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सिमरिया का संदेश
– हरिवंश – सिमरिया विधानसभा उपचुनाव का, झारखंड की राजनीति के लिए क्या साफ और स्पष्ट संदेश है? पहला, अच्छे और संघर्षशील प्रत्याशी का चयन. भाकपा प्रत्याशी रामचंद्र राम साफ-सुथरे छविवाले प्रत्याशी थे. लंबे समय से संघर्षशील. 1985 में पहली बार यहां से चुनाव लड़े. तीसरे स्थान पर रहे. फिर 90 के चुनावों में दूसरे […]
– हरिवंश –
सिमरिया विधानसभा उपचुनाव का, झारखंड की राजनीति के लिए क्या साफ और स्पष्ट संदेश है? पहला, अच्छे और संघर्षशील प्रत्याशी का चयन. भाकपा प्रत्याशी रामचंद्र राम साफ-सुथरे छविवाले प्रत्याशी थे. लंबे समय से संघर्षशील. 1985 में पहली बार यहां से चुनाव लड़े.
तीसरे स्थान पर रहे. फिर 90 के चुनावों में दूसरे स्थान पर. 2000 के चुनावों में तीसरे स्थान पर. 2005 में दूसरे स्थान पर. लगातार पराजयों के बाद भी न हताश हुए. न मैदान छोड़ा. न निराश होकर चुप बैठे. जनता के सवालों पर जनता के बीच रहे. यह एक इंसान के लगातार संघर्ष को मिला जनविश्वास है. बार-बार पराजय के बाद भी रामचंद्र राम के अपराजय संकल्प को जनता ने 2008 के चुनावों में जीत का तोहफा दिया है.
हम अखबारनवीश चालू राजनीतिक समीकरण के तहत लिख रहे थे कि इटखोरी में अगड़ी जाति के मतदाता हैं , वे समर्थन भाकपा को नहीं देंगे, पर मतदाताओं ने हम विश्लेषकों को झूठा साबित किया है. भाकपा प्रत्याशी को हर जगह समर्थन मिला है. यानी अच्छे प्रत्याशी को जाति, धर्म, क्षेत्र वगैरह के बंधनों से ऊपर उठ कर लोगों ने जिताया है. वैसे भी बार-बार हारने के कारण भाकपा प्रत्याशी का इस बार नारा भी था, वोट नहीं तो कफन. उनकी पत्नी का संदेश था, राम का वनवास भी 14 वर्षों बाद खत्म हुआ.
25 साल से रामचंद्र राम संघर्ष कर रहे हैं, अब मतदाता उनका वनवास खत्म करें. सिमरिया की जनता ने न सिर्फ रामचंद्र राम का वनवास खत्म किया, बल्कि भाकपा को भी विधानसभा पहुंचा दिया. जिस तरह रामगढ़ में भेड़ा सिंह अनथक 1977 से संघर्ष कर रहे थे और मामूली वोटों से पराजित होते थे, फिर 2000 में जीते. कुछ उसी तरह सिमरिया में भाकपा ने रामगढ़ का अतीत दोहराया है.
बाबूलाल मरांडी की पार्टी का दूसरे नंबर पर होना, झारखंड की भावी राजनीति का महत्वपूर्ण संकेत है. कोडरमा में अपना चुनाव जीतने के बाद डालटनगंज लोकसभा और जमशेदपुर लोकसभा चुनावों ने बाबूलाल जी की पार्टी को निराश किया था. पर सिमरिया ने अलग संकेत दिये हैं. राज्य की राजनीति में क्षेत्रीय आवाज के रूप में बाबूलाल को जनमान्यता मिल रही है. उनके बारे में लोकधारणा है कि वह खुद साफ-सुथरे हैं, पर कुछेक गलत लोगों से भी घिरे हैं. लोग याद करते हैं कि उनके कार्यकाल में सड़कें बनी थीं. भ्रष्टाचार का यह रूप नहीं था. बाबूलाल जी का प्रत्याशी भी युवा और साफ सुथरी छवि का था.
उन्हें भी हर जगह समर्थन मिला. खासतौर से नक्सल प्रभावित लावालौंग में उन्हें व्यापक समर्थन मिलने का कारण? नक्सल मुद्दे पर उनका साफ स्टैंड है. इन इलाकों में घूमने पर लगा कि नक्सली लोगों को अब पहले जैसा जन समर्थन नहीं है. इसलिए नक्सलविरोधी मतदाताओं ने बाबूलाल जी की पार्टी को समर्थन दिया. क्षेत्रीय पहचान, भ्रष्टाचारमुक्त शासन और नक्सल आंदोलन जैसे मुद्दों को लेकर बाबूलाल और उनकी पार्टी सक्रिय है, यही संदेश और मुद्दे लेकर वह झारखंड की राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत करेंगे.
बाबूलाल जी ने सफल रैली कर गांवों तक अपना संदेश पहुंचा दिया है. जिस तरह अकेले उन्होंने ऐसी सुव्यवस्थित रैली आयोजित की, उससे स्पष्ट है कि झारखंड की भावी राजनीति में उनका सार्थक हस्तक्षेप होगा. इस सफल रैली से उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि राज्य में कारगर विपक्ष की भूमिका में वही हैं. बाबूलाल जी की रैली का संकेत विपक्षियों को समझना चाहिए. उनकी रैली में भारी संख्या में लोग आये. पर न उन्होंने उपद्रव किया, न अराजकता फैलायी. न दुकानें बंद करायी. न अपनी उद्दंडता से समाज को भयभीत किया.
स्पष्ट है कि इस रैली में पेशेवर रैली अटैंड करनेवाले नहीं थे. ये शांत और सुनने आये हुए लोग थे, जो उनकी बातों को गांवों तक पहुंचायेंगे. इससे उनका अभियान ग्रासरूट तक पहुंचेगा. यह राजनीतिक कामयाबी है और यही रास्ता किसी दल या विचार को कारगर विपक्ष या सरकार तक पहंचाता है. बाबूलाल जी का यह मूव प्रतिपक्षी दलों के लिए अर्थपूर्ण संकेतों से भरा है.
इस चुनाव में सबसे अधिक चौंकाया है, कांग्रेस ने. वह हार कर भी जीत की खुशी में होगी. पिछले चुनावों में उसके प्रत्याशी को महज 5010 मत मिले थे. इस बार के चुनावों में 19700 वोट. लगभग चार गुना अधिक. वर्ष 2000 में कांग्रेस को महज 2018 वोट मिले थे. उस मुकाबले 10 गुना वोट बढ़ा है. क्यों? कांग्रेस की पिछले दो माह की राजनीति का यह अर्जित पुण्य है. इसने झारखंड में विकास और भ्रष्टाचार के दो मुद्दे उठाये. पार्टी एकजुट हुई.
इस जीत ने कांग्रेस को दोराहे पर खड़ा कर दिया है. अगर वह विकास और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर भावी राजनीति करती है, भविष्य में इन्हीं सवालों पर आगे बढ़ती है, तो झारखंड की राजनीति में वह निर्णायक ताकत बन कर उभरेगी. मौन हो जाती है, तो जनआकांक्षाओं का शेर उसे खा जायेगा. वह फिर ‘निर्बल के बल राम’ की स्थिति में पहुंच जायेगी. इसलिए सिमरिया उपचुनाव ने कांग्रेस को बड़ा साफ और स्पष्ट संदेश दे दिया है, सुधरो या मिटो.
सबसे दुखद हाल भाजपा का. सिमपैथी का सहारा भी नहीं मिला. जमानत नहीं बची. भाजपाई इस शर्मनाक पराजय को समझने के लिए तैयार नहीं लगते. पर जन निगाह बड़ी धैर्यवान और अचूक है. इतने दिनों तक सत्ता में रह कर भाजपा/ एनडीए ने झारखंड को कहां पहुंचाया है? आज जो भ्रष्टाचार विषबेल बन गया है, उसकी रोपाई और खेती तो एनडीए शासनकाल में ही हुआ.
भाजपाई, आपस में ही युद्धरत हैं. आपसी संघर्ष ने कांग्रेस को कहां पहुंचा दिया, यह भी सीखने को तैयार नहीं है. इनके बड़े राज्यस्तरीय नेता आपस में ही एक दूसरे को काटने में लगे हैं. इस पार्टी के एक विधायक, अपनी पत्नी को टिकट दिलाना चाहते थे. वे कार्यकर्ताओं से कह चुके थे. क्षेत्र में लोगों ने बताया, वह प्रचार भी शुरू कर चुके थे. जब उनकी पत्नी को टिकट नहीं मिला, तो वे पार्टी की जड़ खोदने में लग गये. भाजपा ने जिन लोगों को प्रखंड प्रभारी बनाया था, उन पर भाजपा शासन के दौरान गंभीर भ्रष्टाचार-लूट के आरोप हैं. विरोध पक्ष के रूप में राज्य भाजपा की जो अकर्मण्य भूमिका रही है, उसे भी जनता देख-परख रही है. इन सभी कारणों से भाजपा की यह दुर्गति हुई है.
एक बड़ा झटका तो बाबूलाल जी का पार्टी से जाना भी है. भाजपा, कोडरमा, डालटनगंज, जमशेदपुर संसदीय उप चुनावों में हारी ही, अब सिमरिया पराजय ने उसे गहरा सदमा दिया है. आगामी चुनावों में यह पार्टी नहीं सुधरी, तो साफ होगी. संगठन के स्तर पर इतनी अराजकता भाजपा में दिखायी दे रही है कि उसका भविष्य साफ दिखायी दे रहा है.
पर भाजपाई नेता उसे देखने को तैयार नहीं हैं. इनके यहां न प्लानिंग दिखती है, न संगठन के स्तर पर ऊपर से नीचे तक चुस्त तैयारी और न भावी राजनीति की स्पष्ट परिकल्पना या मुद्दे. तीन बार यह पाट रैली आयोजित करने की तिथि तय कर उन्हें बदल चुकी है. यह सांगठनिक अराजकता भाजपा को आनेवाले चुनावों तक मुख्यधारा से झारखंड में किनारे न कर दे.भाजपा की इस बुरी पराजय से सबसे अधिक उत्साहित कांग्रेस होगी. वह एकला चलो रे के रास्ते पर जा सकती है.
सांप्रदायिकता का मुद्दा उठा कर यूपीए के अन्य घटक अब कांग्रेस को बेमन यूपीए में रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकते. फर्ज करिये, कांग्रेस अपने मुद्दे पर कायम रहती है और राज्य में नयी व्यवस्था कायम करा कर अपने दोनों उठाये मुद्दे पर आगे बढ़ती है, तो क्या होगा? अगर भ्रष्टाचार और विकास पर कांग्रेस आगामी छह महीनों में नये सिरे से काम करती है, नयी व्यवस्था के तहत, तो भाजपा की स्थिति दयनीय हो जायेगी.
इस उपचुनाव का एक और साफ संदेश है. सत्तारूढ़ लोगों के लिए. अच्छी छविवाले प्रत्याशी ही जन समर्थन पा रहे हैं. या जो संगठन या पार्टी, साफ सुथरी छविवाले लोगों को प्रत्याशी बना रहे हैं, लोग उन्हें चुन रहे हैं या जो संगठन मुद्दों की राजनीति कर रहे हैं, वे जनता का विश्वास अर्जित कर रहे हैं. धनबल या भ्रष्ट छवि को जनता प्रश्रय देने के मूड में नहीं है, यह भी सिमरिया उपचुनाव का अघोषित संदेश है.
दिनांक : 08-02-08
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