रांची : बिहार के 950 करोड़ रुपये के चारा घोटाले से संबंधित चाईबासा कोषागार से फर्जी ढंग से 37 करोड़ रुपये से अधिक धन निकालने के मामले में आज बहस पूरी हो गयी इस मामले में राजद प्रमुख और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव भी अभियुक्त है.
विशेष सीबीआई अदालत ने इस मामले में सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद आज कहा कि वह अपना फैसला 30 सितंबर को सुनायेगी. इससे पहले, लालू प्रसाद यादव के वकील सुरेन्द्र सिंह ने लगभग एक घंटे बहस की और दावा किया कि बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ इस मामले में अभियोजन की स्वीकृति राज्यपाल ने असंवैधानिक ढंग से दी थी और इसके लिए उन्होंने बिहार के मंत्रिपरिषद से सलाह नहीं ली थी.
उन्होंने दावा किया कि इस मामले में चूंकि लालू यादव के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति गलत ढंग से दी गयी है और असंवैधानिक है लिहाजा उनके खिलाफ पूरा अभियोजन की अवैध था.
सीबीआई ने कहा कि तत्कालीन वित्त सचिव फूलचंद को इन रिपोर्टों का पूरा ज्ञान था और यह संभव नहीं है कि उन्होंने यह बात वित्तमंत्री सह मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को न बतायी हो.
सीबीआई ने इस मामले में लालू प्रसाद यादव के पूरी तरह शामिल होने का दावा करते हुए कहा कि यदि वह इसमें शामिल नहीं होते तो फिर चारा घोटाले के मुख्य अभियुक्त पशुपालन विभाग के तत्कालीन क्षेत्रीय निदेशक एसबी सिन्हा को सेवा विस्तार क्यों देते रहे? सीबीआई ने पूछा कि चारा घोटाले के अलावा उन्होंने विभाग में ऐसा कौन सा करामात किया था? बहस पूरी होने के बाद विशेष सीबीआई अदालत के न्यायाधीश प्रवास कुमार सिंह ने कहा कि वह तीस सितंबर को फैसला सुनायेंगे.
इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री के वकील ने नौ सितंबर को बहस शुरु करते हुए दावा किया था कि 21 जनवरी, 1996 से पूर्व लालू को चारा घोटाले के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी. इस बारे में जानकारी मिलते ही उन्होंने दस दिन के भीतर प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश दिये. उनके निर्देश पर कुल 41 प्राथमिकी इन मामलों में दर्ज की गयी थीं.
लालू के पक्ष में दावा किया गया था कि पहली बार इस घोटाले के बारे में प्राथमिक जांच के बाद बिहार के तत्कालीन वित्तायुक्त वीएस दूबे ने 21 जनवरी, 1996 को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव को रिपोर्ट दी. उन्होंने दावा किया था कि यह तो ऐसा मामला बन गया था जिसमें जांच करवाने वाले को ही गलत और भ्रष्टाचारी साबित करने की कोशिश सीबीआई ने की थी.
अदालत से राजद सुप्रीमो के वकील ने यह भी कहा था कि स्वयं उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई को केंद्र सरकार का तोता बताया है और यह बात इस मामले में पूरी तरह सही साबित हुई है. तत्कालीन सरकारों के इशारे पर सीबीआई ने लालू यादव को इन मामले में जानबूझकर फंसाया.
विशेष सीबीआई अदालत में आरसी 20 ए-96 मामले में लालू प्रसाद यादव समेत कुल 45 आरोपी हैं. इससे पूर्व विशेष अदालत ने तय किया था कि इस मामले में 29 अगस्त से बहस प्रारंभ होगी और इसमें लालू के वकील अपनी बहस नौ सितंबर से प्रारंभ करेंगे.
इससे पूर्व उच्चतम न्यायालय से सीबीआई के न्यायाधीश को बदलवाने की कोशिश में नाकाम होने के बाद लालू यादव ने 26 अगस्त को यहां विशेष सीबीआई अदालत में अपनी बहस प्रारंभ करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा था.
सीबीआई के विशेष न्यायाधीश ने 27 अगस्त को इस मामले में निर्देश दिया कि सभी संबद्ध पक्ष अपनी बहस 29 अगस्त से प्रारंभ करें जो 16 सितंबर तक पूरी कर ली जायेगी.
सरकारी गवाह आरके दास की मौत
रांची: चारा घोटाले के सबसे बड़े मामले(आरसी 20ए/96) के सरकारी गवाह आरके दास की मौत हो गयी है. इसके साथ ही इस कांड से जुड़े लोगों में मरनेवालों की संख्या नौ हो गयी है. आरके दास की मौत 10 सितंबर 2013 को हो गयी. हालांकि इससे मुकदमे पर किसी तरह का प्रभाव नहीं पड़ेगा. उनका बयान दर्ज किया जा चुका है. क्रॉस एक्जामिनेशन भी हो चुका है. न्यायिक प्रक्रिया के दौरान अब इस सरकारी गवाह की कोई जरूरत नहीं है. घोटाले के इस मामले की सुनवाई के दौरान ही आठ अभियुक्तों की मौत हो चुकी है.
इनमें तत्कालीन दो पशुपालन मंत्री भी शामिल हैं. गौरतलब है कि चारा घोटाले के इस मामले में सीबीआइ ने अभियुक्तों में से आरके दास और दीपेश चांडक को सरकारी गवाह बनाया था. दीपेश चांडक को चारा घोटाले में लाभान्वित होनेवाले सबसे बड़े सप्लायर के रूप में चिह्न्ति किया गया है. आरके दास पशुपालन विभाग में प्रशासनिक अधिकारी थे. चारा घोटाले में घोटालेबाजों को बचाने के लिए विभागीय स्तर पर की जानेवाली कार्रवाई की उनको जानकारी थी.