रांची: रांची के डॉ रत्नेश कुमार को अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित किया गया है. आइआइटी कानपुर से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की उपाधि लेनेवाले रत्नेश की यह अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है. हाल ही में डॉ रत्नेश को पीपुल इन कंट्रोल विषयक लेख (आर्टिकल) के लिए आइइइइ कंट्रोल सिस्टम मैगजीन की ओर से 2014 का बेस्ट स्टूडेंट पेपर फाइनलिस्ट अवार्ड दिया गया है. झारखंड स्टेट न्यूज.कॉम के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार मनोज प्रसाद ने डॉ रत्नेश से बात की. प्रस्तुत है बातचीत के अंश.
आप आइओवा स्टेट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के पद पर हैं और इलेक्ट्रिकल तथा कंप्यूटर इंजीनियरिंग की कक्षाएं लेते हैं. आपने कई नामी-गिरामी जर्नल में अपने लेख प्रकाशित किये हैं. भारत और विदेशों में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की क्या संभावनाएं हैं?
इंजीनियरिंग विज्ञान को कार्यशील रखने की विधा है. हमलोग औद्योगिक और तकनीकी रूप से इंजीनियरिंग में काफी आगे बढ़ गये हैं. इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियरिंग अपने आप में विशिष्ट स्थान पर हैं.
सभी तरह के सिगAल और ऊर्जा (फॉसिल फ्यूएल, हाइड्रोइलेक्ट्रिक, नाभीकीय, सौर, वायु और बायोफ्यूएल) और सूचनाएं (बायोलॉजिकल, केमिकल और फिजिकल) ये सभी इलेक्ट्रिकल और डिजिटल रूप में प्रोसेस किये जाते हैं. वर्तमान प्रैक्टिस इलेक्ट्रिकल और डिजिटल फार्म की सूचनाएं ऊर्जा और संचार का मध्य (इंटरमीडियरी) रूप हैं. ऐसे में इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियरिंग में संभावनाएं सार्वभौमिक स्तर पर काफी अधिक हैं.
आपको अमेरिका में विश्व स्तरीय शैक्षणिक संस्थान में काम करने का अनुभव है. क्या आप रांची विश्वविद्यालय और आइओवा विश्वविद्यालय के बीच अंतर बता सकते हैं?
मेरी प्रारंभिक शिक्षा रांची के संत जांस स्कूल में 1970-81 तक हुई. इसके बाद संत जेवियर्स कालेज से मैंने आगे की शिक्षा प्राप्त की. आइआइटी कानपुर से 1983 बैच में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में मैंने दाखिला लिया. साथ ही साथ मैंने यूनिवर्सिटी आफ आस्टीन से 1987-91 के बीच स्नातक स्तर की पढ़ाई पूरी की. मैंने रांची विश्वविद्यालय और आइआइटी कानपुर से विश्व स्तरीय शिक्षा प्राप्त की है. मैंने कई गोल्ड मेडल इंजीनियरिंग की शिक्षा के दौरान प्राप्त की. मुङो संस्थान में बेस्ट आल राउंड स्टूडेंट का पुरस्कार भी मिला. मैंने रांची के मोरहाबादी मैदान में कई खेल-कूद स्पर्धाओं में भी बेहतर प्रदर्शन किया. मुङो यूनिवर्सिटी आफ टेक्सास से फेलोशिप और डिसर्ससन अवार्ड के लिए नामित भी किया गया था. भारत में शिक्षा का स्तर और गुणवत्ता ऐतिहासिक रहा है. खास कर नालंदा विश्वविद्यालय में जो पुरातात्विक अवशेष हैं, उससे लगता है कि यहां की शैक्षणिक व्यवस्था काफी गौरवशाली रही है. यहां की भौतिक संपदा और उद्यम शुरू से ही प्रतिभावान के लिए अच्छी रही है. फैकल्टी स्तर पर भी प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को हमेशा सराहा गया है. अमेरिका में स्नातक स्तर की शिक्षा के लिए कई बेहतर संस्थान हैं, जो गिने-चुने हैं. यही भारत और अमेरिका के शैक्षणिक संस्थानों को अलग करते हैं.
झारखंड में दर्जनों ऐसे विश्वविद्यालय और उच्चतर शिक्षा देनेवाले संस्थान हैं. इन संस्थानों के प्रोफेसर किसी विषय के प्रारंभिक अध्याय को भी सही तरीके से पढ़ा नहीं सकते हैं, पर वे अपने आप को डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करनेवाले बताते हैं. वहीं कुछ प्रोफेसर ऐसे भी हैं, जो शोध और नामी-गिरामी जर्नल में लेख लिखने की बजाय अखबारों में अंशकालिक संवाददाता के रूप में कार्य करते हैं, प्रेस कांफ्रेंस में हिस्सा लेते हैं.
मैंने स्नातक करने के बाद ही भारत छोड़ दिया था. इसलिए मैं इस विषय में कुछ अधिक नहीं बता सकता. मेरे पिता और माता दोनों रांची विश्वविद्यालय में प्राध्यापक थे. पिता प्रो डॉ नगिना प्रसाद गुप्ता भौतिकी और मां प्रो डॉ प्रेमशिला गुप्ता वनस्पतिशास्त्र की प्राध्यापक थीं. उन्होंने कभी भी मीडिया में अपने लेख नहीं प्रकाशित कराये. मेरे अभिभावकों की भूमिका सिर्फ शिक्षा और शिक्षण कार्य तक ही सीमित थीं. मैं यह नहीं कहना चाहता कि जिनमें क्षमता है, वे कोई गलत कार्य करते हैं, पर उनमें जो प्रतिभा है, उसे संस्थान के आधार पर भौतिक संपदा के विकास के लिए करना चाहिए. हमें भौतिक संपदा के विकास और शोध कार्यक्रमों को और प्रोत्साहित करना चाहिए.
भारत में उच्चतर शिक्षा की गुणवत्ता के विकास को विश्व स्तरीय बनाने के लिए क्या करना चाहिए?
मैं इस विषय पर काफी विस्तार से बता चुका हैं. हां यह जरूरी है कि प्रतिभा को निखारने के लिए रीवार्ड स्ट्रर को सुधारने की जरूरत है. प्रतिभावान छात्रों के लिए विश्व स्तरीय शोध करने का एक्सेस प्रदान करना चाहिए. स्नातक स्तर के छात्रों का चयन करने पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए. छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें छात्रवृत्ति देने, उनमें नेतृत्वकर्ता के गुण उभारने, पब्लिकेशन और अन्य विधाओं में अनुशासित कार्यक्रम तय करना चाहिए. मेधावी बच्चों की शिक्षा में आरक्षण का स्तर न्यून होना चाहिए.
यह सभी जानते हैं कि मेधा के आधार पर हमारे बच्चे विश्व स्तर पर नाम रौशन कर रहे हैं. उन्हें सक्षम और विद्वान शिक्षकों से शिक्षा मिली है. पर झारखंड में कुछ तथाकथित प्रोफेसर और कुलपति जाति, डोमिसाइल और अन्य आधार पर नामित हो जाते हैं, आपकी प्रतिक्रिया?
मेधा में किसी तरह का व्यक्तिगत समावेश नहीं होना चाहिए. न ही उच्च स्तर पर इसके लिए किसी तरह का व्यवधान उत्पन्न होना चाहिए. प्रोफेसर और शैक्षणिक प्रशासकों का चयन उन्हीं व्यक्तियों के लिए होना चाहिए, जो वास्तविक में शिक्षाविद और सही अभिभावक हों. भारत के गौरवशाली इतिहास में भविष्य की प्रतिभा को हमेशा जगह मिली है. देश के सामाजिक विकास में शिक्षा का बुनियादी महत्व भी यहां रहा है.
भविष्य में एकैडेमिक्स में रोबोट का क्या योगदान रहेगा. क्या उच्चतर शिक्षा में रोबोट शिक्षकों का स्थान ले लेंगे. क्या यह जापान में भी संभव हो पायेगा?
मानव जीवन के समेकित विकास के लिए रोबोट का उपयोग एक महत्वपूर्ण बिंदू है. जब तक तकनीक का उपयोग होगा, रोबोटिक्स का भी इस्तेमाल विकास के लिए किया जायेगा. जहां तक आपका सवाल है, रोबोट कभी भी शिक्षकों का स्थान नहीं ले पायेंगे. हां, भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर रोबोट के साथ कनेक्टिविटी की जा सकती है, यह सोंचनीय बिंदू है. हां अब आनलाइन स्तर पर रिकार्ड किये गये लेर ज्यादा प्रचलित हो रहे हैं. ये मुख्यत: निर्देशों पर आधारित होते हैं.
आप झारखंड में प्रारंभिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शैक्षणिक सुधार के लिए क्या संदेश देना चाहते हैं?
मेरा जवाब बिल्कुल स्पष्ट है. विजन टॉप से शुरू होता है. जबकि विकास तो नींव मजबूत होने से होता है. हमें हर क्षेत्र में बेहतर करने की जरूरत है. चाहे वह शिक्षा हो, पोषण हो, स्वास्थ्य हो अथवा कल्याण हो. यहां पर काफी संभावनाएं और वायदे पूरा करने की जरूरत है. हमलोग प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में काफी बेहतर कर रहे हैं. हमें नीचले स्तर पर सभी नागरिकों तक गुणवत्ता युक्त शिक्षा का एक्सेस करना होगा. इसके लिए बुनियादी सुविधाएं ग्रामीण क्षेत्रों और शहरों में विकसित करनी होगी. ऊच्च शिक्षा का फेसलिफ्ट करने की आवश्यकता है. मेधावी छात्रों में से ही प्राध्यापकों की नियुक्ति होनी चाहिए. उनमें उत्तरदायित्व का बोध विकसित करने और पुरस्कार पद्धति की शुरुआत करनी होगी. इससे ही व्यापक बदलाव हो सकेगा.
आप कोई और प्रश्न का उत्तर देना चाहे, तो दे सकते हैं, जो जन हित से जुड़ा हो?
मेरा यह स्वपA है कि देश के प्रबुद्ध नागरिक अपने आप को फैसिलिटेटर की भूमिका में देखना शुरू करें. इससे जनहित से जुड़े मुद्दे अपने आप सुलझ जायेंगे. मैं अपने मित्र और प्रशासनिक अधिकारी संतोष सत्पथी को भी धन्यवाद देना चाहता हैं, जिनके लिए मैंने अपना लेख समर्पित किया है. सत्पथी जी से मेरी मुलाकात दो अगस्त 2013 को हुई थी. जब मैं मोरहाबादी में उनसे मिला था. इसके बाद मैं दूसरे दिन पुरी में भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने गया था. वहां मुङो बताया गया कि सत्पथी जी ओड़िशा के वास्तविक धरती पुत्र हैं.
डॉ रत्नेश का शैक्षणिक ब्योरा
डॉ रत्नेश आइआइटी कानपुर से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर रहे हैं. उन्होंने यूनिवर्सिटी आफ टेक्सास से एमएस और पीएचडी की डिग्री हासिल की है. 1991-2002 तक यूनिवर्सिटी आफ केनटुकी में फैकल्टी भी रहे. 2002 से वे आइओवा विश्वविद्यालय से जुड़े हैं. यूनिवर्सिटी आफ मेरीलैंड के इंस्टीटय़ूट आफ सिस्टम्स रीसर्च और यूनिवर्सिटी आफ पेनीसिलवानिया स्टेट के एप्लाइड रीसर्च लेबोरेटरी, नाशा एमेस रीसर्च सेंटर, द इदाहो नेशनल लेबोरेटरी और यूनाइटेड टेक्नोलाजीज रीसर्च सेंटर में डॉ रत्नेश विजिटिंग प्रोफेसर हैं. डॉ रत्नेश को माइक्रोइलेक्ट्रोनिक्स एंड कंप्यूटर डेवलपमेंट का फेलोशिप भी मिला है. डॉ रत्नेश ने कई अंतरराष्ट्रीय जर्नल में अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये हैं.