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बनाना था इंद्रप्रस्थ, बना दिया गया ‘इंदर प्रस्थ’

विधानसभा, जिस पर न्यायसंगत ढंग से राज्य चलाने का दायित्व है, वहीं नेताओं ने अपने अपने लोगों की फरजी नियुक्तियां की. होनहार छात्रों का हक मारा. क्यों ऐसे मुद्दे झारखंड की नियति तय करनेवाले विधानसभा चुनाव में एजेंडा नहीं बन रहे? हमारा मकसद है कि ऐसे मुद्दों पर राजनीतिक बहस शुरू हो, ताकि व्यवस्था की […]

विधानसभा, जिस पर न्यायसंगत ढंग से राज्य चलाने का दायित्व है, वहीं नेताओं ने अपने अपने लोगों की फरजी नियुक्तियां की. होनहार छात्रों का हक मारा. क्यों ऐसे मुद्दे झारखंड की नियति तय करनेवाले विधानसभा चुनाव में एजेंडा नहीं बन रहे? हमारा मकसद है कि ऐसे मुद्दों पर राजनीतिक बहस शुरू हो, ताकि व्यवस्था की गंदगी साफ हो सके. इसी मकसद से हम यह मुद्दा पुन: उठा रहे हैं.

रांची: राज्य बनने के बाद इंदर सिंह नामधारी को सर्वसम्मति से विधानसभा अध्यक्ष चुना गया. 22 नवंबर 2000 को वह इस पद के लिए चुने गये. विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद इंदर सिंह नामधारी ने ओजपूर्ण भाषण दिया था. झारखंड को इंद्रप्रस्थ बनाने की बात कही थी. पर विधानसभा ही ‘इंदर प्रस्थ’ बन गयी. उनके कार्यकाल में विधानसभा में 274 नियुक्तियां हुईं. इन नियुक्तियों पर सवाल उठे.

कैसे हुआ खेल : इंदर सिंह नामधारी के स्पीकर बनने के बाद 2002 में झारखंड विधानसभा में नियुक्ति नियमावली बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई. नियमावली की समीक्षा के लिए तत्कालीन वित्त मंत्री के संयोजन में कमेटी बनायी गयी. खेल यहीं से शुरू हुआ. राज्यपाल ने विधानसभा में अनुसेवक के 75 पद स्वीकृत किये. वहीं, विधानसभा ने पहले के अनुसेवकों को प्रोन्नत कर जगह खाली कर ली. इसके बाद 150 अनुसेवकों के पद तय किये गये. बिना पद सृजित किये विधानसभा में नियुक्ति का यह पहला इतिहास था. एक दिन में डाक से मिल गया नियुक्ति पत्र :इन पदों पर पलामू के दर्जनों लोगों की नियुक्ति की गयी.

एक दिन में डाक से पलामू के सुदूर इलाकों में रह रहे चयनित उम्मीदवारों तक भी नियुक्ति संबंधी जानकारी पहुंच गयी. नियम शिथिल कर उम्र सीमा की बाध्यता खत्म कर दी गयी. सामान्य श्रेणी में 40 से 50 वर्ष के लोगों को भी नियुक्त किया गया. विधानसभा अध्यक्ष के गृह क्षेत्र से हुई ताबड़तोड़ नियुक्तियों पर सवाल उठने लगे. इन नियुक्ति/प्रोन्नति पर राज्यपाल ने भी सवाल उठाये. पर आज तक इन नियुक्तियों और प्रोन्नतियों पर से परदा नहीं उठ पाया. यह पहली गलती थी, इस पर जांच नहीं हुई, प्रकरण को छुपाया गया. यह प्रक्रिया बाद में उदाहरण बन गयी और इस तरह की अवैध नियुक्तियां उदाहरण बन गयी.

कुल नियुक्तियों में पलामू के 70% लोग

स्पीकर इंदर सिंह नामधारी के कार्यकाल में विधानसभा में हुई कुल नियुक्ति में पलामू के 70 फीसदी से अधिक लोगों को अलग-अलग पदों पर भरा गया. प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ. पारदर्शिता नहीं अपनायी गयी.

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