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बिना पढ़े रहना मुश्किल होता है

डॉ मुरली प्रसाद गुप्ता मैं कब से प्रभात खबर पढ़ रहा हूं, याद नहीं कर पाता. लेकिन वर्ष 1990 से नियमित रूप से अखबार न सिर्फ पढ़ने की, बल्कि उसमें छपनेवाले प्रमुख खबरों व लेखों का स्मरण आज भी तरोताजा है. जब मैंने आरंभिक दिनों में अखबार पढ़ना शुरू किया, तो उस समय नवभारत टाइम्स […]

डॉ मुरली प्रसाद गुप्ता

मैं कब से प्रभात खबर पढ़ रहा हूं, याद नहीं कर पाता. लेकिन वर्ष 1990 से नियमित रूप से अखबार न सिर्फ पढ़ने की, बल्कि उसमें छपनेवाले प्रमुख खबरों व लेखों का स्मरण आज भी तरोताजा है. जब मैंने आरंभिक दिनों में अखबार पढ़ना शुरू किया, तो उस समय नवभारत टाइम्स का पाठक था. लेकिन प्रभात खबर के आने के बाद उसके संपादकीय, संपादकीय पन्नों में छपनेवाले लेखों,राजनीतिक व आर्थिक विश्लेषणों, खेल, व्यापार, मनोरंजन आदि की खबरों ने मुङो प्रभावित किया और मैं प्रभात खबर का नियमित पाठक हो गया. इस बीच नवभारत टाइम्स छपना बंद भी हो चुका था.

प्रभात खबर में झारखंड आंदोलन और चारा घोटाला की निर्भीकता से नियमित रूप से प्रकाशित खबरों की वजह से अखबार के और करीब आ गया. हाल के दिनों में निर्मल बाबा की असलियत उजागर करके प्रभात खबर ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने के साथ ही पाठकों के प्रति बहुत बड़ी जिम्मेवारी का निर्वहन किया है. जब सभी चैनलों पर निर्मल बाबा की रिपोर्ट पर प्रभात खबर की चर्चा होती थी, तो महसूस हुआ कि इस अखबार की पत्रकारिता में कितना दम है.

प्रभात खबर में छपनेवाली ईशान करण की बेबाक टिप्पणी, प्रधान संपादक हरिवंश जी के समसामयिक लेख व आध्यात्मिक व्यक्तियों से मुलाकात की खबरें भी मेरे जैसे पाठक को काफी प्रभावित करती रही हैं. यद्यपि इधर इस प्रकार की खबरों को अखबार में नहीं देख कर निराशा भी महसूस कर रहा हूं.प्रभात खबर का नॉलेज पेज व सक्सेस सीढ़ी युवाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. यही कारण है कि मेरे घर में सभी बच्चे भी प्रभात खबर को पढ़े बिना नहीं रह पाते. अखबार में आधी आबादी के नाम से महिलाओं के लिए अलग पेज देना प्रशंसनीय पहल है. घर में महिलाएं अपना पेज देखने के लिए प्रभात खबर जरूर पढ़ती हैं. समय के साथ घर में दूसरा भी अखबार आने लगा है.

फिर भी, मेरी तथा मेरे परिवार के सदस्यों की पहली पसंद प्रभात खबर बना हुआ है. इसका सबसे बड़ा कारण इस अखबार के हर पóो की अपनी खूबी है. इसको पढ़े बिना मेरे जैसे कितने पाठक है, जिनकी सुबह नहीं होती है. यद्यपि 1990 के दशक में सुबह सात बजे के बाद ही अखबार देखने को मिल पाता था. इसके बावजूद अखबार के लिए बेसब्री से इंतजार रहता था. आज बदले समय में अखबार ने भी अपनी गति बदल ली है. अब जब सुबह आंख खुलती है, तो घर के अंदर प्रभात खबर पड़ा मिलता है. इसके कारण आंख खोलते ही आज की ताजा खबरें पढ़ने को मिल जाती है. इससे पूरे 24 घंटे के बीच की सभी सूचनाओं से अवगत हो जाता हूं.अखबार का दाम बीच में कम होकर फिर अचानक बढ़ गया है, इसके बावजूद अखबार पढ़े बिना रहना मुश्किल है. कीमत की परवाह किये बिना करीब 25 वर्षो से लगातार अखबार का नियमित पाठक रहा हूं. मैं समझता हूं कि जिस तरह प्रभात खबर समय के साथ अपने को ढालते हुए हर पाठक का पसंदीदा बना हुआ है, आगे भी बना रहेगा.मैं अखबार के दीर्घायु होने की कामना करता हूं.

(लेखक भारतीय रेडक्रॉस सोसाइटी की गढ़वा शाखा के चेयरमैन हैं.)

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