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छात्रों की समस्या : भविष्य संवारने के संस्थान चाहिए

– हरिवंश – लगभग साढ़े छह वर्षों की यात्रा और तकरीबन 900 पेजों की फाइल में बंद ‘झारखंड लॉ यूनिवर्सिटी’ के सपने का मूल पेंच यही है. प्रस्तावित विश्वविद्यालय का विजिटर कौन बने? राज्यपाल या न्यायमूर्ति? देश के लगभग आठ जगहों पर ऐसे लॉ स्कूल बने हैं. इनमें से तकरीबन सात में न्यायमूर्ति ही विजिटर […]

– हरिवंश –
लगभग साढ़े छह वर्षों की यात्रा और तकरीबन 900 पेजों की फाइल में बंद ‘झारखंड लॉ यूनिवर्सिटी’ के सपने का मूल पेंच यही है. प्रस्तावित विश्वविद्यालय का विजिटर कौन बने? राज्यपाल या न्यायमूर्ति? देश के लगभग आठ जगहों पर ऐसे लॉ स्कूल बने हैं. इनमें से तकरीबन सात में न्यायमूर्ति ही विजिटर हैं. पर झारखंड तो, संविधान, परंपरा, लोकतांत्रिक मूल्य, उदारता, दृष्टिसंपन्नता वगैरह से परे है. वैसे ही जैसे काशी के बारे में मान्यता है कि वह धरती से परे शिव के त्रिशूल पर है. जिस विजिटर पद पर जिच है, उसका काम?
लगभग नितांत औपचारिक. वर्ष में होनेवाले दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता ! यह काम एक दिन का ही नहीं, कुछेक घंटों का है. महज समारोह की शोभा बढ़ाना.
बस यही एक ‘प्रतिष्ठा’ का बिंदु है. और इसी कारण झारखंड जैसे गरीब राज्य में यह विश्वविद्यालय नहीं खुला. उन हजारों युवाओं से यह पीड़ा आप पूछें, जिनकी आंखों ने लॉ ग्रेजुएट होने के सपने पाल रखे थे? राज्यपाल या न्यायमूर्ति का पद संवैधानिक व लोकतांत्रिक मर्यादा के प्रतीक हैं.
पर दोनों माफ करेंगे? क्या इसी एटीट्यूड (मनोवृत्ति) से, इन पदों के प्रतिसमाज में गरिमा और आदर पैदा होगी? राज्यपाल भी कभी-कभार, सरकार के ढीलेपन और सुस्त कामकाज पर सख्त टिप्पणी करते हैं. न्यायपालिका तो विलंब के लिए प्राय: कटघरे में खड़ा करती है. पर लॉ यूनिवर्सिटी के विलंब के लिए कौन जिम्मेवार है?
आज की दुनिया को ‘नॉलेज एरा’ कहा जाता है. ज्ञान को ही अब मुक्ति का मार्ग माना गया है. ज्ञान केंद्रों (सेंटर ऑफ एक्सलेंस) को खोलने की होड़ है. ज्ञान केंद्रों से ही अब राज्य, समाज और देशों की प्रगति आंकी जाती है. जिस देश में एक-एक राज्य, आइआइटी, आइआइएम, लॉ स्कूल वगैरह (सेंटर ॲफ एक्सलेंस), खोलने की स्पर्द्धा में हैं, ‘कल करे सो आज कर’ की संस्कृति अपना रहे हैं, वहां झारखंड में यह हाल? क्या यही झारखंडी राज्य, समाज और भविष्य के साथ न्याय है?
आप जान कर स्तब्ध होंगे? आरंभ में प्रस्तावित झारखंड लॉ यूनिवर्सिटी की अवधारणा से जुड़े थे, मशहूर बेंगलूर लॉ स्कूल के संस्थापक माधव मेनन, फिर बंगाल सरकार ने आग्रह कर उन्हें कोलकाता लॉ कालेज स्थापित करने के लिए तैयार किया. आज ये दोनों संस्थान अंतरराष्ट्रीय स्तर के हैं.
यहां पढ़नेवाले छात्र तीसरे वर्ष में ही औसतन 10-12 लाख की नौकरी पाते हैं. पर झारखंड में राजनीति का कमाल देखिये? हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित माधव मेनन का उपयोग नहीं कर सके. पानी के बारे में कहावत है. पानी अपनी सतह खोज लेता है. जैसी हमारी सरकार, उसने वैसी ही कार्यपद्धति अपना ली है.
आज बेंगलूर को दुनिया ‘पूरब की सिलिकॉन वैली’ मानती है. दुनिया के सर्वश्रेष्ठ सृजनशील मस्तिष्क (क्रियेटिव माइंड) वहां रहते हैं. 1920 में उसी बेंगलूर राज्य को इंजीनियर (आधुनिक भारत के निर्माताओं में से एक) एम विश्वसरैया ने कहा था, भारतीयों को यह चुनना है कि वे शिक्षित होना चाहते हैं या अपढ़ रहना चाहते हैं? भारतीयों को तय करना है कि वे पढ़-लिख कर बाहरी संस्कार के संपर्क में आयेंगे या निरपेक्ष और अलग-थलग रहेंगे? वे संगठित रहेंगे या खेमों में बंटे रहेंगे? वे साहसी बनेंगे या कायर रहेंगे? उद्यमी होंगे या लापरवाह? वे औद्योगिक देश बनेंगे या कृषि प्रधान देश? संपन्न देशों के धौंस से सहमा देश या साहसिक-समृद्ध मुल्क? एक्शन (कामकाज) ही हमारा भाग्य तय करेगा, हमारी भावुकता नहीं?
श्रद्धेय विश्वसरैया के उद्धरण में जहां देश है, वहां झारखंड शब्द इस्तेमाल कर पढ़ें. हम कहां ले जा रहे हैं इस राज्य को?
हम कितना भी इतरायें कि खनिज की दृष्टि से हम सबसे संपन्न राज्य हैं. पर टेक्नोलॉजी ने इस दुनिया को बदल दिया है. अब ‘लोकेशन'(जगह) का महत्व नहीं रहा. हुनर का, ज्ञान का, सूचना समृद्धि का, श्रेष्ठ संस्थाओं का दौर है!
दिनांक : 29-05-07

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