रांची: गुमला-लोहरदगा में माओवादी गांव-गांव में घूम कर आतंक कायम कर रहे हैं. ग्रामीणों की हत्या कर रहे हैं. बच्चों को जबरन संगठन में शामिल कर रहे हैं. स्कूलों में बच्चों की परेड करा रहे हैं. वहीं झारखंड पुलिस के जवान बैरक या पिकेट तक ही सीमित हैं. 16 जुलाई को खबरें प्रकाशित होने के बाद 17 जुलाई को पुलिस ने दोनों जिलों में माओवादियों के खिलाफ अभियान शुरू किया. अभियान चार दिन ही चला. पुलिस ने माओवादियों द्वारा बच्चे ले जाने की पुष्टि की. इसके बाद से माओवादियों के खिलाफ कोई अभियान नहीं चला.
पांच माह बाद शुरू किया अभियान : यह पहला मौका नहीं है, जब माओवादियों की मौजूदगी की खबर मिलने पर भी पुलिस की ओर से अभियान नहीं चलाया गया. इससे पहले 25 जनवरी 2014 को मीडिया में खबर आयी कि नक्सलियों का दस्ता कोडरमा के सतगावां इलाके में है. सूचना के बाद पुलिस ने झारखंड जगुआर के जवानों को भेजा. 27 जनवरी को फोर्स को गिरिडीह भेज दिया गया. पर उस इलाके में अभियान तब शुरू हुआ, जब नक्सलियों ने 11 जून को डोमचांच के ढाब गांव से छह ग्रामीणों को अगवा कर लिया. हालांकि पुलिस के अभियान के कारण ग्रामीणों मुक्त नहीं हुए. नक्सलियों ने अपनी मरजी से उन्हें मुक्त किया.
लोहरदगा व गुमला में स्थिति खराब
(नक्सलियों की ओर से हाल में की गयी घटनाएं)
किस्को के पाखर में मशीन में आग लगा दी
किस्को के पाखर
रिचूगुटा रोड पर ट्रक को फूंक दिया, चालक की पिटाई की
पेशरार में जावाखाड़ पुल उड़ाया, मुंशी को पीटा
सेन्हा के सरेंगदाग माइंस के दो ट्रकों में आग लगा दी
घाघरा पंचायत के मुखिया जोतपाल सिंह की जन अदालत में पिटाई
बिशुनपुर की सेरेंगदाग माइंस में नकुल के दस्ते ने चार ट्रक को फूंक दिया जालिम में बॉक्साइट उत्खनन बंद कराया
गुमला के घाघरा में दो की हत्या. इन सूचनाओं पर भी नहीं चला अभियान
बोकारो-रामगढ़ की सीमा पर जंगल में माओवादियों की मिलिट्री कमीशन के अनल मांझी, प्रसादजी समेत कई बड़े नक्सली जमे हुए हैं. वे बड़ी घटना को अंजाम देने की योजना में है. पुलिस को इसकी सूचना है.
खुफिया एजेंसियां लगातार सूचना दे रही हैं कि लातेहार – गढ़वा सीमा पर स्थित बूढ़ा पहाड़ पर नक्सलियों का दस्ता है. पर पुलिस की ओर से अभियान शुरू नहीं किया गया.
लोकसभा चुनाव के दौरान शिकारीपाड़ा में नक्सली गतिविधियों की सूचना पहले से थी. पर पुलिस ने अभियान नहीं चलाया. 24 अप्रैल को नक्सलियों ने मतदानकर्मियों व जवानों की बस को उड़ा दिया.
सीएम के आदेश पर भी नहीं होता काम
रांची. पुलिस विभाग मुख्यमंत्री के आदेश को भी नहीं मानता. मुख्यमंत्री ने कई मामलों में पुलिस को आदेश दिया था, काम की समय सीमा भी तय की थी. पर कई काम पूरे ही नहीं हुए. मुख्यमंत्री के आदेश पर बैठकें हुईं, प्रस्ताव बना, पर उसे मंजूरी नहीं मिली. पिछले साल 10 सितंबर को मुख्यमंत्री ने पुलिस विभाग की समीक्षा की थी. बैठक में स्टेट इंडस्ट्रीयल सिक्यूरिटी फोर्स (एसआइएसएफ) का मामला सामने आया था. पता चला कि एसआइएसएफ की एक बटालियन के सभी जवान साल भर पहले ट्रेनिंग पूरी कर चुके हैं. लेकिन उन्हें ड्यूटी नहीं दी जाती. उन्हें बैठा कर वेतन दिया जा रहा है, क्योंकि अभी तक प्रतिनियुक्ति नियमावली नहीं बनी है.
मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को एक माह के अंदर नियम बना कर जवानों को ड्यूटी पर तैनात करने का आदेश दिया था. पर नियमावली आज तक नहीं बनी. इस वर्ष 28 फरवरी को बैठक में मुख्यमंत्री ने नक्सलियों की सरेंडर पॉलिसी को और आकर्षक बनाने का आदेश दिया था. स्पेशल ब्रांच ने प्रस्ताव तैयार कर भेजा, पर इसकी अब तक मंजूरी नहीं मिल पायी है. पटना में सीरियल ब्लास्ट के बाद झारखंड से इंडियन मुजाहिदीन के कई आतंकी पकड़े गये. इसके बाद मुख्यमंत्री ने एंटी टेररिस्ट स्क्वायड (एटीएस) का गठन जल्द करने का निर्देश दिया. सीआइडी ने इसका प्रस्ताव भेजा, पर उसे मंजूरी नहीं मिली.
तारीख आदेश
जून 2014 आइपीएस अफसर ने कितनी छुट्टी ली, बतायें
स्थिति : कई अफसरों ने अब तक नहीं दी जानकारी
28 फरवरी 2014 नयी सरेंडर पॉलिसी बनाये
स्थिति : स्पेशल ब्रांच ने प्रस्ताव भेजा, अब तक नहीं बनी
10 सितंबर 2013 एसआइएसएफ की प्रतिनियुक्ति नियमावली बनायें
स्थिति : प्रस्ताव तैयार, पर अब तक नहीं बनी
31 दिसंबर 2013 मंत्रियों की सुरक्षा में लगे जवानों की संख्या कम करें
स्थिति : स्पेशल ब्रांच ने समीक्षा की, पर किसी की सुरक्षा में कमी नहीं आयी
2013 आतंकियों से निबटने के लिए एंटी टेररिस्ट स्क्वायड बनायें
स्थिति : सिर्फ प्रस्ताव बना, मंजूरी नहीं
सबसे अधिक नक्सली घटनाएं झारखंड में
रांची: वर्ष 2014 (31 मई तक) में देश भर में सबसे अधिक नक्सली घटनाएं (160) झारखंड में हुई हैं. देश भर में कुल 509 घटनाएं हुई थी. नक्सली घटनाओं में कमी जरूर आयी है, लेकिन अब भी कुछ जिलों की हालत चिंताजनक है. पूरा राज्य नक्सल प्रभावित है. नौ जिलों के शहरी व ग्रामीण इलाकों में नक्सलियों की हुकूमत चलती है. 11 जिलों के ग्रामीण इलाकों में नक्सलियों की मरजी के बिना कोई काम नहीं होता, जबकि चार जिलों में नक्सली गतिविधियां है, जो अंदर ही अंदर खुद को मजबूत बनाने में लगी हुई है. राज्य गठन के बाद अब तक 5100 से अधिक नक्सली घटनाएं हुईं. इसमें 1500 से अधिक लोग मारे गये. वहीं करीब 450 पुलिसकर्मी शहीद हुए. नक्सली आतंक की स्थिति भयावह है. राज्य के 430 थानों में से 67 थाना क्षेत्र नक्सलियों का लिबरेटेड जोन माना जाता है. इनमें से 49 थाना क्षेत्रों में दिन में भी जाने से डर लगता है. विभिन्न जिलों को जोड़नेवाली दर्जन भर से अधिक सड़कों पर नक्सलियों के डर से रात में एक भी वाहन नहीं चलते हैं.
लेवी वसूली नहीं रोक पायी सरकार
संगठन को चलाने के लिए भाकपा माओवादी के नक्सली लेवी की वसूली करते हैं. प्रभावित इलाकों में होनेवाले हर वैध-अवैध कारोबार या काम से नक्सलियों को लेवी के रूप में बंधी-बंधायी रकम मिलती है. लेवी पर रोक लगाने के लिए सरकार के आला अधिकारियों ने कई बार बयान जरूर दिये, लेकिन इसके लिए गंभीर कोशिश कभी नहीं हुई. लेवी की राशि से ही नक्सली हथियार व गोला-बारूद खरीदते हैं और पुलिस पर हमला करते हैं. आम लोगों की जान लेते हैं. झारखंड में कोयले के अवैध कारोबार, कोयले की ट्रांसपोर्टिग, बीड़ी पत्ता ठेकेदारों, क्रशर मालिकों और विकास योजनाओं के ठेकेदारों से नक्सली लेवी वसूलते हैं.
09 जिले पूरी तरह नक्सलवाद के गिरफ्त में : चतरा, पलामू, लातेहार, गुमला, सिमडेगा, गढ़वा, गिरिडीह, लोहरदगा व खूंटी.
11 जिले का ग्रामीण इलाका नक्सल प्रभावित :रांची, कोडरमा, हजारीबाग, रामगढ़, बोकारो, धनबाद, जमशेदपुर, चाईबासा, सरायकेला, दुमका व पाकुड़.
04 जिलों में चल रही गतिविधि : जामताड़ा, गोड्डा, साहेबगंज व देवघर.
रांची: पीएलएफआइ सुप्रीमो दिनेश गोप ने खूंटी के कर्रा में जेएलटी का गठन किया था. बाद में जेएलटी का नाम पीएलएफआइ हुआ. खूंटी से शुरू हुआ यह संगठन अब झारखंड के नौ जिलों में फैल चुका है.
पुलिस मुख्यालय के पास मौजूद सूचना के मुताबिक इस साल पीएलएफआइ के उग्रवादियों ने नौ जिलों में हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया है. कई जिलों में इस संगठन के उग्रवादियों ने नक्सली संगठन भाकपा माओवादी या अन्य उग्रवादी संगठनों से अधिक घटनाओं को अंजाम दिया है. ऐसे जिलों में रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा व चाईबासा शामिल हैं.
खूंटी में सुधरे हैं हालात
पीएलएफआइ की ओर से खूंटी के सभी स्कूलों को बंद करने के फरमान के बाद पुलिस ने 04 जुलाई 2014 से खूंटी जिला में ऑपरेशन कारो अभियान चलाया. इस अभियान में बड़ी संख्या में कोबरा, सीआरपीएफ और झारखंड जगुआर के जवान लगाये गये. खूंटी में काम कर चुके कनीय पुलिस पदाधिकारियों को खूंटी में प्रतिनियुक्त किया गया. इस कार्रवाई के बाद खूंटी के हालात सुधरे हैं. जुलाई माह में खूंटी में एक भी हत्या नहीं हुई. क्योंकि पुलिस का अभियान शुरू होने के बाद पीएलएफआइ के नक्सली जिला छोड़ कर भाग चुके हैं. वर्षो बाद ऐसा माह गुजरा, जिसमें नक्सली-उग्रवादी ने किसी की हत्या नहीं की. इसका असर भी दिखने लगा है. ग्रामीणों के मन से डर धीरे-धीरे कम होने लगा है. पुलिस को भी नक्सलियों-उग्रवादियों के खिलाफ सफलता मिलने लगी है.
वारदात. अपराध नियंत्रण में पुलिस विफल, अपराधी-नक्सली हुए बेखौफ
वर्ष 2013 के मुकाबले वर्ष 2014 में राज्य में हर तरह के अपराध बढ़े हैं, जबकि अपराधियों के खिलाफ पुलिस को मिलनेवाली सफलता में कमी दर्ज की गयी है. एक जनवरी से 30 जून 2014 के बीच हुई हत्या, लूट, अपहरण और डकैती जैसे अपराध वर्ष 2013 की इसी अवधि में हुए अपराध से ज्यादा हैं. दूसरी तरफ इसी अवधि में अपराधियों के खिलाफ पुलिस की ओर से की गयी कार्रवाई की उपलब्धि में भारी कमी दर्ज की गयी है. बात चाहे गिरफ्तारी की हो या हथियार की बरामदगी की, हर स्तर पर कमी दर्ज की गयी है. साफ है अपराधी ज्यादा सक्रिय हुए हैं, जबकि पुलिस उतने ही सुस्त. पुलिस के एक सीनियर अफसर कहते हैं : वर्ष 2014 में राज्य पुलिस उस तरह काम नहीं कर रही है, जिस तरह पिछले साल काम कर रही थी. अधिकारी को आशंका है कि पुलिस की प्राथमिकता बदल गयी है. अपराध नियंत्रण के बजाय पुलिस का ध्यान दूसरी तरफ ज्यादा है.
14 साल में हुई 18,752 लोगों की हत्या
रांची. राज्य गठन के बाद 30 जून 2014 तक झारखंड में 18752 लोगों की हत्या हो चुकी है. 9588 महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटना घटी. वहीं लूट व डकैती के क्रमश: 8149 व 5054 वारदात हुए. अपराध कम नहीं हो रहे हैं. अपराधियों में डर खत्म हो गया है, क्योंकि उन्हें सजा मिलती ही नहीं है. हमारी पुलिस सजा दिलाने में सक्षम नहीं है. अनुसंधान का स्तर भी निम्न है. जितने भी अपराध होते हैं, उन सभी में अपराधियों के खिलाफ चाजर्शीट तक दाखिल नहीं की जाती है. नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड पुलिस ने सिर्फ 68.6 प्रतिशत मामलों में ही चाजर्शीट दाखिल की. सिर्फ 25.1 मामलों में ही अदालत में अभियुक्तों को सजा मिल पायी. जिन मामलों में अपराधियों को सजा नहीं मिलती, उन मामलों को पुलिस पूरी तरह भूल जाती है. यही कारण है कि अपराधियों में डर खत्म होता जा रहा है.
रात में इन प्रमुख सड़कों पर नहीं चलते वाहन
रांची-खूंटी-चाईबासा रोड
रांची-खूंटी-सिमडेगा रोड
रांची-गुमला रोड
रांची-कुड़-लोहरदगा रोड
कुड़-लातेहार-पलामू रोड
हजारीबाग-टकमसांडी-चतरा रोड
हजारीबाग-बड़कागांव-चतरा रोड
खलारी-टंडवा-चतरा रोड
गिरिडीह-बगोदर रोड
गिरिडीह-डुमरी-फुसरो रोड