रांची: प्रीति के जिंदा होने के बाद भी उसकी हत्या और गैंग रेप के आरोप में अमरजीत और अजीत करीब पांच माह से जेल में बंद हैं. 14 जून को प्रीति के सामने आने के बाद भी पुलिस और सीआइडी की गलती के कारण दोनों जेल से मुक्त नहीं हुए हैं.
पुलिस दोनों के निदरेष होने से संबंधित रिपोर्ट अदालत में सही तरीके से दाखिल नहीं की. वहीं, सीआइडी ने मामले की जांच का जिम्मा संभालने के 20 दिन बाद भी सत्र न्यायालय को इस बात की जानकारी नहीं दी कि प्रीति जिंदा है. दोनों निर्दोष युवकों को रिहा करने की कानूनी प्रक्रिया सीआइडी की रिपोर्ट पर ही टिकी हुई है.
पुलिस ने आवश्यक प्रक्रिया पूरी नहीं की : पुलिस रिकॉर्ड में जिस प्रीति को मृत घोषित किया गया था, वह 14 जून को सामने आयी. उसने 18 जून को अपने जिंदा होने और अमरजीत व अजीत को निदरेष होने की बात अदालत में कही थी. इसके बाद जांच कर रहे पुलिस अधिकारी ने 20 जून को अदालत में अंतिम प्रतिवेदन समर्पित किया. इसमें पुलिस ने भूल स्वीकार की. कहा कि बुंडू में मिले शव से प्रीति का कोई संबंध नहीं. पुलिस अधिकारी विनोद कुमार ने अपने अंतिम प्रतिवेदन के साथ ही दोनों युवकों को निदरेष बताते हुए रिहा करने के लिए आवेदन भी दिया. पर, इसके लिए आवश्यक प्रक्रिया पूरी नहीं की गयी. अंतिम रिपोर्ट मिलने के बाद अदालत ने अपनी कार्यवाही में लिखा है कि पुलिस के अनुसंधानकर्ता ने रिपोर्ट सही तरीके से दाखिल नहीं की. इसे न तो सरकारी वकील ने अग्रसारित किया है और न ही इस पर अदालत में कुछ कहा है. इस टिप्पणी के साथ निचली अदालत ने मामले को सभी दस्तावेज सहित सत्र न्यायालय में भेज दिया, क्योंकि पुलिस ने आरोप पत्र में अमरजीत और अजीत पर सामूहिक दुष्कर्म और हत्या का आरोप लगाया था.
सीआइडी को तीन बिंदु पर करनी है जांच : पुलिस की अंतिम रिपोर्ट के दिन ही सीआइडी की ओर से आवेदन भी दाखिल किया गया. इसमें कहा गया कि बुंडू थाने में दर्ज प्राथमिकी (संख्या 20/2014) की जांच सीआइडी अधिकारी सीपी नारायण करेंगे. इस मामले में डीआइजी सीआइडी ने 19 जून को आदेश (मेमो नंबर-222) जारी किया है. सीआइडी के अनुसंधानकर्ता इस कांड के अभियुक्तों का बयान लेंगे. इसके बाद मामले से जुड़े दस्तावेज को सत्र न्यायालय में भेज दिया गया. सीआइडी को इस मामले में तीन बिंदुओं पर जांच करनी है. पहला यह की प्रीति जिंदा है या नहीं. दूसरा बुंडू में मिला महिला का शव किस का था. तीसरा प्रीति के जिंदा होने के बावजूद उसकी हत्या के आरोप में युवकों को फंसाने में पुलिस अधिकारियों की क्या भूमिका है. सीआइडी अगर सत्र न्यायालय को यह बता दे कि प्रीति जिंदा है, तो दोनों युवक बरी हो जायेंगे. पर, अपने 20 दिन के अनुसंधान में सीआइडी ने न्यायालय को प्रीति के जिंदा होने की जानकारी नहीं दी है. सीआइडी ने निचली अदालत में दर्ज कराये गये प्रीति के बयान की सत्यता की पुष्टि भी सत्र न्यायालय में नहीं की है. इस कारण निदरेष दोनों युवकों की रिहाई का मामला कानूनी पेच में फंस गया है.
मामले पर एक नजर
14 फरवरी : प्रीति घर से गायब. पिता ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करायी
15 फरवरी : बुंडू स्थित मांझी टोली से जली अवस्था में एक महिला का शव मिला था. चौकीदार सुखराम लोहरा के बयान पर बुंडू थाने में मामला दर्ज
16 फरवरी : पुलिस ने शव को प्रीति का बताया. पिता से पुष्टि करायी. हालांकि बाद में वह मुकर गये
17 फरवरी : प्रीति की दोस्त पिंकी के बुलावे पर अजीत पेंटालून मॉल पहुंचा, जहां से पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया. पर केस डायरी में गिरफ्तारी उसके घर से दिखाया
18 फरवरी : बुंडू पुलिस ने अजीत और अमरजीत को गिरफ्तार बताया.
26 फरवरी : डीएसपी रामसरेख राय ने सुपरविजन रिपोर्ट सौंपी. इसके बाद अप्रैल माह में कोर्ट में चाजर्शीट दाखिल की
15 मई : पुलिस के दबाव में अभिमन्यू ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया
14 जून : कुछ लोगों ने प्रीति को रिम्स परिसर से पकड़ कर पुलिस को सौंपा
16 जून : डीआइजी व ग्रामीण एसपी ने प्रीति का बयान लिया. प्रीति के पिता सुरेश सिंह बयान से मुकरे, कहा कि पुलिस ने जबरन दूसरे के शव को सौंप दिया
17 जून : डीजीपी ने जांच का आदेश दिया
‘‘अजीत, अमरजीत निदरेष हैं, यह बात रांची पुलिस कोर्ट में लिख कर दे दी है. सीआइडी ने अभी सिर्फ मामले में पहली केस डायरी लोक अभियोजक को सौंपी है. पूरे मामले को कोर्ट में अब सीनियर लोक अभियोजक देख रहे हैं.
एसएन प्रधान, एडीजी, सीआइडी
कानूनी उलझन
1 प्रीति के जिंदा होने और उसकी ओर से अदालत में बयान दर्ज कराने के बाद अमरजीत और अजीत के अधिवक्ता सुनील पांडेय ने दोनों को आरोप मुक्त करने से संबंधित याचिका (डिस्चार्ज पिटिशन) दाखिल की है. उनका कहना है कि जब प्रीति के साथ दुष्कर्म और हत्या नहीं हुए हैं, तो अदालत से दोनों युवकों की जमानत क्यों मांगे. दोनों को दोषमुक्त कर रिहा किया जाना चाहिए.
2 दूसरी तरफ सरकारी वकील एलिजाबेथ हेंब्रम डिस्चार्ज पिटिशन पर बहस के दौरान पुलिस के आरोप पत्र का हवाला दे रहे हैं. दोनों के दोष मुक्त करने का विरोध कर रहे हैं. वह अदालत में कहते हैं कि दोनों युवकों ने प्रीति की हत्या का जुर्म पुलिस के समक्ष स्वीकार किया है. वह बहस में पुलिस की ओर से दायर अंतिम प्रतिवेदन और प्रीति के निचली अदालत के बयान के बिंदु पर चुप्पी साध रहे हैं. वह डिस्चार्ज पिटिशन का विरोध करते हुए प्रीति की हत्या के आरोप में दोनों को आरोपित करने की मांग कर रहे हैं.
3 इस परिस्थिति में युवकों को दोष मुक्त करने का मामला सीआइडी की रिपोर्ट पर केंद्रित हो गया है. सरकार ने मामले में नये सिरे से जांच का आदेश सीआइडी को दिया है. अब सत्र न्यायालय में सीआइडी को यह बताना है कि प्रीति जिंदा है या नहीं. पर, सीआइडी इस मामले में चुप हो गयी है.
अभिमन्यु को जमानत
प्रीति मामले में अभिमन्यु कुमार का बुधवार को महिला फास्ट ट्रैक कोर्ट एजेसी रीता मिश्र की अदालत से जमानत मिल गयी. वह गुरुवार को जेल से निकल सकता है. अदालत ने मामले की सुनवाई के बाद मंगलवार को फैसला सुरक्षित रख लिया था. अभिमन्यु के पिता कृष्णा यादव ने बताया कि बेल बांड में कुछ गड़बड़ी हो जाने के कारण रिहाई नहीं हो पायी. कृष्णा यादव के मित्र संजय सिन्हा ने बताया कि अभिमन्यु ने 15 मई को अदालत में सरेंडर किया था. अभिमन्यु के पिता कृष्णा यादव ने बताया सारे साक्ष्य पुलिस को दिये गये थे, पर पुलिस ने इसे कचरे के डिब्बे में डाल दिया.