– सुरजीतसिंह/मनोजसिंह –
केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य एनसी सक्सेना के बयान खराब हो चुके हालात की ओर इशारा करते हैं. हालात सचमुच खराब है. 12-13 सालों में एक आइएएस का तबादला 18 बार हो जाता है. एक जिले में 13 सालों में 15 एसपी बदले जाते हैं.
ऐसा लगता है झारखंड में आइएएस–आइपीएस अफसरों को फुटबॉल बना दिया गया. जिस तरह फुटबॉल किसी एक खिलाड़ी के पास नहीं रहता है, उसी तरह यहां आइएएस–आइपीएस को किसी एक जिले या एक पद पर ज्यादा समय तक काम करने नहीं दिया जाता.
रांची : राज्य गठन के बाद 13 सालों में विभिन्न जिलों में आठ से 15 एसपी तक बदले गये हैं. वहीं, आइएएस अधिकारियों का एक पद पर औसत सेवा काल मात्र एक से डेढ़ साल के बीच है. राज्य के इक्के –दुक्के ही आइएएस और आइपीएस हैं, जो एक जिले में न्यूनतम दो साल का कार्यकाल पूरा कर सके हैं.
एक वरिष्ठ आइपीएस कहते हैं : काम क्या खाक करेंगे, यहां तो पोस्टिंग के दूसरे माह से ही ट्रांसफर की खबरें उड़ने लगती हैं.
नक्सल प्रभावित इलाके में भी एसपी को मौका नहीं : लातेहार और पलामू जैसे नक्सली प्रभावित जिलों में भी एसपी को रुक कर काम करने का मौका नहीं दिया जाता है. दोनों जिलों के लोग 13 साल के दौरान 15-15 एसपी देख चुके हैं. 2007 में खूंटी और रामगढ़ अलग जिला बना.
पांच साल में यहां क्रमश: सात और पांच एसपी पदस्थापित हो चुके हैं. इन 13 सालों में गुमला में 13 और सिमडेगा में 14 एसपी का पदस्थापन हुआ हैं. यानी हर साल आइपीएस अफसर बदले गये. खूंटी, गुमला और सिमडेगा में विधि व्यवस्था के बहाने तबादले किये गये.
पर हजारीबाग, सरायकेला, चाईबासा, जमशेदपुर, बोकारो और धनबाद में भी कोई एसपी औसतन डेढ़ साल तक नहीं टिक पाया. इन जिलों को मलाइदार जिलों की संज्ञा दी गयी है.
झारखंड को अपना कैडर बनानेवाले आइएएस अधिकारियों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है. राज्य गठन के बाद पहली बार झारखंड कैडर लेनेवाली पूजा सिंघल का 11 साल में 18 बार तबादला हुआ. इसी तरह अमिताभ कौशल का तबादला अब तक 12 बार किया जा चुका है.
झारखंड में बनी नयी सरकार को ट्रांसफर पोस्टिंग में नहीं, विकास पर ध्यान देना चाहिए. हर छह माह में सत्ता बदल जाती है, फिर विकास कैसे होगा. जब तक अधिकारी काम समझते हैं, तबादला हो जाता है. एक अधिकारी को तीन साल अवसर देना ही चाहिए.
आखिर जिम्मेदार कौन कभी सरकार, तो कभी खुद
आइएएस–आइपीएस के असमय तबादले के लिए सिर्फ सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. हां अधिकतर मामलों (करीब 80%) में सरकार अपनी सुविधा के अनुसार कभी किसी विधायक, तो किसी मंत्री के दबाव में तबादला करती है.
कभी कानून–व्यवस्था का हवाला दिया जाता है. तबादले के 20} मामले में अफसर खुद जिम्मेवार हैं. कभी अफसरों के बीच गुटबाजी, तो कभी बेहतर पोस्टिंग के लिए खुद पैरवी करवाते हैं.
क्या कहता है नियम
पुलिस विभाग में आइपीएस ही नहीं, सिपाही तक के लिए पदस्थापन का कार्यकाल तय है. पहले एसपी का कार्यकाल एक जिले में तीन साल के लिए होता था. पुलिस रिफॉर्म लागू होने (2007 से) के बाद एसपी का कार्यकाल न्यूनतम दो साल तय हो गया है. सरकार इस बारे में अधिसूचना जारी कर चुकी है.
प्रकाश सिंह बनाम राज्य सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा भी दाखिल कर चुकी है. पर इसकी परवाह किये बिना सरकार आइपीएस का तबादला करती रही है. सरकार ने आइएएस के तबादले के लिए भी गाइड लाइन जारी की थी, एक जिले में न्यूनतम तीन साल रखने की बात कही थी.