रांची: हजारीबाग में बरतन व्यवसायी को कोयला चोर बनाने के आरोप में डीआइजी सुमन गुप्ता द्वारा बरखास्त किये गये दारोगा राधेश्याम दास के बरखास्तगी आदेश को बोकारो आइजी मुरारी लाल मीणा ने रद्द कर दिया है. आइजी ने अपने आदेश में लिखा है कि दारोगा राधेश्याम दास के मामले में सहानुभूतिपूर्वक विचार करने के बाद उनके बरखास्तगी आदेश को रद्द किया जाता है.
इसी मामले में दारोगा राधेश्याम के अलावा छह सिपाहियों और दो दारोगा को भी बरखास्त कर दिया गया था. अब राधेश्याम की बरखास्तगी को रद्द करने के बाद बाकी बरखास्त पुलिसकर्मियों ने डीजीपी राजीव कुमार के पास अपील करते हुए अपनी बरखास्तगी को रद्द करने का अनुरोध किया है. डीजीपी ने अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं लिया है. मामला डीजीपी के पास लंबित है. यह घटना 2007 की है, जिस समय प्रवीण सिंह हजारीबाग के एसपी थे. उसी दौरान पुलिसकर्मियों ने बरतन व्यवसायी को कोयला चोर बना कर जेल भेज दिया था.
सीआइडी कर रहा जांच
इस मामले में फंसे पदाधिकारियों की बरखास्तगी डीआइजी (सुमन गुप्ता) के स्तर से हुई थी,जबकि सिपाहियों की बरखास्तगी हजारीबाग के तत्कालीन एसपी पंकज कंबोज ने की थी. बरतन व्यवसायी महेश कसेरा को कोयला चोर बनाने को लेकर हजारीबाग के पदमा थाने में प्राथमिकी दर्ज की गयी थी. इस मामले की जांच सीआइडी कर रहा है. कोर्ट के निर्देश पर सीआइडी तत्कालीन एसपी प्रवीण सिंह की भूमिका की भी जांच कर रहा है.
क्या था मामला
पुलिसकर्मियों ने 2007 में हजारीबाग के डिस्ट्रिक्ट बोर्ड चौक पर बरतन लदा मार्शल पकड़ा. मार्शल पर सवार लोगों से पुलिसकर्मियों ने पैसे की मांग की. नहीं देने पर साथ में पकड़े गये लोगों को एक हफ्ते तक विष्णुगढ़, पेलावल व पदमा थाने में रखा गया. फिर मार्शल से बरतन उतार कर उसमें कोयला रख दिया गया और पदमा थाने में केस (नंबर 158 /2007 ) कर पकड़े गये लोगों को जेल भेज दिया गया.
मामले की जानकारी मिलने पर तत्कालीन सीआइडी एडीजी आरसी कैथल ने जांच करायी. जांच में शिकायत सही पाये जाने पर सदर थाने में ही पुलिसकर्मियों के खिलाफ प्राथमिकी (संख्या 693/2008) दर्ज की गयी, जिसके बाद आरोपी पुलिसकर्मियों को पुलिस मुख्यालय से निलंबित किया गया. इसमें दारोगा राधेश्याम दास, अजय चौरसिया, हरिश्चंद्र पाल, सिपाही देवानंद यादव, रूपनारायण सिंह, ड्राइवर शत्रुघ्न सिंह, हवलदार मो शमशाद, सिपाही रूपेश कुमार, कौशल कुमार सिंह व होमगार्ड सकलदेव सिंह को नामजद अभियुक्त बनाया गया. फिर सभी के खिलाफ विभागीय कार्यवाही चलायी गयी. विभागीय कार्यवाही में आरोप सही पाये जाने पर सभी के खिलाफ बरखास्तगी की कार्रवाई की गयी.