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केंद्र सरकार ने झारखंड को पत्र भेज कर कहा, हाथ में 2500 करोड़ का काम नहीं मिलेगी कोई नयी योजना

रांची: झारखंड के पास वर्तमान में 2500 करोड़ रुपये से अधिक राशि की ग्रामीण सड़कों का काम है. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 11 वें और 12वें फेज का काम भी चल रहा है. दोनों फेज की योजनाओं को स्वीकृति दे दी गयी थी. इसके पहले की योजनाओं पर भी काम चल रहा है. […]

रांची: झारखंड के पास वर्तमान में 2500 करोड़ रुपये से अधिक राशि की ग्रामीण सड़कों का काम है. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 11 वें और 12वें फेज का काम भी चल रहा है.

दोनों फेज की योजनाओं को स्वीकृति दे दी गयी थी. इसके पहले की योजनाओं पर भी काम चल रहा है. 11वें फेज में 1060 करोड़ व 12वें फेज 1147 करोड़ की योजनाओं को स्वीकृति मिली है. यानी दोनों फेज मिला कर करीब 22 करोड़ रुपये की योजनाएं स्वीकृत हुई हैं. इनमें से बड़ी राशि की योजनाओं का टेंडर फाइनल नहीं हो सका है.

कई योजनाओं पर टेंडर फाइनल होने की स्थिति में है. हाल है कि झारखंड में काम करनेवाली एजेंसियों के पास अत्यधिक काम है. ऐसे में नयी योजनाओं की स्वीकृति नहीं दी जा रही है. यही वजह है कि 13 वें फेज की योजनाओं को स्वीकृति नहीं मिली है.

केंद्र ने राशि देने से किया है इनकार : केंद्र सरकार ने झारखंड को पीएमजीएसवाइ 13 वें फेज के लिए राशि देने से इनकार किया है. केंद्र सरकार ने इस संबंध में झारखंड को पत्र भेजा है. इसमें कहा गया है कि झारखंड पहले से स्वीकृत योजनाओं पर काम करे. कार्य के अत्याधिक बोझ को कम करे, इसके बाद ही केंद्र सरकार राशि देगी. यानी स्वीकृत योजनाओं पर काम हो जाये, तब आगे की योजनाएं मिलेगी.

सरकारी एजेंसी के भरोसे हो रहा है काम : झारखंड में सरकारी एजेंसी के भरोसे काम हो रहा है. बड़ी राशि इन केंद्रीय एजेंसी एनपीसीसी, एनबीसीसी, एचएससीएल, इरकॉन को दिये जा रहे हैं. कुल राशि का छोटा हिस्सा जेएसआरआरडीए ले रहा है और अपने स्तर से काम करा रहा है. इन एजेंसी के काम भी पड़े हुए हैं. एजेंसियों की भी कार्य प्रगति बेहतर नहीं है. खास कर उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में काम लटका हुआ है. डर से ठेकेदार काम नहीं कर रहे हैं.

जयराम रमेश का था खास ध्यान
पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश का झारखंड पर खास ध्यान था. उनकी नजर लगातार झारखंड में पीएमजीएसवाइ पर थी. योजना स्वीकृति से लेकर राशि आवंटन तक की वह खुद मॉनिटरिंग करते थे. औसतन एक माह में जरूरत आते थे और योजनाओं का हाल देख जाते थे. यही वजह है कि पिछले वर्षो में झारखंड को अत्यधिक योजनाएं मिली हैं.

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