की परिस्थितियां भिन्न नहीं है. वहां भी मानवाधिकार हनन के गंभीर मामले आये दिन देखने को मिलते हैं. गरीबी वहां की भी सबसे प्रमुख समस्या बन चुकी है. वहां की सरकार द्वारा चलाया जा रहा गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम सतही है. तालिबान व अन्य कट्टरपंथी ताकतें वहां विकास नहीं चाहती. इसलिए आये दिन हिंसा करती रहती हैं. हमें अपनी समस्याओं के समाधान के लिए साझा संघर्ष को अपनाना होगा.