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Friday, March 29, 2024

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झारखंड में महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर महिला आयोग की भूमिका नगण्य

-रजनीश आनंद- मासिक धर्म या माहवारी हर महिला के जीवन का हिस्सा बनता है, अत: इससे जुड़ी समस्याओं को दरकिनार नहीं किया जा सकता है. बावजूद इसके हमारा समाज आज भी मासिक धर्म और उससे जुड़ी समस्याओं के बारे में बात नहीं करना चाहता है. यहां तक कि सरकार भी आधी आबादी की इस समस्या […]

-रजनीश आनंद-

मासिक धर्म या माहवारी हर महिला के जीवन का हिस्सा बनता है, अत: इससे जुड़ी समस्याओं को दरकिनार नहीं किया जा सकता है. बावजूद इसके हमारा समाज आज भी मासिक धर्म और उससे जुड़ी समस्याओं के बारे में बात नहीं करना चाहता है. यहां तक कि सरकार भी आधी आबादी की इस समस्या पर गहराई से चिंतन नहीं कर रही है. विगत कुछ वर्षों में सरकार की ओर से कुछ प्रयास हुए हैं, लेकिन उन्हें पर्याप्त नहीं बताया जा सकता है. झारखंड के आदिवासी समाज में माहवारी से जुड़ी समस्याएं और भी गंभीर इसलिए हैं, क्योंकि इस समाज में कई भ्रांतियां और अंधविश्वास है.

आदिवासी समाज में शिक्षा का प्रसार भी कम है, इसलिए स्थिति और भी गंभीर है. जो लोग इन भ्रांतियों को मिटाने और स्वच्छता के प्रति जागरूकता के काम में जुटे हैं, उनका कहना है कि यह एक बड़ी चुनौती हैं. ऐसे में सवाल यह है कि अगर माहवारी स्वच्छता और उससे जुड़ी भ्रांतियों को मिटाना इतना जरूरी है, तो आजतक इस ओर क्यों ठोस कार्रवाई नहीं हुई. महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए दृढ़संकल्पि सरकारें आजतक क्यों इस मुद्दे पर गंभीर प्रयास नहीं कर रहीं हैं. महिला आयोग जिसे सांविधानिक निकाय का दर्जा प्राप्त है और जिसके बारे में यह कहा जाता है कि वह सरकार को हर उस मुद्दे पर सलाह देता है, जो महिलाओं को प्रभावित करती है, तो फिर क्यों महिला आयोग ने महिलाओं से जुड़े इतने अहम मुद्दे पर आज तक सरकार को कोई सलाह नहीं दी है.

जब झारखंड राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष महुआ मांजी से इस संबंध में सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि अभी हम इस दिशा में कोई काम नहीं कर रहे हैं और न ही हमें इस ओर काम करने का कोई निर्देश प्राप्त हुआ है. उन्होंने कहा कि आयोग अभी उन्हीं विषयों पर काम करता है, जिसकी शिकायत आयोग के पास आती है. जब उनसे यह जानने की कोशिश की गयी कि माहवारी स्वच्छता और इससे जुड़ी भ्रांतियों के कारण महिलाओं का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है, तो क्या आयोग इस ओर कोई काम करेगा, तो उन्होंने कहा कि क्यों नहीं हम ऐसा जरूर करना चाहेंगे, लेकिन अभी तक इस संबंध में कोई योजना नहीं बनी है.

उन्होंने इस बात की जानकारी होने से भी इनकार किया कि अन्य राज्यों में कार्यरत आयोग भी इस दिशा में कोई काम कर रहा है. यूनिसेफ और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन ने भी इस दिशा में बहुत काम नहीं किया है. पश्चिम सिंहभूम जिले में माहवारी स्वच्छता के प्रति जागरूकता लाने और भ्रांतियों को मिटाने में महिला सामाख्या का प्रयास सराहनीय है. महिला सामाख्या मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन संचालित कार्यक्रम है. महिला सामाख्या की स्टेट हेड स्मिता गुप्ता ने बताया कि महिला सामाख्या माहवारी स्वच्छता के प्रति जागरूकता लाने के लिए झारखंड के 11 जिलों में काम कर रहा है. जिनमें रांची, खूंटी, पश्चिम सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला- खरसावां, गोड्डा, साहिबगंज, गिरिडीह, गढ़वा एवं चतरा जिला शामिल है. महिला सामाख्या पंचायत स्तर पर कार्य कर रहा है.

महिला सामाख्या का उद्देश्य महिलाओं को जागरूक करना, उन्हें हेल्थ हाइजीन की जानकारी देना, बीमारियों के संबंध में बताना और महिलाओं को यह जानकारी देना है कि माहवारी के दौरान परंपरागत तरीकों के इस्तेमाल से क्या परेशानी हो सकती है. महिला सामाख्या महिलाओं के समूहों द्वारा अपनी योजनाओं को ग्रामीण महिलाओं तक पहुंचाता है. इसके लिए सामाख्या महिलाओं के समूह का गठन करता है, जो महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उनके सशक्तीकरण के लिए कार्यरत है. इस समूह में गांव की महिलाएं शामिल रहती हैं. इन समूहों की महिलाओं को इस बात की जानकारी दी जाती है कि वे किस तरह माहवारी के दौरान साफ-सफाई रखेंगी और साथ ही उनकी समस्याओं का निदान भी बताया जाता है.

इन समूहों की महिलाएं गांव में जब अन्य महिलाओं के संपर्क में आती हैं, तो वे उनतक प्रशिक्षण की बातें और जानकारियों को पहुंचाती हैं. चूंकि समूह की महिलाएं ग्रामीण महिलाओं के बीच की ही होती हैं, इसलिए वे उनकी बातों को ग्रहण करने में उतना संकोच नहीं करती हैं. इसलिए यह प्रयास सफल होता दिख रहा है. महिला सामाख्या समूह की महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन के इस्तेमाल की ओर प्रोत्साहित करता है. साथ ही उन्हें यह भी बताता है कि परंपरागत तरीकों के इस्तेमाल से किस तरह की परेशानियां सामने आती हैं.

महिला सामाख्या सखी नाम की सेनेटरी नैपकिन का निर्माण भी करवाता है और उसे ग्रामीण इलाकों में उपलब्ध कराता है. इसकी कीमत अन्य ब्रांडेड कंपनियों के नैपकिन से काफी कम है. यह 15 रुपये के पैकेट में उपलब्ध है. सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात यह है कि महिला सामाख्या महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन के सेफ डिस्पोजल की जानकारी भी देता है. साथ ही सामाख्या वाइडिंग मशीन की भी वकालत करता है जिसके जरिये सेनेटरी नैपकिन को इस तरह नष्ट किया जा सकता है कि पर्यावरण पर उसका बुरा असर न पड़े. पश्चिम सिंहभूम जिले में महिला सामाख्या का यह कार्यक्रम जिला कार्यक्रम संयोजक ईवानी पुष्पा के देख-रेख में संचालित हो रहा है.

बावजूद इसके यह कहा जा सकता है कि माहवारी स्वच्छता की जानकारी देने और भ्रांतियों को मिटाने के लिए अभी काफी कुछ किया जाना है. जो प्रयास हो रहे हैं, वे सराहनीय हैं, लेकिन उन्हें पर्याप्त नहीं कहा जा सकता.

(यह आलेख आईएम4चेंज, इंक्लूसिव मीडिया यूएनडीपी फेलोशिप के तहत प्रकाशित है)

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