झारखंड में सरकारी कामकाज किस तरह चल रहा है, उसके दो उदाहरण प्रभात खबर पाठकों के सामने रख रहा है. एक उदाहरण एसएआर कोर्ट का है, जहां आदिवासी जमीन वापसी अथवा मुआवजा को लेकर केस दायर किये जाते हैं और दूसरा मामला रांची नगर निगम का है. एसएआर कोर्ट में ऐसे लोग वर्षो से काम कर रहे हैं, जिनका सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है, न ही सरकार ने कभी उन्हें वेतन दिया है. इधर, नगर निगम के सीइओ कार्यालय में तनवीर और रिक्की किस हैसियत से काम कर रहे हैं, कोई बतानेवाला नहीं. पर निगम का कोई भी काम हो, बिना उन्हें चढ़ावे का हो पाना असंभव है.
बाहरी लिखते हैं ऑर्डर शीट
रांची: एसएआर कोर्ट में कुल छह लोग काम कर रहे हैं. पर तीन ही सरकारी हैं. मटन भगत, सुगन कुम्हार व शांति कच्छप तीन ऐसे व्यक्ति हैं, जो यहां के कर्मचारी हैं ही नहीं. पर कार्यालय के कार्यो में इनका सीधा हस्तक्षेप है. सरकारी कर्मचारियों की तरह फाइलें निबटाते हैं. वर्षो से ये काम कर रहे हैं. केस दर्ज होने से लेकर उसके निष्पादन तक में इनकी भूमिका होती है. यही नहीं, किसी मामले में अगर ऑर्डर शीट लिखना हो, तो इन बाहरी लोगों से ही लिखवाया जाता है. नियमत: ऑर्डर शीट पेशकार लिखते हैं. रिकॉर्ड का रख-रखाव करना भी पेशकार का ही काम है, पर इसका रख-रखाव का जिम्मा बाहरी लोगों पर है.
पर, इन लोगों का घर-परिवार कैसे चलता है, यह जांच का विषय है. प्रभात खबर ने छानबीन में पाया कि उपरोक्त तीनों का नाम जिला स्थापना व नजारत में भी अंकित नहीं है.
काम क्या है कोर्ट का
-यहां आदिवासी जमीन के मामले दायर किये जाते हैं.
-एसएआर कोर्ट सुनवाई करता है और आदेश पारित करता है.
-मामलों से संबंधित अभिलेखों का रख-रखाव किया जाता है.
कौन हैं तनवीर व रिक्की?
रांची. बाहरी कैसे सरकारी कामकाज निबटाते हैं, इसका दूसरा उदाहरण है रांची नगर निगम. यहां वैसे तो तीन सौ से अधिक कर्मचारी काम कर रहे हैं, पर दो युवकों तनवीर व रिक्की की चर्चा पूरे निगम में है. दिन भर ये निगम के सीइओ के कार्यालय में बैठे रहते हैं. सीइओ से मिलने आनेवाले लोगों की सबसे पहली मुलाकात इन दो युवकों से ही होती है. ये सीइओ से मिलने आनेवाले लोगों का मोबाइल नंबर लेते व देते हैं. यही नहीं, फाइलें भी निबटाते हैं. दिन भर के काम के बाद शाम को कौन सी फाइल को साहब के घर पहुंचानी है, यह काम भी दोनों के ही जिम्मे है. वैसे सरकार ने सीइओ को आप्त सचिव दिया हुआ है. पर आपका कोई काम निगम में फंसा है, तो इन युवकों को पकड़िये, काम हो जायेगा.
दोनों हेल्पर के तौर पर काम कर रहे हैं
‘‘ऐसी बात नहीं है. दोनों हेल्पर के तौर पर काम कर रहे हैं. गरीब बच्चे हैं. नगर निगम कोई मानदेय भी नहीं देता है उन्हें. कर्मचारियों की कमी है, इसी वजह से दोनों से काम लिया जाता है. किसी को आपत्ति है, तो उन्हें मना कर दिया जायेगा.
मनोज कुमार, सीइओ नगर निगम