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झारखंड की राजनीति : भ्रष्टों पर मौन, बेदागों पर हमला!
– हरिवंश – झारखंड की यह स्थिति क्यों हो गयी? अकसर लोग यह सवाल पूछते हैं, मानों हम अखबारनवीश सर्वज्ञानी हों. पर, आज झारखंड कांग्रेस सदर प्रदीप बलमुचु का बयान पढ़ कर इस सवाल का उत्तर सूझा. कोई बड़ा स्वप्नदर्शी राजनेता कह गया है. 90 फीसदी समाज के अच्छे लोग जहां चुप हो जाते हैं, […]
– हरिवंश –
झारखंड की यह स्थिति क्यों हो गयी?
अकसर लोग यह सवाल पूछते हैं, मानों हम अखबारनवीश सर्वज्ञानी हों. पर, आज झारखंड कांग्रेस सदर प्रदीप बलमुचु का बयान पढ़ कर इस सवाल का उत्तर सूझा. कोई बड़ा स्वप्नदर्शी राजनेता कह गया है. 90 फीसदी समाज के अच्छे लोग जहां चुप हो जाते हैं, वहां ऐसी ही अराजक, नियम-कानूनविहीन और उदास माहौल होता है.
प्रदीप बलमुचु का ज्ञानवर्द्धक बयान था, राज्य के मुख्य सचिव एके चुग और मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव सुखदेव सिंह, झारखंड विकास राह के रोड़े हैं. इस बयान से लगा कि समाज के अच्छे लोगों (चाहे वे जिस भी क्षेत्र में हों) के प्रति जहां सरकार, राजनीति, समाज मौन-दर्शक हो जाते हैं, वहां यही जलालत होती है. श्री चुग और श्री सिंह से कभी व्यक्तिगत संपर्क नहीं रहा. पर, इन दो अफसरों का रेपुटेशन, ईमानदारी, संविधानसम्मत आचरण और मर्यादित व्यक्तित्व राज्य और राज्य के बाहर के लोग जानते हैं.
ऐसे लोगों पर भ्रष्ट राजनीति प्रहार करे और सरकार, राजनीति, समाज के सुलझे लोग चुप रहें, तो झारखंड अराजक ही बनेगा, यही उत्तर है कि झारखंड ऐसा क्यों हो गया? झारखंड में अनेक ऐसे वरिष्ठ आइएएस (सचिव, प्रधान सचिव) हैं, जिन पर कोई राज्य फख्र कर सकता है. जो राज्य प्रगति की सीढ़ी पर छलांग लगा रहे हैं, वहां अगर ये अफसर होते, तो सरकार, राजनीति और समाज के प्रियपात्र और आदर्श होते. जैसे पानी अपना सतह तलाश लेता है, वैसे ही भ्रष्ट राजनीति अपने ढंग का माहौल चाहती है. उसमें अच्छे लोग अनचाहे बन जाते हैं. यही झारखंड में हो रहा है.
पर, बलमुचु जी को कांग्रेस का इतिहास भी नहीं पता. आजादी के बाद कांग्रेस ने यह स्वस्थ संस्कृति विकसित की कि नौकरशाह सार्वजनिक बहस-आलोचना के केंद्र न बनाये जायें. क्योंकि असली जिम्मेवार तो सरकार है. इसलिए राजनेता नीतियों, मुद्दों वगैरह पर सार्वजनिक बहस करें. यह परंपरा आज भी दिल्ली, संसद या अनेक विकसित-समझदार राज्यों में बनी हुई है.
ईमानदार अफसर कहीं सार्वजनिक बहस के विषय नहीं बनाये जाते. वह भी सत्ताधारी गुट के मुख्य सूत्रधार द्वारा. और किसी अफसर से शिकायत है, तो सीधे मुख्यमंत्री या जिम्मेवार मंत्री से तथ्यगत आधार पर शिकायत की जा सकती है. कारण है कि अफसर ही सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन के सूत्रधार हैं.
इसलिए संविधान बनानेवालों ने नौकरशाही को तटस्थ सार्वजनिक विवाद से दूर रखने की कल्पना की. धर्मवीर, केवी लाल वगैरह की परंपरा ने नौकरशाही को आभा-गरिमा दी है. इंदिरा जी से लेकर अनेक सरकारों में शीर्ष पर रहे नौकरशाह नीतीश सेनगुप्ता ने अपने संस्मरण ‘माइ टाइम्स : ए सिविल सर्वेंट रिमेंबर्स’ में लिखा है, उन दिनों राजनीतिक दिशा-निर्देश के तहत आइएएस अफसर लोकतांत्रिक व्यवस्था में काम करते थे. यह वर्ग भारत की एकता का सूत्रधार भी रहा. जाति, धर्म, क्षेत्र की संकीर्ण भावना से ऊपर उठ कर काम करनेवाला. पर, झारखंड की अवयस्क राजनीति जो न करे.
श्री बलमुचु को बताना चाहिए कि यूपीए का क्या राजनीतिक दिशा-निर्देश है? क्या इन राजनीतिज्ञों के पास राज्य के विकास का कोई विजन या सपना है? ऐसे लोगों को यह भी बताना चाहिए कि ये राजनेता राज्य के कुख्यात भ्रष्ट सिंडिकेटों पर कभी सार्वजनिक हमला क्यों नहीं करते? क्यों ये नेता विधानसभा या बाहर राज्य के छंटे भ्रष्ट अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं होने देने का मुद्दा उठाते? क्यों इंजीनियर सिंडिंकेट, मोबाइल दारोगा सिंडिकेट, घूसखोर ट्रांसफर इंडस्ट्री संचालकों पर बलमुचु जी या कांग्रेस या कोई पार्टी मौन रहती है?
जिस विधानसभा से ईमानदार राजनीति संचालित होनी चाहिए, वह सभा ही विधानसभा में अवैधानिक नियुक्तियों का मंच बन गयी है? क्या बलमुचु जी चाहते हैं कि जिस तरह विधानसभा की नियुक्तियों में जी-हुजूरी करनेवाले अफसरों ने हर गलत काम किया, वही राज्य की नौकरशाही करे? राज्य के नेताओं की हर गैरकानूनी इच्छा को साकार करनेवालों की भीड़ वैसे भी नौकरशाही में बढ़ गयी है, पर जो थोड़े-बहुत लोग संविधान, नियम-कानून की मर्यादा में बंधे हैं, उन्हें भी चुप करा कर या तटस्थ बना कर क्या हम झारखंड की राजनीति को धृतराष्ट्र का राजदरबार बना देना चाहते हैं?
ताजा उदाहरण बोकारो का है. बोकारो के उपायुक्त सुनील कुमार रांची, गुमला और सिमडेगा में रहे हैं. तीनों जगह वह बेदाग अफसर के रूप में रहे. बोकारो में उन पर राजनेता क्यों नाराज हुए? सूचना है कि नरेगा योजना को राजनेता अपने ढंग से चलाना चाहते हैं.
पर, संसद ने उसके क्रियान्वयन के लिए जो कानून बनाये हैं, वे इसकी इजाजत नहीं देते? क्या बोकारो उपायुक्त संविधान को मानेंगे या राजनेताओं के फरमान को? क्या बलमुचु चाहते हैं कि नेताओं के फरमान माने जायें, कानून नहीं? बोकारो उपायुक्त पर उन योजनाओं में भी रिश्वत लेने के आरोप लगे, जो शुरू ही नहीं हुई हैं. क्या यही राजनीतिक या सामाजिक जिम्मेवारी है? इन गलत परंपराओं के खिलाफ झारखंड की राजनीति में मौन क्यों है? झारखंड में अनेक ऐसे अफसर हैं (कुछ नये उपायुक्तों-आइएएस समेत), जो बेधड़क लूट रहे हैं, पर उनके नाम कभी क्यों नहीं उछलते?
बलमुचु जी यह सरकार चला रहे हैं. उन्हें एक-एक चीज पता है कि कहां क्या हो रहा है? किन कारणों से झारखंड लगातार पिछड़ रहा है? कोडरमा चुनावों के समय रामगढ़ से लेकर हजारीबाग तक स्पंज आयरन कारखानों में ब्लैक कोयला सप्लाई की इजाजत किसके इशारे पर दी गयी? चाईबासा के ईमानदार एसपी नवीन सिंह किन भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई के कारण बदले गये? पद की योग्यता नहीं होने पर भी सीनियर पदों पर भ्रष्ट अफसर कैसे बैठाये जा रहे हैं, स्कोडा जैसे विवादास्पद सौदेबाजी में किनकी क्या भूमिका है?
ऐसे अनेक सवाल, जो इस राज्य के विकास, सुशासन से जुड़े हैं, अगर बलमुचु जी या कांग्रेस द्वारा सरकार से पूछे जाते, तो झारखंड की यह दशा नहीं होती. जनता जानती है कि इस सरकार के सूत्रधारों में से प्रदीप बलमुचु भी हैं. अपरोक्ष रूप से यह कांग्रेस राज है. इसलिए इस अविकास के दोषी वह और उनकी पार्टी भी है. कांग्रेस को यह भी बताना पड़ेगा कि यूपीए सरकार बनते ही उसका पहला वादा था, एनडीए सरकार के घोटालों की जांच कराना. यह जांच आयोग क्यों नहीं बैठा?
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