रांची: पढ़ाई के दबाव व प्रतियोगिता की होड़ में अब स्कूल के विद्यार्थी भी डिप्रेशन (तनाव) के शिकार होने लगे हैं. राजधानी में किये गये एक अध्ययन में करीब 11 फीसदी स्कूली छात्रों में डिप्रेशन के लक्षण पाये गये हैं.
रांची इंस्टीटय़ूट ऑफ न्यूरो साइकियाट्री एंड एलायड साइंस (रिनपास) ने राजधानी के 3000 स्कूली बच्चों का सर्वे किया, जिसमें पाया गया कि छात्राओं की तुलना में छात्र अधिक तनाव ग्रस्त हैं. सर्वे में 11.2 फीसदी छात्र डिप्रेशन के शिकार पाये गये, जबकि 11.1 फीसदी छात्राओं में यह लक्षण मिला था.
यह अध्ययन रिनपास के क्लिनिकल साइकोलॉजी विभाग की सह प्राध्यापक डॉ मशरुर जहां के निर्देशन में किया गया था. इनमें से करीब एक फीसदी छात्रों में ज्यादा तनाव (सिवियर डिप्रेशन) के लक्षण पाये गये. 6.3 फीसदी विद्यार्थियों में आंशिक तनाव के लक्षण मिले. 3.8 फीसदी में औसत तनाव के लक्षण पाये गये. इसमें से 10.7 फीसदी बच्चों को अकेलापन पसंद था. 6.6 बच्चे अपने को सामाजिक रूप से अलग रखना चाहते हैं. 26.5 फीसदी बच्चों में खुद को नुकसान पहुंचानेवाले लक्षण पाये गये.
क्या-क्या कारण हो सकते हैं डिप्रेशन के
बच्चों में डिप्रेशन के कई कारण हो सकते हैं. इसमें परिवार में किसी को पूर्व में डिप्रेशन की बीमारी होना भी शामिल है. परिवार में विवाद, कमजोर निजी संबंध, नकारात्मक सोच आदि के कारण भी तनाव हो सकते हैं. चिकित्सकों का मानना है कि अगर कम उम्र में डिप्रेशन के लक्षण डिटेक्ट हो जाये, तो इसका इलाज बेहतर हो सकता है.
कैसे ख्याल रखें डिप्रेस्ड बच्चों का
रिनपास के रिसर्च स्कॉलर बाबू पी के अनुसार जिन बच्चों में डिप्रेशन के लक्षण विकसित हो गये हैं. उनका ख्याल रखना जरूरी है. उनका बेहतर प्रबंधन की जरूरत होती है. ऐसे बच्चों का कई तरह से ख्याल रखा जा सकता है. इसमें व्यक्तिगत, परिवार और ग्रुप का महत्वपूर्ण योगदान होता है. इसके अतिरिक्त मेडिटेशन मैनेजमेंट, सोशल स्किल प्रशिक्षण, शैक्षणिक एसेसमेंट और योजना भी जरूरी है. जिन बच्चों में ज्यादा डिप्रेशन का लक्षण है, वैसे बच्चों के अभिभावकों को परिवार के सदस्य, स्कूल शिक्षक और चिकित्सक से संपर्क कर रास्ता निकालना चाहिए. ज्यादा तनाव वाले बच्चों में आत्म हत्या करने की प्रवृत्ति भी होती है. इस पर नजर रखी जानी चाहिए. ऐसे बच्चों को जरूरत पड़ने पर मानसिक आरोग्यशाला में भरती भी कराया जा सकता है.
डिप्रेशन मानसिक बीमारी का एक बड़ा कारण हो सकता है. शुरुआती दौर में इस पर ध्यान नहीं देने से आनेवाले दिनों में अधिक परेशानी हो सकती है. स्कूल प्रबंधन और अभिभावकों को ऐसे बच्चों को पहचान कर ध्यान देना चाहिए. उनके संपूर्ण विकास पर ध्यान देना चाहिए.
डॉ मशरुर जहां, रिनपास