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झारखंड को ‘बिहार’ न बनने दें!
– हरिवंश – ‘बिहार’ आज एक प्रतीक बन गया है. व्याकरण की भाषा में ‘संज्ञा’ से ‘विशेषण’ . आर्थिक पिछड़ापन, अपहरण, अव्यवस्था, राजनीतिक-सामाजिक अपसंस्कृति के कारण देश-दुनिया में ‘बिहार’ प्रतीक-संकेत बन चुका है. पंजाब में एक अपहरण हुआ. पिछले महीने. वहां के शासक-विरोधी दल के लोग कहने लगे ‘पंजाब’ बिहार बन रहा है. जो बिहार […]
– हरिवंश –
‘बिहार’ आज एक प्रतीक बन गया है. व्याकरण की भाषा में ‘संज्ञा’ से ‘विशेषण’ . आर्थिक पिछड़ापन, अपहरण, अव्यवस्था, राजनीतिक-सामाजिक अपसंस्कृति के कारण देश-दुनिया में ‘बिहार’ प्रतीक-संकेत बन चुका है.
पंजाब में एक अपहरण हुआ. पिछले महीने. वहां के शासक-विरोधी दल के लोग कहने लगे ‘पंजाब’ बिहार बन रहा है. जो बिहार की वैभवपूर्ण संस्कृति, उदारता, ऐतिहासिक योगदान और शानदार अतीत से मुग्ध लोग (जिनमें यह पत्रकार भी है) हूं , उनमें बिहार के ‘संज्ञा’ से ‘विशेषण’ बनने की पीड़ा-बेचैनी है. पर वे असहाय हैं. यह अलग प्रसंग है.
झारखंड के चुनावों में एक तरफ एनडीए कह रहा था कि झारखंड को बिहार न बनायें, तो दूसरी ओर शिबू सोरेन कह रहे थे कि झारखंड को बिहार नहीं बनने देना है. पर चुनावों के ठीक बाद एक निर्दलीय विधायक के ठिकाने पर रात में जिस तरह दोनों पक्षों (एनडीए-यूपीए) ने धावा बोला, एक-दूसरे पर अगवा का आरोप लगाया, उससे 2000 में बिहार के एक होटल में बंधक बनाये गये विधायकों की स्मृति उभर आयी.
पर आज झारखंड में यह सवाल गूंज रहा है कि ‘झारखंड’ बिहार के रास्ते पर है. वही अव्यवस्था, अराजकता यानी ‘फंक्शनल एनार्की’ हम मिल कर आमंत्रित कर रहे हैं. अब जरूरत है कि दल, विचार, वाद से ऊपर उठ कर झारखंड को पटरी पर लाने की कोशिश हो. जो बहसंख्यक, चुपचाप घरों में रहनेवाले मूकदर्शक लोग हैं, वे ‘चमत्कार’ , ‘अवतार’ या ‘दिग्विजयी सम्राट’ की प्रतीक्षा में हैं.
इस वर्ग में बेचैनी है कि बेहतर शासन व्यवस्था हो, समतापूर्ण समाज हो, कानून-व्यवस्था की स्थिति सामान्य हो, तो इस वर्ग को अपने-अपने ड्राइंग रूमों से निकलना होगा. सक्रिय होना होगा. इतिहास-जीवन में कहीं दिखाई नहीं देता कि आसमान से फरिश्ते उतर कर हमारी दुनिया-संसार-समाज-व्यवस्था को बेहतर बना देंगे. चुप-दर्शक बने लोगों का मौन जिस दिन टूटेगा, इतिहास करवट लेगा. यह टिप्पणी मौन तोड़ने से प्रेरित है.
भाजपा : झारखंड के राज्यपाल के फैसले से भाजपा उग्र है. वामपंथ से लेकर दक्षिणपंथ तक सबने इस प्रसंग में गंभीर प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं. एनडीए-यूपीए के लिए यह प्रसंग महज सत्ता पाने का है, पर देश के जाने-माने लोगों ने झारखंड के राज्यपाल के संबंध में गंभीर टिप्पणियां की हैं. क्योंकि सत्ता, आज यूपीए के पास है, तो कल किसी दूसरे के पास होगी. पर राज्यपाल की भूमिका में पारदर्शिता नहीं होगी, तो संविधान और लोकतंत्र संकट में होगा. इसलिए झारखंड का प्रसंग ‘सत्ता’ से बड़ा सवाल है.
अब यह फैसला विधानसभा पटल पर शांतिपूर्ण, मित्रवत और सुखद माहौल में हो कि बहुमत किसके साथ है. कांग्रेस, झामुमो, भाजपा, जद (यू) समेत सभी मिल कर यह माहौल बनायें. राज्यपाल के खिलाफ प्रदर्शन और नारेबाजी बंद हो. भाजपाई जिस तरह राज्यपाल के खिलाफ बरताव कर रहे हैं, इससे भविष्य के लिए खराब परंपरा शुरू हो रही है. व्यक्ति आयेंगे, जायेंगे, पर संविधान और संवैधानिक पद (जिसमें गवर्नर भी हैं) की मर्यादा, सम्मान रखना, भावी पीढ़ियों के प्रति हमारा फर्ज है.
एंग्लो इंडियन विधायक : राजद के गिरिनाथ सिंह ने कहा है कि एंग्लो इंडियन विधायक का मनोयन शीघ्र होगा. सरकार को यह अधिकार है कि एक एंग्लो इंडियन विधायक को ‘नामिनेट’ कर सकती है. यह प्रावधान इसलिए रखा गया ताकि कम होते एंग्लो इंडियन लोगों का एक प्रतिनिधि विधानसभा में रहे. अब सरकार इसलिए हड़बड़ी में है कि एक-एक विधायक, सरकार की नियति तय करने की भूमिका में है.
यूपीए सरकार तुरंत एक एंग्लो इंडियन को नामिनेट कर अपना संख्याबल बढ़ाना चाहती है. यह नितांत अनैतिक कदम होगा. विश्वास मत जीतने के बाद ही सरकार नैतिक रूप से यह कदम उठा सकती है. राजद के गिरिनाथ सिंह, बिहार के राजद से जुड़े हैं, इसलिए बिहार की राजनीतिक संस्कृति (किसी तरह बहुमत साबित करो) झारखंड लाना चाहते हैं. शुक्र है कि राज्यपाल भवन ने स्पष्ट कर दिया है कि एंग्लो इंडियन सदस्य की नियुक्ति नहीं होगी. अगर यह नियुक्ति होती है, तो राज्यपाल पुन: विवाद में फसेंगे. इस कदम से बहुमत साबित कर सत्ता पाकर भी यूपीए अपना और नुकसान करेगा.
सबसे अधिक फजीहत कांग्रेस की होगी, जिसके बारे में दिल्ली के एक वरिष्ठ राजनीतिक समीक्षक ने सही कहा है कि एक छोटे राज्य ‘झारखंड’ में सत्ता पाने की होड़ में कांग्रेस ने पूरे देश में अपना भारी नुकसान किया है. सोनिया जी की आभा और मनमोहन सिंह की छवि में ब्रह्म लग चुका है. इसलिए एंग्लो इंडियन विधायक नामिनेट कर बहुमत सिद्ध करने के प्रयास (अगर सरकार करती है) का लोक विरोध होना चाहिए.
सीबीआइ कार्रवाई : मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने पूर्व पथ निर्माण मंत्री सुदेश महतो के विभाग में हुए टेंडर वगैरह की गड़बड़ी में सीबीआइ जांच की अनुशंसा की है. मुख्यमंत्री अगर राज्य में भ्रष्टाचार रोकने के लिए बेचैन लगते हैं, तो यह बेचैनी सही है. तब एनडीए के कार्यकाल में भ्रष्टाचार के जो गंभीर आरोप अन्य विभागों पर लगे, उनके खिलाफ यह जांच क्यों नहीं? मुख्यमंत्री अगर पूरे एनडीए कार्यकाल में हुई गड़बड़ियों की जांच का आदेश देते, तो यह एक स्वागत योग्य कदम होता. यूपीए सरकार की प्राथमिकता सूची में भ्रष्टाचार नहीं है, बल्कि सरकारी मशनीरी का भय दिखा कर विरोधियों को चुप, पस्त या अपने पक्ष में करना है.
बहुमत सिद्ध करने के लिए सरकारी मशीनरी द्वारा एक विधायक को आतंकित कराने का यह प्रयास है. यह सत्ता का दुरुपयोग है. इसका परिणाम क्या होगा? सुदेश महतो अपने वर्ग में ‘हीरो’ बनेंगे, जैसे पशुपालन घोटाले के राजनीतिक ‘नायकों’ का बिहार में जनाधार बढ़ा.
यह नितांत विवादास्पद कदम है. सरकार में बैठे लोग, सरकारी मशीनरी चुन-चुन कर (सेलेक्टिव) विधायकों को अपने पक्ष में आने के लिए विवश करें, यह अकल्पनीय है. राज्यपाल महोदय! कम से कम इस सरकार को परामर्श दे सकते हैं कि ‘स्टेट पावर’ का निजी हित में, खास उद्देश्य के लिए विश्वासमत जीते बिना इस्तेमाल न हो. विश्वासमत पाने के बाद झारखंड में हुए भ्रष्टाचार की जांच अगर यूपीए सरकार कराती है, तो यह जनहित में बड़ा कदम होगा. विश्वासमत के पहले यह कदम सत्ता की सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल न हो.
बहुमत : संविधान की मर्यादा, संयम और शिष्टता का एहसास यूपीए सरकार को होना चाहिए. विधानसभा में बिना बहुमत सिद्ध किये नीतिगत, महत्वपूर्ण और निर्णायक फैसले लेने का नैतिक अधिकार मंत्रिमंडल को नहीं है.
रोजमर्रा के नियमित सामान्य कामों का प्रतिपादन सरकार करे. बहुमत सिद्ध होते ही वह भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाये. बड़े फैसले ले, लेकिन इसके पहले सरकार आत्मसंयम का परिचय दे. उप मुख्यमंत्री और मंत्रियों को अपने पद की गरिमा का एहसास होना चाहिए. शपथ के बाद वे संवैधानिक मर्यादा-सत्ता के प्रतीक हैं.
झारखंड सरकार के प्रतीक हैं, मंत्री. तीन मार्च की शाम, जब एनडीए विधायकों को लेकर एक विमान दिल्ली जा रहा था, तब उप मुख्यमंत्री और एकमंत्री अपने समर्थकों के साथ एयरपोर्ट पहुं च गये? क्या तलाशी, छानबीन और जांच का अधिकार मंत्रियों को है या मंत्रियों में संविधान ने यह सत्ता-ताकत सौंपी है कि पुलिस-प्रशासन से वे जांच-तलाशी का काम करायें. संभव है जो लोग पहली बार मंत्री बने हैं, उन्हें अपने अधिकार का एहसास न हो.
ऐसी स्थिति में कांग्रेस की जिम्मेवारी है कि वह इस सरकार के लोगों को संयम, मर्यादा और संवैधानिक पद की गरिमा का एहसास कराये. झारखंड के कांग्रेसी क्या कर रहे हैं? वे अपनी ही सरकार के ऐसे कामों-बरतावों पर रस लेकर बात कर रहे हैं. पर पीठ पीछे. झामुमो के लोगों को कांग्रेस के चरित्र का एहसास होना चाहिए. कांग्रेसी कहने लगे हैं कि झारखंड में एक चरण सिंह और चंद्रशेखर हम खड़ा कर चुके हैं.
उल्लेखनीय है कि चरण सिंह और चंद्रशेखर को समर्थन देकर कांग्रेस ने सरकार बनवायी और अधबीच पलट दी. कांग्रेसियों का तर्क है कि कांग्रेस के परंपरागत वोटर हैं, आदिवासी, मुसलमान वगैरह. सरकार बना कर शिबू सोरेन मजबूत होते हैं, तो अंतत: कांग्रेस का जनाधार ही खिसकेगा. शिबू सरकार का पौधा, अभी खाद, आक्सीजन की प्रतीक्षा में है, ताकि बहुमत पा सके. इसके पहले कांग्रेस खेमे के ये तर्क-मंशा स्पष्ट हूं.
अफसरों को तलब : कांग्रेस के सांसद, विधायक, दिल्ली से आये कुछ कांग्रेसी नेता सीधे वरिष्ठ अफसरों को तलब कर रहे हैं. पूछताछ कर रहे हैं. धमकी के स्वर में बात करते हैं. यह कानूनन गलत है. एक पार्टी के नेता किस संवैधानिक हैसियत से ऐसा काम कर सकते हैं?
शपथग्रहण के दिन सूचना आयी कि एक सांसद ने राज्य के दो अत्यंत महत्वपूर्ण अफसरों से राजभवन में ही लंबा परामर्श किया. आदेश दिया. विषय था, एनडीए का प्लेन रोकना. ऐसी चीजें अकल्पनीय हैं. इसका एक मामूली रास्ता है, कि अफसर खुद खड़े हों. वे अपने अधिकार, काम और सीमाएं बेहतर जानते हैं. जिस दिन अफसर गलत आदेशों को मानने से इनकार करने लग जायेंगे, यह सामंती रवैया स्वत: ठीक हो जायेगा.
एनोस एक्का : एनोस एक्का से जुड़े तथ्य हैं –
कोलेबिरा से वह झारखंड पार्टी के विधायक चुने गये हैं. चूंकि झारखंड पार्टी, मान्यता प्राप्त दल नहीं है. इसलिए वह जहां रहें, उनके खिलाफ ‘दल बदल’ नियम के तहत कार्रवाई नहीं हो सकती.
यूपीए का कहना है कि एनडीए ने एक्का का अपहरण किया है.
– पार्टी अध्यक्ष एनइ होरो ने अपनी पार्टी का समर्थन यूपीए को लिखित रूप में दिया. राज्यपाल के पास भेजा. अगले दिन पुराने पत्र को खारिज कर एनडीए के समर्थन में पत्र भेजा. पुन: उसे खारिज कर यूपीए समर्थन की बात दोहरायी. इसके साथ ही झारखंड पार्टी के प्रबंध अध्यक्ष एक वरिष्ठ उपाध्यक्ष और उपमहासचिव ने एनडीए को समर्थन दिया.
अध्यक्ष होरो साहब ने प्रेस कांफ्रेंस कर यूपीए समर्थन की बात की, तो इसी पार्टी के प्रबंध अध्यक्ष ने संवाददाता सम्मेलन कर एनडीए समर्थन की बात मीडिया से कही. स्पष्ट है कि पार्टी इस मुद्दे पर अस्पष्ट, विभाजित और भ्रमित है. कानून व तथ्य यह भी है कि विधायक एक्का स्वत: फैसला करने के हकदार हैं. उन पर पार्टी का आदेश कानूनन लागू नहीं होगा.
– यूपीए का आरोप है कि एनोस अपहृत हैं. दो मार्च को दोपहर वह राज्यपाल से मिलने गये. साथ में झारखंड एनडीए के नेता थे. मान लिया जाये कि उस दिन एनडीए के लोग उनका अपहरण कर उन्हें राजभवन ले गये. कम से कम राजभवन में राज्यपाल की मौजूदगी में वह अपने अपहरण की बात कह सकते थे. नहीं कहा.
मान लिया कि मौका नहीं मिला. उसी दिन राज्यपाल से मिल कर राजभवन प्रांगण में ‘पांच निर्दलीय’ विधायकों (जो अब टीवी पर अपने को पांच पांडव कह रहे हैं) ने टीवी-मीडिया से खुल कर बात की.
वहां भी अपहरण की चर्चा एक्का ने नहीं की. उसी दिन शाम इन पांचों विधायकों ने प्रेस कांफ्रेंस किया, वहां एनडीए नेता नहीं थे. वहां भी एक्का ने अपहरण की बात नहीं कही. अगले दिन तीन मार्च को ये पांचों पुन: राज्यपाल से मिले. राजभवन में. फिर टीवी-मीडिया से चर्चा की. तब एनडीए नेता साथ नहीं थे.
तब भी अपहरण की बात नहीं उठी. फिर दिल्ली पहुं चे, राष्ट्रपति भवन में. हमारी सुरक्षा, ताकत और सत्ता का सर्वोच्च केंद्र. वहां भी ‘अपहृत’ विधायकों ने अपहरण की बात नहीं कही. हर टीवी-चैनल पर वे अपने एनडीए समर्थन का राग अलापते रहे. अब कांग्रेस कहती है कि ‘हरिनारायण-एक्का’ दोनों अपहृत विधायक हैं, पर दोनों साथ-साथ लगातार रह-घूम और अपहरण का खंडन कर रहे हैं.
दो अपहृत लोग साथ रहें, तो मनोविज्ञान कहता है कि वे अपहरणकर्ताओं से आसानी से, कभी भी, किसी अवसर पर मुक्त हो सकते हैं. छोटे बच्चे खतरनाक अपहरणकर्ताओं को गच्चा देकर निकल आते हैं, तो क्या इन दो वयस्क विधायकों को अपहरणकर्ताओं से निकलने का मौका नहीं मिल रहा?
– कोलेबिरा स्थित एनोस के माता-पिता कहते हैं कि एनोस का अपहरण नहीं हुआ है. वह हमसे संपर्क में है. वह सिमडेगा के पत्रकारों से फोन से इंटरव्यू दे रहे हैं. रांची स्थित उनकी ससुराल के लोग कह रहे हैं कि एनोस का अपहरण नहीं हुआ है. न एनोस के मां-बाप या ससुरालवालों ने अपहरण की शिकायत दर्ज करायी है. एक्का दो मार्च की रात ससुरालवालों से मिले थे. ससुरालवाले कह रहे हैं कि उन्होंने अपहृत होने की बात नहीं की.
– अब दूसरा पक्ष देखिए. शपथग्रहण के बाद मुख्यमंत्री शिबू सोरेन, केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय समेत दर्जनों गाड़ियां एक्का की ससुराल एचईसी सेक्टर 2) पहुं ची. वहां भी ससुरालवालों ने अपहरण से इनकार किया.
यानी यूपीए का मानना है कि एनोस के माता-पिता गलत बोल रहे हैं, ससुरालवाले झूठ बोल रहे हैं, खुद एनोस लगातार झूठ बोल रहे हैं, सच यह है कि एनोस का अपहरण हुआ है.
अब एनोस को मुक्त कराने का अभियान एक संगठन शुरू कर चुका है. यह संगठन सरकार का समर्थन कर रहा है. यानी यह सरकार और यह संगठन सामाजिक दबाव पैदा करना चाहते हैं कि एनोस उनकी इच्छानुसार काम करें?
मान लिया जाये कि एनोस का शारीरिक अपहरण एनडीए ने किया है, तो दबाव-भय बना कर उनके विवेक को बदलवाने के काम में सरकार-संगठन लग गये हैं. यानी उनके विवेक-अंतरात्मा के अपहरण के लिए दबाव.
होना यह चाहिए कि विधानसभा का मुक्त माहौल बने, ताकि वहां एनोस अपने विवेक का इस्तेमाल करें. वहां खुली बहस हो और एनोस अपने विवेकानुसार मत डालें. एक विधायक को बाध्य करना, धरना-प्रदर्शन करना, विवश करना भी, कतई लोकतांत्रिक नहीं है.
क्रिश्चियन कार्ड : भाजपा ने धर्म का खेल खेला. गुजरे 15 वर्षों में इस मुल्क ने इस धर्म ज्वार में क्या-क्या भुगता है, बताने की जरूरत नहीं. उसी तरह क्रिश्चियनिटी की बात चला कर एनोस को प्रभावित करने का या उस पर दबाव बनाने का तरीका खतरनाक होगा. धर्म को राजनीति से बिल्कुल दूर रखना चाहिए. यह झारखंड के भविष्य के लिए जरूरी है.
धन्यवाद : इस दांवपेंच-षड्यंत्र के दौर में शिबू सोरेन ने एक साहसिक बयान दिया है. भाजपा ने अपने कार्यकाल में बाहरी-भीतरी, डोमेसाइल वगैरह की जो आग लगायी थी, उस पर अंतत: शिबू सोरेन ने पानी डाल दिया है.
सराहा टीवी को दिये इंटरव्यू में उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि यहां सभी झारखंडी हैं. इस विवाद का यह सुखद सामाजिक प्रसंग है. पटाक्षेप भी. झारखंड से जुड़े इन प्रसंगों पर खुली लोकचर्चा जरूरी है, ताकि झारखंड की राजनीति में लोक हस्तक्षेप बढ़े.
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