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राष्‍ट्रपति शासन की ओर!

– हरिवंश – झारखंड विधानसभाध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने एनोस, कमलेश और स्टीफन को नोटिस देकर कांग्रेस का काम किया है. संवैधानिक रूप से उनका कदम उन्हें प्रदत्त अधिकारों के तहत है. कानून उन्हें यह अधिकार देता है, पर कानून का उपयोग, कब-कैसे हो, यह नैतिक प्रसंग है. इस जंग में जब हर पक्ष अनैतिकता […]

– हरिवंश –
झारखंड विधानसभाध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने एनोस, कमलेश और स्टीफन को नोटिस देकर कांग्रेस का काम किया है. संवैधानिक रूप से उनका कदम उन्हें प्रदत्त अधिकारों के तहत है. कानून उन्हें यह अधिकार देता है, पर कानून का उपयोग, कब-कैसे हो, यह नैतिक प्रसंग है.
इस जंग में जब हर पक्ष अनैतिकता के शिखर पर पहुंचने की प्रतिस्पर्द्धा में हो, तब श्री नामधारी पूछ सकते हैं कि मुझसे ही यह अपेक्षा क्यों? वह प्रतिभा और वाणी के धनी हैं, अत: रामायण के बालि से लेकर महाभारत के अनेक प्रसंग (यथा भीष्म हत्या, द्रोणाचार्य वध, जयद्रथ वध, कर्ण संहार वगैरह) सुना कर अपने कदम को जायज ठहरा सकते हैं.
अपने विरोधियों को निरुत्तर बना सकते हैं. झारखंड के एक गुजरे राजनीतिक संग्राम में देश की जनता श्री नामधारी की प्रतिभा भी देख चुकी है, जब वह स्पीकर रहते हुए मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी बन गये. देश के शायद पहले स्पीकर, जो पद पर रहते हुए अचानक मुख्यमंत्री के दावेदार हो गये.
देश के नेताओं के ‘चर्चित रिकार्डों’ (पता नहीं लिम्का वर्ल्ड रिकार्ड की तरह भारतीय राजनेताओं की कलाबाजियों का कोई रिकार्ड बुक है या नहीं) में झारखंड की इस प्रतिभा (नामधारी जी) का यह पहला रिकार्ड था. तब उन्होंने एक यादगार पंक्ति कही थी, जो मुझ जैसे कमजोर स्मृतिवाले इंसान को भी स्मरण है!
‘ मेरे पैरों में घुंघरू बंधा दे, तो मेरी चाल देख ले’
अब जब नामधारी जी के पैरों में भी स्पीकरशिप के घुंघरू बंधे हैं, तो उनकी चाल तो देश देखेगा ही.
पर यह चाल एनडीए के पक्ष में जायेगा या विपक्ष में?
एनडीए समर्थित स्पीकर नामधारी जी का यह दावं, कांग्रेसी कदम है. कांग्रेस के हित में, कांग्रेस का स्वार्थ पूरा करनेवाला और कांग्रेस की मनोकामना के अनुरूप. कांग्रेस की मंशा है कि राष्ट्रपति शासन का सेहरा विपक्ष के सिर चढ़े, कांग्रेस पर दोष न लगे, पर हो ऐसा ही.
इस पूरे खेल की सूत्रधार कांग्रेस का शिखर नेतृत्व है. पर वह परदे के पीछे है. इसलिए कांग्रेस ने अपने किसी दिग्गज को यहां न भेजा है और न दिल्ली में सक्रिय किया. पर यूपीए प्रायोजित इस ड्रामे का संचालन और निर्देशन, परदे के पीछे से बखूबी कांग्रेस कर रही है.
बागी चार मंत्रियों का जहाज से आना-जाना, हरियाणा, केरल से गोवा तक विधायकों की मुस्तैद चौकसी, सुप्रीम कोर्ट में लीडिंग लायर्स (जाने-माने वकील) से वकालत …. यह पूरी व्यवस्था, चौकसी, संसाधन, क्या ये सब एनोस एक्का, हरिनारायण राय, कमलेश सिंह व मधु कोड़ा के बलबूते सामर्थ्य-पहुंच में है? गुरुजी (शिबू सोरेन) बोलते-बोलते कह ही जाते हैं कि सब सोनिया जी तय करेंगी.
कांग्रेस क्यों परदे में है? झारखंड विधानसभा की कुल 81 में से महज 9 सीटें जीतनेवाली यह पार्टी है. इसका जनाधार स्पष्ट है. शिबू सोरेन को पहली बार मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस अपना और राज्यपाल का भद्द पिटवा चुकी है. उसके दिग्गज यहां लगे रह कर मुंह की खा चुके हैं. इसलिए इस बार कांग्रेस सावधान है.
पर कांग्रेस को एहसास है. अगर मधु कोड़ा के नेतृत्व में सरकार बनी, तो उसका भविष्य क्या होगा? कांग्रेस, झामुमो या राजद को कीमत चुकानी पड़ेगी. कांग्रेस को देश स्तर पर. अन्य को क्षेत्रीय स्तर पर. क्यों? संभावित मुख्यमंत्री और उनके ‘कारगर मंत्री’ जो कारनामे करेंगे, वे जगजाहिर हैं. कांग्रेस यह समझती है, इसलिए कांग्रेस के ‘गेम प्लान’ को अनजाने नामधारी जी ने मूर्त रूप दे दिया है.
श्री नामधारी ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल किया है. उनकी दृढ़ घोषणाओं से स्पष्ट है, वह बहुत आगे जा चुके हैं, वह अपने उद्देश्य-काम में स्पष्ट हैं. उच्चतम न्यायालय (हालांकि इसकी संभावना कम है) या अदृश्य हस्तक्षेप से कोई भिन्न बात हो जाये, तो अलग. अन्यथा स्पीकर के फैसले से तीनों विधायकों (एनोस, कमलेश व स्टीफन) के संबंध में कोई निर्णायक फैसला हो गया, तो सदन में ‘संख्या का गणित’ बदल जायेगा.
यूपीए का स्पष्ट बहुमत नहीं रहेगा, लेकिन एनडीए भी बहुमत में नहीं होगा. तब पूरी संभावना है कि ‘विधानसभा अखाड़ा’ बन जाये. लखनऊ विधानसभा में हुई ऐतिहासिक घटना (मारपीट, सिर फुटव्वल, टेबुल के नीचे छुपने…) को झारखंड विधानसभा पीछे छोड़ देगी. कांग्रेस इस दृश्य की प्रतीक्षा में है.
खबर है कि केंद्र सरकार को राज्यपाल ने अपनी रिपोर्ट भेजी है. कमलेश सिंह प्रकरण का इसमें उल्लेख है. कमलेश सिंह ने पांच सितंबर को राज्यपाल से लिखित शिकायत की थी कि उन्‍हें जमशेदपुर में ऐसे रखा गया, ‘मानो हाउस एरेस्ट कर लिया गया है’. उसी दिन राज्यपाल के प्रधान सचिव ने राज्य के मुख्य सचिव से इस बारे में तथ्यात्मक प्रतिवेदन मांगा. इस तरह की सूचनाएं और विधानसभा की संभावित स्थिति की रिपोर्ट निश्चित रूप से कांग्रेस ने गृह मंत्रालय में मंगवा कर, झारखंड के भविष्य की रणनीति बना ली होगी.
अब यूपीए द्वारा बुलाये गये झारखंड बंद या नामधारी विरोध जैसे कार्यक्रम राज्य में निश्चित ही तनाव पैदा करेंगे. यह सामाजिक विद्वेष, राष्ट्रपति शासन को शीघ्र आमंत्रित करेगा.
स्पष्ट है कि झारखंड राष्ट्रपति शासन की राह पर कदम बढ़ा चुका है. मौजूदा स्थिति में यह सर्वश्रेष्ठ विकल्प है. राष्ट्रपति शासन, फिर शीघ्र चुनाव, यही झारखंड और झारखंडी जनता के हित में है.
अब ‘राष्ट्रपति शासन’ ही झारखंड की राजनीति का मुख्य एजेंडा बनेगा. एनडीए का गेम लगता है, राष्ट्रपति शासन थोपने का ‘विलेन’ कांग्रेस और यूपीए को बनाना. कुछ ही दिनों बाद कई राज्यों के चुनाव होनेवाले हैं. उन चुनावों के लिए भी एनडीए को मुद्दे की तलाश है.
झारखंड में एनडीए एक बार कांग्रेस-यूपीए को मार्च 2005 में ‘विलेन’ साबित कर चुका है. इसलिए मार्च 2005 में शपथ ग्रहण के बावजूद शिबू सोरेन की सरकार का न रह पाना और सितंबर 2006 में चार निर्दलीयों को तोड़ कर अपनी ओर मिला लेने के कांग्रेसी काम को एनडीए मुद्दा बनाना चाहता है.
उधर, कांग्रेस की रणनीति है, राष्ट्रपति शासन लगा कर एनडीए सरकार के भ्रष्टाचार को जनअदालत में पहुंचाना. कांग्रेस सतर्क है कि यूपीए की नयी सरकार बनवा कर, उसके कुकर्मों की गठरी लेकर उसे जनता में न जाना पड़े. कांग्रेस ऐसी स्थिति में है कि निर्दलीयों की अगुवाई वाली प्रस्तावित सरकार न बनने देने का सीधे श्रेय नहीं लेना चाहती. और न अंदर से यह शिखंडी सरकार वह चाहती है.
एनडीए चाहता, तो यह खेल अपने पक्ष में दिलचस्प बना सकता था. अर्जुन मुंडा की सरकार शालीनता से ‘अल्पमत में आ जाने का तथ्य’ स्वीकारती और झारखंड का ताज मधु कोड़ा के नेतृत्व में यूपीए को सौंप देती. विधानसभा में बहस कर एनडीए गिनाता कि निर्दलीयों का आतंक क्या है? उनके नखरे क्या हैं? इन निर्दलीयों के ‘क्षणे तुष्टा-क्षणे रुष्टा’ के बावजूद सरकार ने यह-यह काम किया.
अर्जुन मुंडा अपनी सरकार के कामों को गिनाते हुए यह सदन में कहते कि माननीय हरिनारायण राय जी इसलिए नाराज हैं कि प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत 650 करोड़ की योजना का क्रियान्वयन बिहार की तरह झारखंड सरकार केंद्र सरकार की एजेंसी से कराना चाहती थी, पर माननीय मंत्री स्थानीय ठेकेदारों से कराने पर तुले थे. इंजीनियरों के तबादले में एक ट्रांसफर 27 लाख में होने की चर्चा भी आयी. फिर तबादले का अधिकार मंत्री जी से छिन गया. इसी तरह मधु कोड़ा जी रुठ गये, क्योंकि ट्रैक्टर खरीद घपले में फंसे उनके एक मित्र के खिलाफ सरकार द्वारा जांच पर उन्हें एतराज था. कमलेश सिंह चोर-डकैत इंजीनियरों की बरखास्तगी के खिलाफ थे.
एनोस एक्का बीडीओ, डीटीओ, मोबाइल दारोगा के तबादले में मनमाना चाहते थे. ऐसे एक-एक आरोप गिना कर मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा कांग्रेस और यूपीए से सदन में पूछते कि इन मुद्दों पर यूपीए से क्या सौदेबाजी हुई है, यह राज्य जानना चाहेगा. एक निर्दलीय विधायक को सरकार में किस हद तक मनमाने ढंग से काम करने की छूट चाहिए? यूपीए इस पर अपनी नीति स्पष्ट करे. अर्जुन मुंडा कहते कि हमने इनके नाज-नखरे, जहां तक संभव था, उठाये.
अब यूपीए कहां तक इन्हें पूजेगा, झारखंड विधानसभा में स्पष्ट करें.
ऐसे अनेक चुभते सवाल उठा कर एनडीए रचनात्मक विपक्ष की भूमिका में बैठता, तो यूपीए के लिए गंभीर स्थिति बनती. एक निर्दलीय के नेतृत्व में, निर्दलीय लोगों की बहुतायत द्वारा संचालित, राजद की उपस्थिति, और नेपथ्य से कांग्रेस-झामुमो संचालित मंत्रिमंडल, देश के लिए एक अनूठा दृश्य उत्पन्न करता.
दिनांक : 09-09-06

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