राज्यपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख होते हैं. उनके आदेश के बाद भी विधानसभा की गलत नियुक्तियों की जांच न हो, तो न्याय के लिए लोग कहां जायें? ऐसा ही झारखंड हमने बनाया है. पूछिए 14 वर्षो तक सत्ता में रहे लोगों से कि क्या सत्ता नेताओं की समृद्धि, उनके परिवार-स्वजनों को खैरात, नौकरी देने के लिए मिली या झारखंड, आम लोगों के लिए बना?
रांची: झारखंड बनने के बाद 14 वर्षो में विधानसभा में 600 से अधिक नियुक्तियां हुईं. ये नियुक्तियां नियम विरुद्ध थी. प्रोन्नति भी नियम विरुद्ध किये गये. राज्यपाल ने इन नियुक्तियों / प्रोन्नतियों पर सवाल उठाये. जांच का आदेश दिया. इन नियुक्तियों की वैधता पर विधानसभा से जवाब मांगा. पर राज्यपाल के आदेश के बाद भी इन अवैध नियुक्तियों व प्रोन्नतियों की जांच नहीं हो पायी.
बनाया गया आयोग : स्पीकर इंदर सिंह नामधारी और आलमगीर आलम के कार्यकाल में हुईं इन नियुक्तियों पर सवाल उठने के बाद राज्यपाल ने विधानसभा को एक फरवरी 2012 को पत्र लिखा था. राज्यपाल का पत्र तत्कालीन स्पीकर सीपी सिंह को मिला. उन्होंने कहा कि राज्यपाल चाहें, तो खुद ही इन नियुक्तियों की जांच करा लें. इसके बाद राज्यपाल ने जांच के लिए न्यायिक आयोग के गठन का आदेश दिया. मंत्रिमंडल सचिवालय ने इससे संबंधित पत्र भी जारी कर दिया. सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति लोकनाथ प्रसाद की अध्यक्षता में आयोग बना.
30 बिंदुओं पर करनी थी जांच : आयोग को नियुक्तियों में हुई अनियमितता की जांच के लिए 30 बिंदुओं की निर्धारित शर्त (टर्म ऑफ रिफ्रेंस) दी गयी. तीन माह में जांच प्रतिवेदन जमा करने को कहा गया. पर बाद में आयोग को विधानसभा से अपेक्षित सहयोग नहीं मिला. तत्कालीन स्पीकर के हस्तक्षेप के बाद भी आयोग को दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराये गये. सीपी सिंह स्पीकर पद से हटे. इसके बाद लोकनाथ प्रसाद ने भी आयोग के अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया. सूचना के मुताबिक, इसके बाद न्यायमूर्ति विक्रमादित्य प्रसाद के नाम की अनुशंसा हुई. पर आज तक इसकी अधिसूचना जारी नहीं हो सकी. इस तरह आयोग से भी जांच पूरी नहीं हुई.
राज्यपाल ने उठाये थे सवाल
क्या नियुक्ति/ प्रोन्नति में पिक एंड चूज पद्धति अपनायी गयी
क्या विज्ञापन में पदों की संख्या का उल्लेख नहीं था. क्या बिना पदों की संख्या के जारी किया गया विज्ञापन वैध है
क्या तैयार मेधा सूची में कई
रौल नंबर पर ओवर राइटिंग की गयी है
क्या पलामू के 13 अभ्यर्थियों को स्थायी डाक पता पर पोस्ट भेजा गया. क्या पत्र 12 घंटे के भीतर मिल गया
क्या सफल उम्मीदवारों ने दो दिनों के अंदर ही योगदान कर दिया
क्या अनुसेवक के लिए नियुक्ति प्रक्रिया द्वारा कथित रूप से चयनित व्यक्तियों को ऑडरर्ली रूप से नियुक्त कर लिया गया
क्या गठित नियुक्ति कोषांग में कौशल किशोर प्रसाद और सोनेत सोरेन को शामिल किया गया, जिनके खिलाफ पूर्व स्पीकर एमपी सिंह ने प्रतिकूल टिप्पणी की थी
तत्कालीन सचिव-सह-साक्षात्कार कमेटी के अध्यक्ष व सदस्य कौशल किशोर प्रसाद विधानसभा सत्र में व्यस्त थे, पूरी अवधि में टाइपिंग शाखा के तारकेश्वर झा व सहायक महेश नारायण सिंह शामिल हुए. इसके बाद भी साक्षात्कार कमेटी के सदस्यों ने हस्ताक्षर कर दिये
क्या नियुक्ति की कार्रवाई बिना पद रहे प्रारंभ कर दी गयी या बिना पद के उपलब्ध परिणाम घोषित कर दिये गये
क्या चालकों की नियुक्ति के लिए निकाले गये 28 दिसंबर 2006 के विज्ञापन में विहित अंतिम तिथि तक पार्थ सारथी चौधरी ने अपना आवेदन नहीं जमा कराया था. क्या वह तत्कालीन निरसा विधायक अपर्णा सेनगुप्ता के भाई थे. किस आधार पर उन्हें साक्षात्कार के लिए बुलाया गया
चालकों की 17 नियुक्तियों में 14 को एमवीआइ ने जांच में असफल पाया था, बावजूद इसके वे नौकरी पर रख लिये गये
क्या इंदर सिंह नामधारी के अध्यक्ष काल में प्रतिवेदकों के 23 पदों के विरुद्ध 30 व्यक्तियों की नियुक्ति की गयी
कैसे लटकी आयोग की जांच
01 फरवरी 2012 को विधानसभा सचिवालय को राज्यपाल सचिवालय से पत्र मिला. इसमें विधानसभा में हुई नियुक्ति- प्रोन्नति में अनियमितता की बात थी
10 मई 2013 को मंत्रिमंडल सचिवालय व समन्वय विभाग ने एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया. न्यायमूर्ति लोकनाथ प्रसाद अध्यक्ष बने
आयोग को कमरा व संसाधन उपलब्ध कराने में एक माह का समय लग गया
आयोग ने जून 2013 में काम शुरू किया
सरकार ने आयोग का कार्यकाल तीन माह से बढ़ा कर एक वर्ष कर दिया
आयोग के अध्यक्ष ने एक नवंबर 2013 को इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे का पत्र लंबे समय तक सरकार के पास विचाराधीन रहा
अब तक नये अध्यक्ष की नियुक्ति की अधिसूचना जारी नहीं हुई