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हार के बाद !
– हरिवंश – शिबू सोरेन ने रिकार्ड बना दिया. वह देश के तीसरे मुख्यमंत्री हैं, जो मुख्यमंत्री होते हुए उपचुनाव हार गये. उत्तरप्रदेश में त्रिभुवन नारायण सिंह मुख्यमंत्री रहते हुए मणिराम (गोरखपुर के पास) विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हारे थे. वह लाल बहादुर शास्त्री के मित्र थे. आजादी की लड़ाई के सिपाही. केंद्र में उद्योग […]
– हरिवंश –
शिबू सोरेन ने रिकार्ड बना दिया. वह देश के तीसरे मुख्यमंत्री हैं, जो मुख्यमंत्री होते हुए उपचुनाव हार गये. उत्तरप्रदेश में त्रिभुवन नारायण सिंह मुख्यमंत्री रहते हुए मणिराम (गोरखपुर के पास) विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हारे थे. वह लाल बहादुर शास्त्री के मित्र थे. आजादी की लड़ाई के सिपाही. केंद्र में उद्योग मंत्री रहे.
उनका स्टैंड नैतिक था. उन्होंने कहा, एक मुख्यमंत्री को अपने चुनाव के प्रचार में नहीं जाना चाहिए. जनता पसंद करेगी, तो चुनेगी. वह मणिराम में एक दिन भी प्रचार के लिए नहीं गये. गांधीवादी राजनीति के तहत आचरण किया. चुनाव हारे, तो तुरंत पद छोड़ा. मुख्यमंत्री आवास छोड़ा. वह नैतिक राजनीति की पराजय थी. पर झारखंड में शिबू सोरेन ने सारी ताकत झोंक दी थी. फिर भी वह भारी मतों से हारे.
शिबू सोरेन झारखंड में जनाधारवाले नेता रहे हैं. वैसे नेता का हारना और भी गंभीर है. दरअसल शिबू सोरेन की पराजय, सिर्फ झामुमो प्रत्याशी की पराजय नहीं है, यह यूपीए की हार है. कांग्रेस ने अपनी सारी ताकत झोंक दी थी. यूपीए के अन्य समर्थक भी उनके प्रचार में गये थे. इसलिए यह हार यूपीए के लिए दूरगामी संकेत है. यूपीए के नेतृत्व में मधु कोड़ा से लेकर शिबू सोरेन की जो सरकारें चलीं, उनकी अलोकप्रियता, भ्रष्टाचार और अराजकता के खिलाफ यह जनमत है.
शिबू सोरेन को बड़ा मौका मिला था. पर वह मौका उन्होंने दोबारा खो दिया. मधु कोड़ा के कुराज के मुकाबले और अधिक कुराज बढ़ाने में ही वह लग गये. आसपास जो टीम उन्होंने बनायी, उसका संदेश बहुत खराब रहा. किसी पर कभी सीबीआइ जांच हुई थी या कोई अचानक बाहर से रातोंरात आ टपका. ट्रांसफर उद्योग को भी उन्होंने खूब बढ़ाया.
काठीकुंड गोलीकांड ने उनके अतीत को दागदार बनाया. उनके राज्य में यह भी पुष्टि हो गयी कि मंत्रियों के भ्रष्टाचार का क्या रूप था? उच्च न्यायालय में मंत्रियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ मामला चल रहा है. विजिलेंस ने दो पूर्व मंत्रियों के खिलाफ जांच रिपोर्ट सौंप दी है. ये सारे तथ्य सरकार की कार्यसंस्कृति के संकेत थे.
राजनीतिक कारणों से शिबू सोरेन ने दो मंत्रियों को हटाया. पर तथ्य तो यही है कि अन्य मंत्री भी उनसे कम नहीं हैं. इस तरह पिछले कुछेक वर्षों से सरकार में रहते हुए , सरकार के लोगों ने संविधान, कानून और लोकमर्यादा को मजाक बना दिया है. शिबू सोरेन की यह हार, इन सभी चीजों का परिणाम है.
अब आगे क्या होगा? एक बार पुन: नयी सरकार बनाने की कोशिश होगी. मधु कोड़ा दौड़ में आगे रहेंगे. उनका दावा होगा, वही सरकार चला सकते हैं. प्रमाण में वह अपना हुनर बतायेंगे. झारखंड से दिल्ली तक सबको खुश रखने की तरकीब वह जानते हैं. उनसे लाभ पानेवालों की टोली भी उनके इस अभियान में साथ देगी. लालू प्रसाद से भी वह आशीर्वाद पाने की कोशिश करेंगे. पर एक पेंच है. कांग्रेस प्रभारी अजय माकन ने ही कोड़ा सरकार के खिलाफ बिगुल फूंका था. कई महीनों तक कोड़ा राज में कांग्रेसी उनके विरोधी की भूमिका में रहे.
पर कोड़ा मुख्यमंत्री पद से हट नहीं पाये. कांग्रेसी मुंह चुराते सड़कों पर घूम रहे थे. अब वही कांग्रेसी किस मुंह से कोड़ा को समर्थन की बात करेंगे. दूसरा अवरोध होगा झामुमो. जिस झामुमो ने कोड़ा मुक्ति अभियान चलाया, वह किस मुंह से उनकी ताजपोशी में मददगार होगा. खुद मधु कोड़ा झामुमो सरकार पर छींटाकशी करते रहे हैं. वह बात भी झामुमो कैसे भूलेगा.
पर मधु कोड़ा के रास्ते में सबसे बड़ा अवरोध उनके खास मित्र लोग हैं, जिनकी कारगुजारियां पूरे राज्य में गूंज रही हैं. एक और बड़ा अवरोध है. लोकसभा का चुनाव. यह चुनाव दो-तीन महीनों में संभव है. इन चुनावों के कारण कांग्रेस दागदार लोगों को गद्दी पर बैठाने का जोखिम नहीं लेना चाहेगी.
फिर प्रदीप बलमुचु (यानी कांग्रेस), बंधु तिर्की या स्टीफन मरांडी जैसे नाम भी उछलेंगे. अब तो तमाड़ चुनाव के बाद एनोस एक्का, एक्का नहीं बादशाह की भूमिका में हैं. ये सब लोग भी चुप नहीं बैठेंगे.
क्या कोई ऐसी सरकार बना कर पुन: यूपीए, लोकसभा चुनावों के समय जोखिम लेना चाहेगा? बेहतर तो यह होता, झारखंड में पुन: चुनाव होते. पर इन चुनावों के लिए क्या यूपीए विधायक तैयार हैं? कहते हैं, शेर के मुंह में खून लगने से वह आदमखोर बनता है. झारखंड के जो नेता सत्ता में हैं, वे इसी तरह सत्ता के लिए मदांध हैं. वे सत्ता छोड़ कर कहीं नहीं रह सकते. राज्य को बेचना, दलाली करना, सड़कें चुराना जैसे काम ये लोग करते रहे हैं.
यह कमाई यहां से लेकर दिल्ली तक बांटते रहे हैं. ऐसी स्थिति में झारखंड की राजनीति से लाभ कमानेवाले ये तत्व चाहेंगे कि कोई शिखंडी सरकार बने. भ्रष्ट सरकार बने, ताकि धनार्जन होता रहे. अगर इस लॉबी के लोगों की चली, तो झारखंड में नयी सरकार बनेगी. अगर यूपीए के समझदार लोगों की चली, तो झारखंड में राष्ट्रपति शासन भी संभव है.
कांग्रेस कोशिश कर सकती है कि राष्ट्रपति शासन हो, राज्य में सुशासन हो, अराजकता खत्म हो और ऐसे कदमों से कांग्रेस लोकसभा चुनावों के पहले, लोकसंदेश देना चाहेगी. ऐसी स्थिति में वह कहेगी कि वह साफ-सुथरी राजनीति की पक्षधर है. वह सुशासन चाहती है. यह सब कह कर वह लोकसभा चुनाव में लाभ लेना चाहेगी. एक और गहरी गुत्थी है.
फर्ज कर लीजिए, कोई नयी सरकार बने. क्या उस सरकार में एनोस एक्का और हरिनारायण होंगे? विजिलेंस रिपोर्ट के बाद यूपीए इन्हें मंत्रिमंडल में रखना चाहेगा? तमाड़ चुनाव ने झारखंड की राजनीति में एक नया चेहरा दिया है, राजा पीटर का. शिबू सोरेन को हरा कर वह रातोंरात मशहूर हो गये हैं. भविष्य में उनकी भूमिका भी गौर करने लायक होगी.
दिनांक : 09-01-09
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