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झारखंड के दावंपेच
– हरिवंश – शिबू सोरेन ने फिर बड़ी गलती की. तमाड़ उपचुनाव परिणाम के बाद उन्हें तत्काल इस्तीफा देना चाहिए था. इस्तीफा देकर वह दिल्ली जाते, तो राजनीतिक लोक-लाज बरतते. जनता ने कड़ी पराजय दी, फिर एक घंटे भी पद पर कैसे रह सकते हैं? यह उनकी दूसरी भूल है. चिरूडीह कांड जब उजागर हुआ, […]
– हरिवंश –
शिबू सोरेन ने फिर बड़ी गलती की. तमाड़ उपचुनाव परिणाम के बाद उन्हें तत्काल इस्तीफा देना चाहिए था. इस्तीफा देकर वह दिल्ली जाते, तो राजनीतिक लोक-लाज बरतते. जनता ने कड़ी पराजय दी, फिर एक घंटे भी पद पर कैसे रह सकते हैं? यह उनकी दूसरी भूल है. चिरूडीह कांड जब उजागर हुआ, तब वह सीधे केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देते. लोकसभा में इसकी घोषणा करते, फिर अदालत में हाजिर होते, तो खुद उनकी प्रतिष्ठा रहती. पर पद पर चिपके रहने की प्रवृत्ति ने नेताओं का असली चेहरा उजागर कर दिया है.
हार कर भी शिबू सोरेन झारखंड की राजनीति में निर्णायक रह सकते हैं. पर शर्त यह है कि उनकी नजर खुद और परिवार से बाहर टिके. झामुमो के पास पांच सांसद हैं. 17 विधायक. राष्ट्रीय राजनीति का जो गणित बन रहा है, उसमें यूपीए या कांग्रेस की मजबूरी है कि वह झामुमो को साथ रखे.
लोकसभा चुनाव में. कांग्रेस की नजर दिल्ली पर है. दो दिनों पहले प्रणव मुखर्जी कह चुके हैं कि राहुल गांधी, भावी प्रधानमंत्री हैं. प्रणब मुखर्जी जैसे मंजे और अनुभवी नेता को यह घोषणा क्यों करनी पड़ी? बिना घोषणा के लोग जानते हैं कि कांग्रेस में प्रधानमंत्री पद के उत्तराधिकारी राहुल गांधी हैं. पर लोकसभा चुनाव के दो-तीन माह पहले प्रणब मुखर्जी की यह सार्वजनिक घोषणा अर्थपूर्ण हैं. संभव है कि कांग्रेस की रणनीति हो कि युवा राहुल को आगे कर लोकसभा चुनाव लड़ा जाये. युवाशक्ति मुद्दा बने.
इस तरह कांग्रेस की रणनीति है, दिल्ली फतह करना. ‘युवराज’ राहुल गांधी की ताजपोशी करना. कांग्रेस अपने दम यह कर नहीं सकती. उसे मजबूरी में क्षेत्रीय दलों का साथ चाहिए. इसके लिए वह राज्यों को क्षेत्रीय क्षत्रपों के हवाले कर देगी और केंद्र (दिल्ली) अपने पास रखेगी. इस तरह झामुमो, राजद वगैरह कांग्रेस की मजबूरी है. पुरानी कांग्रेस होती, तो झारखंड में अब तक राष्ट्रपति शासन होता. हारे मुख्यमंत्री इस्तीफा दे चुके होते. पर आज की सिमटती और सिद्धांतों से रोज समझौता करती कांग्रेस, ‘लोकसभा चुनावों’ में अपने पक्ष की राज्य सरकार चाहेगी. सरकार, जो चुनावों में मददगार हो. तबादलों से. अन्य सरकारी मददों से. चुनाव फंड से. इस दृष्टि की यूपीए झारखंड में फिर कोई ‘लंगड़ी सरकार’ बनाना चाहेगी. राष्ट्रपति शासन नहीं.
शिबू सोरेन या झामुमो के लिए यही मौका है. वे कांग्रेस की यह कमजोरी या मजबूरी समझें. फिर अपनी रणनीति बनायें. शिबू सोरेन अगर अपने परिवार के किसी सदस्य का नाम, मुख्यमंत्री पद के लिए आगे करते हैं, तो वह मात खायेंगे. इसके लिए यूपीए किसी हाल में राजी नहीं होगा! ऐसी स्थिति में किस मुंह से कांग्रेस या राजद, लोकसभा चुनाव फेस करेंगे? पर शिबू सोरेन अपनी पार्टी के किसी विधायक का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए प्रस्तावित करते हैं, तो वह लाभ की स्थिति में होंगे. इसके कई लाभ होंगे. तमाड़ बुखार से पस्त पार्टी, झामुमो को वह फिर उत्साहित करेंगे. ऊर्जा भरेंगे. एकजुट करेंगे.
सत्ता उनके दल के पास ही रहेगी. कांग्रेस और राजद की मजबूरी होगी, शिबू सोरेन के दल के प्रस्तावित व्यक्ति को समर्थन देना. क्योंकि लोकसभा चुनाव इन्हें मिल कर लड़ना है. झामुमो, यूपीए के सभी घटकों में सबसे बड़ा है. 17 विधायक हैं. पांच सांसद हैं. इस तरह झारखंड की मिलीजुली सरकार पर उसका ‘नेचुरल क्लेम’ स्वाभाविक दावा) बनता है.
झारखंड में यूपीए की कोई भी सरकार, झामुमो की सहमति या सहयोग के बिना संभव नहीं है. क्या झामुमो अपनी यह शक्ति और यह अवसर पहचानता है? निर्दलीय कहीं नहीं जायेंगे. ये सत्ता की मछली हैं. सत्ता के बाहर ये न जा सकते हैं, न सत्ता समुद्र के बाहर इन्हें चुपचाप पानी गटकने को मिल सकता है? चाणक्य ने कहा था, राजा के कारिंदे या सरकारी लोग मछली की तरह हैं. वे पानी में रहते हैं, चुपचाप पानी पीते हैं. दुनिया उनका पानी पीना देख नहीं पाती. यानी सत्ता के जल में रह कर ही धनार्जन या भ्रष्टाचार या चोरी से पानी पीना संभव है. जो सत्ता में धनार्जन और लूट के लिए ही आये हैं, वे हर सरकार को समर्थन देने को मजबूर हैं. इस तरह शिबू सोरेन, चुनाव हार कर भी, मुख्यमंत्री पद छोड़ कर भी, अपनी सरकार बनवा सकते हैं. पर इसके लिए उन्हें ‘स्व’ से ऊपर उठना होगा. अपनी पार्टी के किसी बेहतर-विश्वसनीय विधायक को आगे करना होगा.
यह स्थिति कांग्रेस के भी अनुकूल होगी. कैसे? लोकसभा चुनावों के समय उसे एक समर्थक सरकार चाहिए. वह मिलेगी. लोकसभा चुनावों में झामुमो का साथ मिलेगा. चुनावों के बाद भी केंद्र सरकार के गठन में झामुमो साथ रहेगा. इस तरह एक तीर से कई शिकार. अगर मधु कोड़ा मुख्यमंत्री बनते हैं, तो कांग्रेस की फजीहत होगी. इस फजीहत से भी कांग्रेस बच जायेगी. पर यह चर्चा हुई कि यूपीए या झामुमो अपने-अपने हित में क्या-क्या दावं खेल सकते हैं या कदम उठा सकते हैं?
पर जनता या झारखंड के हित में क्या है?
तत्काल चुनाव. पर चुनाव की अपनी स्वाभाविक प्रक्रिया है. इसके पहले राष्ट्रपति शासन लगे. फिर चुनाव हो. 2005 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद बनी सरकारों से कुछ निष्कर्ष साफ हैं. झारखंड में सरकार बनती है, बिजनेस करने के लिए. कमाने के लिए. राज्य को बरबाद करने और अपने लिए धनार्जन करने हेतु. लोक कल्याण से इन सरकारों का कोई रिश्ता नहीं है.
एक-एक मंत्री की हैसियत और संपत्ति देखिए. चोरी भी सीनाजोरी भी. इसकी दवा जनता के पास ही है. जनता अगर अपना भविष्य लूटनेवालों को ही सौंपती है, तो जनता जाने! पर जनता को एक बार फिर मौका मिलना ही चाहिए, ताकि वह चुने कि भ्रष्टाचार, कुशासन, खरीद-बेच कर सरकार बनाने के विरोध में वह है या इन्हीं मुद्दों के साथ वह सती होना चाहती है?
दिनांक : 10-01-09
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