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625 कर्मियों की नियुक्ति अवैध!

-रांची विवि अंतर्गत कॉलेजों में बरखास्त कर्मचारी कार्यरत- ।।पीयूष मिश्र।।रांचीः रांची विवि अंतर्गत विभिन्न कॉलेजों में 625 शिक्षकेतर कर्मचारियों की नियुक्ति संदेह के घेरे में है. विवि ने इन्हें 22 फरवरी 1994 को ही बर्खास्त कर दिया था. इसके बाद भी ये विभिन्न कॉलेजों में कार्यरत हैं. अजय प्रकाश खरे और संतोष कुमार वर्मा कोसूचनाधिकार […]

-रांची विवि अंतर्गत कॉलेजों में बरखास्त कर्मचारी कार्यरत-

।।पीयूष मिश्र।।
रांचीः रांची विवि अंतर्गत विभिन्न कॉलेजों में 625 शिक्षकेतर कर्मचारियों की नियुक्ति संदेह के घेरे में है. विवि ने इन्हें 22 फरवरी 1994 को ही बर्खास्त कर दिया था. इसके बाद भी ये विभिन्न कॉलेजों में कार्यरत हैं.

अजय प्रकाश खरे और संतोष कुमार वर्मा कोसूचनाधिकार से प्राप्त मिली जानकारी में इस बात का खुलासा हुआ है. जानकारी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र दायर कर जिन्हें बरखास्त किये जाने की सूचना दी गयी, उन्हीं कर्मचारियों को विवि ने 2005 में पांचवें वेतन आयोग का लाभ दिये जाने की अनुशंसा की. इधर विवि प्रशासन इस मामले में अधिवक्ता की राय ले रहा है. विवि के रजिस्ट्रार ने इस मामले की जांच कराने की बात कही है.

जानकारी के अनुसार 26 अप्रैल 1989 को बिहार स्टेट कॉलेज इंप्लाइज फेडरेशन और बिहार सरकार के बीच एक समझौता हुआ था, जिसमें यह कहा गया था कि वैसे दैनिक वेतनभोगी जो विभिन्न कॉलेजों में अनुशंसित या बिना अनुशंसित पदों पर आसीन हुए हैं, उन्हें स्थायी किया जाये. उस वक्त रांची विवि के कुलपति लाल साहेब सिंह थे. एग्रीमेंट को लागू करवाने के लिए उन्होंने विवि के अधीन सभी कॉलेजों से दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों की सूची मांगी. जिन कॉलेजों ने उन्हें सूची उपलब्ध करा दी, उन सभी कर्मियों को विवि ने रेगुलर करने की अनुशंसा कर दी. जब कुलपति लाल साहेब सिंह का कार्यकाल समाप्त हुआ और उनकी जगह अमर कुमार सिंह कुलपति बने, तो उन्होंने इस प्रक्रिया पर रोक लगा दी. दो दिसंबर 1990 को एक अधिसूचना जारी कर कहा गया कि वैसे दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी, जो 30 नवंबर 1988 तक बैंक से वेतन नहीं ले रहे हैं, उन्हें पद से मुक्त कर दिया जाये. विवि के इस आदेश के बाद प्रभावित कर्मचारियों ने आंदोलन शुरू कर दिया. इसके बाद विवि प्रशासन ने आदेश दिया कि 15 फरवरी 1991 के बाद जितने भी दैनिक वेतन भोगी हैं, उन्हें हटा दिया जाये.

विवि के इस आदेश का भी विरोध हुआ. तब विवि और कर्मचारियों के बीच एक समझौता हुआ, जिसमें यह कहा गया कि उन्हें फिर से सेवा में ले लिया जाये, लेकिन पहले जिन्हें बर्खास्त किया गया था, उन्हें सेवा में नहीं लिया जाये. विवि के इस आदेश के बाद प्रभावित कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की.

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि 26 अप्रैल 1989 को बिहार स्टेट कॉलेज इंप्लॉइज फेडरेशन और बिहार सरकार के बीच जो समझौता हुआ था, उसे अक्षरश: लागू किया जाये. साथ ही कोर्ट ने कहा कि स्टाफ पैटर्न से बाहर के कर्मचारियों को बर्खास्त करने के लिए विवि स्वतंत्र है. कोर्ट ने वादियों की पहचान के लिए दो महीने का समय भी दिया, लेकिन बिहार सरकार ने पहचान सुनिश्चित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया. वादियों ने अवमानना का मामला सुप्रीम कोर्ट में पुन: दाखिल कर दिया. बिना किसी जांच के 955 पदों में से रांची विवि को मिले 576 पदों पर ऐसे लोगों की नियुक्ति कर दी जो विभिन्न कॉलेजों में कार्यरत थे. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में स्टाफ पैटर्न के बाहर के 625 लोगों को नौकरी से बर्खास्त करने की बात कही गयी, लेकिन ये विभिन्न कॉलेजों में कार्यरत हैं.

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