पटना: राज्य के मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस प्रथम वर्ष की खाली पड़ी 152 सीटों को 30 सितंबर तक भर दिया जायेगा. पटना हाइकोर्ट ने यह निर्देश गुरुवार को राज्य सरकार को दिया. खाली सीटों पर मेरिट लिस्ट से क्रमांक के आधार पर नामांकन लिया जायेगा. इनमें 89 सीटें सामान्य और बाकी आरक्षित कोटे (एससी व एसटी) की हैं.
न्यायाधीश वीएन सिन्हा और एके लाल के खंडपीठ ने राज्य सरकार को 30 सितंबर तक सभी खाली सीटों पर हर हाल में नामांकन लेने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि खाली सीटों पर मेधा सूची के क्रमांक आधार पर नामांकन लिया जा सकता है. खंडपीठ ने कहा कि सरकार को इस मामले में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) से टकराव का रास्ता छोड़ बीच का रास्ता निकालना चाहिए. सरकार किसी भी स्थिति में एक भी पद खाली नहीं जाने दे.
खंडपीठ के इस निर्देश के बाद सभी खाली सीटों पर मेधा सूची में नीचे रहे सामान्य कोटे के छात्रों के भी नामांकन का रास्ता साफ हो गया है. अपर प्रधान महाधिवक्ता ललित किशोर ने इसकी पुष्टि की है. सुनवाई के दौरान अपर प्रधान महाधिवक्ता ललित किशोर ने खंडपीठ का ध्यान एकलपीठ द्वारान्यूनतम कट ऑफ मार्क में कमी लाकर नामांकन लेने के निर्देश की की ओर दिलाया. इस पर खंडपीठ ने कहा कि आप लोग कियोस पैदा कर रहे हैं. राज्य में डॉक्टर के 10 हजार से अधिक पद खाली हैं. करीब दो हजार डाक्टरों से काम चलाया जा रहा है. 152 सीटें भर जाने से समुद्र में पानी भरने जैसी स्थिति होगी, लेकिन यह भी खाली रह जाने से स्थिति और भी गंभीर होगी. कोर्ट ने कहा कि बिहार की चिंता किसी को भी नहीं है. कोर्ट का तर्क था कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने जब एमबीबीएस में नामांकन के लिए न्यनूतम अंक चालीस प्रतिशत से कम करने से मना कर दिया है तो सरकार किस आधार पर ऐसा कर सकती है. न्यायाधीश ने कहा कि आप नामांकन लेंगे और एमसीआइ इसे रद कर देगी. इससे विवाद बढ़ेगा.
अपर प्रधान महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि एमसीआइ ने सामान्य कोटि के छात्रों के लिए 50 प्रतिशत, विकलांग छात्रों के लिए 42 और अनुसूुचित जाति व जन जाति के छात्रों के लिए न्यूनतम कट ऑफ मार्क 40 प्रतिशत निर्धारित किया है. हम खाली सीटें भरने के लिए न्यूनतम अंक में कटौती कर 32 प्रतिशत कर देते हैं. इस पर खंडपीठ ने कहा कि आप इसमें किस आधार पर बदलाव कर सकते हैं. आप ऐसा करेंगे और एमसीआइ आपको रोक देगा.
एमबीबीएस में नामांकन और डाक्टरों की योग्यता निर्धारित करने का अधिकार एमसीआइ को है. अपर प्रधान महाधिवक्ता ने कहा, एकलपीठ का निर्देश आया है कि न्यूनतम अंक में कटौती सरकार कर सकती है. खंडपीठ का जवाब था, यह हम नहीं जानते आप कैसे करेंगे, लेकिन किसी भी हाल में एक भी सीट खाली नहीं रहनी चाहिए. प्रधान अपर महाधिवक्ता ने कहा कि इस मामले को लोकहित याचिका नहीं माना जाना चाहिए. याचिका दायर करनेवाले न वकील हैं और न अभिभावक. खंडपीठ का तर्क था कि यह हर हाल में लोकहित याचिका है. गौरतलब है कि राज्य के मेडिकल कॉलेजों में इस साल एमबीबीएस की 152 सीटें खाली रह गयी हैं.