बसंत हेतमसरिया
किसी समाचार पत्र को उसकी आयु की दृष्टि से देखा जाये, तो 30 वर्ष यदि ज्यादा नहीं हैं, तो कुछ कम भी नहीं हैं. अत: नियमित रूप से प्रकाशित होते हुए इस मुकाम तक पहुंचना अखबार की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है.आज जब प्रभात खबर को इस मुकाम पर पहुंचा हुआ पाता हूं, तो बड़ी प्रसन्नता होती है.
एक पुराने व नियमित पाठक के रूप में इस समाचार पत्र का शुरुआती दिनों का संघर्ष, अपना वजूद बनाये रखने की जद्दोजहद व एक विशिष्ट पहचान बनाने की निरंतर कोशिश तसवीर की तरह सामने आ जाती है. उस दौरान की एक महत्वपूर्ण बात, जो याद आती है कि तमाम कठिनाइयों का सामना करते रहने के बावजूद इस अखबार ने अपनी कमजोरियों-मजबूरियों को नकारा नहीं, उसे स्वीकारा और हरदम इनसे निबटने व उबरने की कोशिश में जुटा रहा. झारखंड अलग राज्य का आंदोलन हो या अलग राज्य बनने के बाद इसके विकास से जुड़े मुद्दे या फिर भ्रष्टाचार की चिंता, इस अखबार ने अपनी बेबाक पत्रकारिता द्वारा इन मुद्दों को ताकत दी. राज्य के स्तर पर हो या राष्ट्रीय स्तर पर इस अखबार ने जन आंदोलन, स्वस्थ राजनीति व प्रजातांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने के लिए सहज ही सहयोग का हाथ बढ़ाया. आज प्रभात खबर मुझ जैसे पाठक के लिए एक आदत ही नहीं, बल्कि जरूरत है. इसका कोई विकल्प नहीं है.
तीस वर्षो के सफर में इस अखबार ने स्वस्थ पत्रकारिता की जो मजबूत आधारशिला तैयार की है, उसके आधार पर एक लंबी पारी खेलने के लिए यह अखबार पूरी तरह से तैयार है. गलाकाट प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा व पेड न्यूज के इस दौर में मुझे विश्वास है कि पत्रकारिता के उच्चतम मानकों पर सदा खरा उतरने का प्रयास करते हुए प्रभात खबर प्रजातंत्र के मजबूत चौथे स्तंभ व झारखंड के चतुर्दिक विकास के लिए उत्प्रेरक के रूप में अपना योगदान करता रहेगा.
(लेखक रामगढ़ में रहते हैं और समाजसेवी हैं)