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लातेहार में नरेगा घोटाले का खुलासा

-ज्यां द्रेज और रीतिका खेड़ा- लातेहार में बिशुनबांध ग्राम पंचायत के सलगी गांव के निकट चमराहा नाम का एक टांड है. नरेगा दस्तावेजों में दर्ज है कि दो साल पहले इस टांड में, वहां के आदिवासी रहवासी प्रदीप कुमार सिंह के नाम पर एक कुआं बना था. पर इस कुएं का कोई नामोनिशान नहीं, और […]

-ज्यां द्रेज और रीतिका खेड़ा-

लातेहार में बिशुनबांध ग्राम पंचायत के सलगी गांव के निकट चमराहा नाम का एक टांड है. नरेगा दस्तावेजों में दर्ज है कि दो साल पहले इस टांड में, वहां के आदिवासी रहवासी प्रदीप कुमार सिंह के नाम पर एक कुआं बना था. पर इस कुएं का कोई नामोनिशान नहीं, और प्रदीप ने इस कुएं के बारे में सुना तक नहीं है. ना ही उसने उस पचास हज़ार रु पए के चेक को देखा है, जो नरेगा दस्तावेज़ों में उसे सामग्री के लिए दिया गया. उसे पता भी कैसे चलता? वास्तव में वो चेक संतोष राम के नाम से काटा गया है. संतोष उन विक्र ेताओं में से एक है, जिन्होंने इस फरजी कुएं से पैसा बनाया. इसमें संतोष राम का खुद अन्य [दबंग] बिचौलियों द्वारा शायद इस्तेमाल किया गया.

सलगी का यह फरज़ी कुआं, जिसके बारे में कुछ महीनों पहले पता चला, बिशुनबांध का इकलौता फर्जी काम नहीं है. बिशुनबांध में चल रहे बड़े नरेगा घोटाले का यह एक महज़ नमूना है. नरेगा दस्तावेज़ों में बडे पैमाने पर धोखाधड़ी की गयी, जिससे भ्रष्ट बिचौलिये व सरकारी कर्मचारी पिछले तीन साल के नौ करोड़ के नरेगा बजट में से मोटे हिस्से का गबन कर पाये. संतोष राम मात्र एक प्यादा है. उसके बैंक खाते में, पिछले दो वर्षों में (मुख्यत: नरेगा के) 33 लाख रुपये आये, जो आगे औरों को बाटें गए. पूरे बिशुनबांध ग्राम पंचायत में ऐसे नाम-मात्र के नरेगा कार्य मिलेंगे, जिन्हें सरकारी पैसा चुराने का ज़रिया बनाया गया. नवम्बर 2012 में मनिका नरेगा सहायता केंद्र की शिकायत के आलोक में प्रखंड के पूर्व प्रखंड विकास अधिकारी श्री प्रताप टोप्पो व अनुमंडल पदाधिकारी श्री अबू इमराम ने जांच की. उनके प्रतिवेदनों ने आठ लोगों को बंदरबांट के लिए दोषी ठहराया. ब्रिज किशोर यादव (बिशुनबांध का पंचायत सेवक), बिहारी राम (ग्राम रोज़गार सेवक), गुंजन कुमार (कनीय अभियंता), झमन सिंह (बिशुनबांध का मुखिया), रघुनन्दन यादव व उसका बेटा पंकज यादव (बिचौलिया), संतोष राम (विक्र ेता) और महेश सिंह (पंचायत समिति प्रमुख). इन आठों में से सात लोगों पर प्राथमिकी दर्ज की गई. इनमें से कुछ ने ज़मानत मिलने से पहले जेल के दर्शन भी किये. चार के खिलाफ चार्जशीट भी तैयार है. हैरत की बात यह है कि जो तीन सरकारी कर्मचारी हैं (पंचायत सेवक, ग्राम रोज़गार सेवक व कनीय अभियंता), वे गिरफ्तारी से बच गये और ना ही इनके खिलाफचार्जशीट बनी है. जांच में गिनेचुने कामों की छानबीन की गयी. बड़े घोटाले की आशंका रहने के कारण ग्रामीण विकास मंत्रलय ने बिशुनबांध में नरेगा कार्यों का विस्तृत सामाजिक अंकेक्षण करने का आदेश दिया. अंकेक्षण टीम का नेतृत्व श्री विल्फ्रेड लकड़ा, पूर्व आइएएस अधिकारी व डॉ रीतिका खेरा ने किया.

टीम ने कठिन परिस्तिथियों में काम किया. जैसे ही जांच शुरू हुई, स्थानीय ठेकेदारों और उनके गुंडों द्वारा जांच तो बाधित करने की अफवाह चलने लगी. अपने आपको माओवादी कहने वाले व्यक्ति का फोन भी आया. उन्होंने कहा कि बिशुनबांध के आदिवासी मुखिया झमन सिंह पर आंच न आये क्योंकि उसका ठेकेदारों ने इस्तेमाल किया है. बिशुनबांधवासी जांच से खुश होते हुए भी खुलकर बोलने से घबरा रहे थे. ठेकेदार और उनके परिवार वाले खुद परेशान थे. जब टीम ने अशोक यादव (जिसे फरजी काम के लिए पचपन हज़ार रु पये का चेक मिला था) की पत्नी से बात करनी चाही तो उन्होंने अपने पति को पहचानने से इंकार कर दिया. जैसे जांच आगे बढ़ी, यह स्पष्ट हो गया कि चमराहा टांड का फर्ज़ी कुआं गबन का इकलौता मामला नहीं है. बिशुनबांध के 100 से अधिक नरेगा कामों का यह एक छोटा सा हिस्सा है. अंकेक्षण टीम ने 40 ऐसे नरेगा कार्यों की जांच की, जो सरकारी दस्तावेजों के अनुसार ‘‘पूर्ण’’ हैं. अधिकतर कामों में स्पष्ट दिख रहा था कि जो काम हुआ वो खर्चे की तुलना में बहुत कम है. उदाहरण के लिए, नेवार, रेवतखुर्द, रेवतकलां, सलगी, व कुछ अन्य गांवों में मिट्टी मोरम की सड़कों पर लाखों रु पए खर्च हुए, पर वास्तव में नाम-मात्र का काम हुआ. उसी तरह, सरकारी दस्तावेजों में पूर्ण कुएं, जमीन पर अधूरे पाये गए (या फिर उनमें किया गया काम इन दस्तावेजों के अनुसार खर्च की गई राशि की अपेक्षा कम है). कम से कम तीन काम पूरी तरह फरजी थे.

(लेखक रांची विश्वविद्यालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली से संबंध रखते हैं)

चमराहाटांड में प्रदीप कुमार का कुआं, तेव्राही में लगन परहइया का कुआं और नेवार में तिन्खोरी से ताजिया तक की सड़क.

टीम ने पंचायत की फाइलों व इंटरनेट पर उपलब्ध नरेगा दस्तावेज़ों का भी विस्तृत विश्लेषण किया. भारतीय स्टेट बैंक (मनिका शाखा) से प्राप्त बैंक स्टेटमेंट को भी बारीकी से जांचा. इससे भी एक बड़े घोटाले के अनेक सबूत मिले, व कई चोरों को चिह्न्ति करने में मदद मिली. चमराहाटांड जैसे ‘‘एवज चेक’’ यानी सरकारी दस्तावेज़ में किसी का नाम और वास्तव में किसी और के नाम से काटना – के कई और मामले सामने आये. आमतौर पर, दस्तावेजों में किसी सीधे-सादे दलित या आदिवासी का नाम अंकित है, लेकिन वास्तव में चेक बिशुनबांध के लुटेरे, किसी भ्रष्ट बिचौलिये के खाते में गया है. फेंकू शाह के कुएं की फाइल में उसे रुपये 58,560 का चेक (संख्या 887621) दिया गया. असलियत? बैंक में उस चेक को खोजा तो पाया कि पंचायत सेवक ने उस चेक को ‘‘स्वयं’’ के नाम से जारी कर 12 मई 2012 को रोकड पैसा खुद निकाल लिया!

जांच दल ने कई ऐसे बदमाशों को चिन्हित किया जो किसी-न-किसी रूप में इस घोटाले में शामिल थे. कई दोषियों के नाम पहेले से अनुमंडल पदाधिकारी की रिपोर्ट में आ चुके थे. लेकिन कुछ गुनेहगारों पर पेहेले ध्यान नहीं गया, जैसे कि स्थानीय डाकपाल, जिसने तगडी कमिशन के बदले में नरेगा मज़दूरी गबन करने में सहायता की. वह डाल्टनगंज में रहता है और उसका डाकघर अधिकतर समय बंद रहता है. एक और खिलाड़ी है रासबिहारी यादव, रघुनन्दन यादव के भाई – हैं बिशुन्बांध के रेवतखुर्द गाँव में पारा-शिक्षक, रहते हैं रांची में. नरेगा के इंटरनेट रिकॉर्ड में इनके नाम से दो पूर्ण कुएँ है, वास्तव में एक ही बना है. बिशुनबान्ड घोटाले में अन्य संदिग्ध स्थानीय बिचौलिये में से जगदीश यादव, महेश यादव, कृष्णा यादव, महेश साऊ और श्रवन साऊ के नाम सामने आये.

जांच के चलते घोटाले का एक और भयावय: पहलू सामने आया: सीधे-सादे दलित व आदिवासियों का बेरहमी से शोषण. इनके नाम से पैसे निकाले गए चाहे वह फर्जी काम हों या फर्जी मज़दूरी या फर्जी सामग्री भुगतान. दूसरी ओर, ज्यादातर चोर शिक्तशाली समुदाय से हैं.

तेवरही तथाकथित आदिम जनजाति ह्लपरहैयाह्व समुदाय का गाँव है जहां उनके नाम पर बने कुओं सडकों और तालाबों से ठेकेदारों ने अपनी जेब तो भर ली, लेकिन परहैया लोगों को कोई फायदा न पहुँचा. लगन परहैया ने अपने घर के पास दस फुट गहरा गड्ढा दिखाया. उसके नाम से बननेवाले कुएँ पर उसकी पीठ पीछे दो लाख रु पये भी खर्च हो गए. जगदीश यादव इस फर्ज़ी काम के लिए अस्सी हज़ार रु पये (चेक संख्या 887621, तारीख मई 2012 ) आराम से डकार गये.

बिशुनबांध के आदिवासी मुखिया झमन सिंह भी इसी शोषण के शिकार हैं जो अनुमंडल पदाधिकारी की रिपोर्ट के बाद की गयी प्राथमिकी के बाद जेल भी जा चुके हैं. ग्राम पंचायत के खाते में सह-हस्ताक्षरकर्ता होने के नाते, उनसे ज़बरदस्ती चेक पर हस्ताक्षर कराये जाते बिना समङो की क्या हो रहा है. जब उन्होंने मना करने की कोशिश की तो उन्हें उस क्षेत्र के किसी माओवादी या तथाकथित माओवादी स्क्वाड ने पीट दिया.

संतोष राम खुद इन बेशरम बिचौलियों का प्यादा बन गया. गरीब दलित परिवार के इस नौजवान ने जांच टीम के सामने आसानी से कबूल किया कि चमरहाटांड में कोई कुआं नहीं बना. पुराण ट्रेक्टर खरीदने पर वह ललचा गया. उसे ठेकेदारों ने समझाया कि जो व्यक्ति नरेगा कार्यस्थल पर सामग्री पहुंचाने का काम करता है, उसी के नाम से पूरा भुगतान होता है – सामग्री का और ट्रांसपोर्ट का भी – और फिर उसे सामग्री का भुगतान नकद करना होगा. इस ही वजह से उसके खाते में तैंतीस लाख रु पये आये और गये. आज उसके खाते में सिर्फ रु 1371 हैं, बाकी सारा पैसा औरों को दे दिया गया. अब उसके खिलाफ चार्जशीट तैयार है और लातेहार जेल फिर से जाने के खयाल से वह खौफज़दा है. संतोष जैसे प्यादा शायद और भी हैं, जिन्हे असली चोरों ने बहुत होशियारी से सरकारी कागज़ों में आगे रखा गया, ताकि कभी जांच हो तो वह खुद न पकड़े जायें. लेकिन इस बार उनका परदाफाश हो गया है और जिला आयुक्त श्री मुकेश कुमार उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही करने के लिए तैयार हैं.

जांच टीम ने बिशुनबांध पंचायत में नरेगा कामों का सकारात्मक रूप भी देखा. जहां कुएं बने हैं, वहां किसान सब्ज़ी और अन्य खेती कर रहे हैं. वैसे ही नरेगा द्वारा बनायीं गयी मिट्टी मोरम सड़कें अन्य पथरीली कमर तोड़ने वालीं सड़कों की तुलना में बहुत अच्छी पायीं गयीं. इस क्षेत्र में जल संधारण, समतलीकरण, वृक्षारोपण जैसे अन्य उपयोगी बहुत काम किये जा सकते हैं. यदि भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है तो, नरेगा बिशुनबांध की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नयी जान फूंकी जा सकती है. साथ ही यहां के गरीब परिवारों को राहत पंहुचायी जा सकती है. मणिका प्रखंड के अन्य हिस्सों में भ्रष्टाचार को रोकने में काफी कामियाबी प्राप्त हुई है, तो बिशुनबांध में भी यह अवश्य हो सकता है.

(लेखक रांची विश्वविद्यालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली से संबंध रखते हैं)

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