जमशेदपुर : बाराद्वारी स्थित नवजीवन आश्रम की निवासी कुष्ठ रोगी सरस्वती ने घर-घर भीख मांग कर एक बेटे को डॉक्टर बनाया, तो दूसरे को क्रिकेटर. एक बेटा आज कोलकाता में सेवा दे रहा है. घाटशिला की रहनेवाली सरस्वती पांच साल की उम्र में कुष्ठ पीडि़त माता-पिता के साथ समाज से बहिष्कृत होकर शहर आयी. कम उम्र में ही लखन गोराई के साथ शादी हो गयी.
लखन कूड़े-कचरे का काम करता था. इस दौरान दो बच्चे हुए. कुष्ठ रोगी होने के कारण लोग कोई काम नहीं देते थे, जिसके कारण सरस्वती ने भीख मांगना शुरू किया. भीख मांगने से मिले पैसे से उसने झोपड़ीनुमा चाय की दुकान खोली और चाय, पकौड़ी, नमकीन बेचने लगी. दोनों बेटों को आश्रम के स्कूल में दाखिला करायी. संघर्ष और जद्दोजहद से वह अपने मकसद में सफल हुई.
बड़ा बेटा उमेश कोलकाता से डॉक्टरी (फिजियोथेरापिस्ट) की पढ़ाई कर मौजूदा समय में प्रैक्टिस कर रहा है. वहीं छोटा बेटा महेश पढ़ाई के साथ बेहतरीन खिलाड़ी (क्रिकेट) है. उसने हैदराबाद में खेले गये प्रथम बी हनुमंत ऑल इंडिया अंडर 19 नेशनल ट्वेंटी 20 फेडरेशन कप लीग टूर्नामेंट में अपनी टीम को चौथा स्थान दिलाया है. साथ ही वर्ष 2009 में वुड्स स्पोर्ट्स प्रमोशंस की ओर से श्रीलंका में अंडर 19 टीम में खेल चुका है. उसका चयन इंडियन क्रिकेट लीग (आइसीएल) में हुआ था. पैसों की आवश्यकता और मां के कष्ट को दखते हुए महेश ने क्रिकेट का मैदान छोड़ दिया और कबाड़ बेचने का कारोबार कर रहा है.
* तमन्ना अधूरी रह गयी : सरस्वती
प्रभात खबर से बातचीत में सरस्वती ने अपने बचपन की जिंदगी से लेकर संघर्ष की पूरी कहानी को बयां किया. सरस्वती की इस बात की टीस है कि उसका छोटा बेटा बड़ा क्रिकेटर नहीं बन सका. यह कहते हुए सरस्वती की आंखें नम हो गयी. सरस्वती ने कहा बेटे में अच्छे खिलाड़ी बनने का हुनर है, पर गरीबी और लाचारी पैरों की बेडि़यां बन गयी है. उसके हाथों में बल्ला के जगह पर कचड़े की बोरी देख कर मेरा मन रो पड़ता है.
* नवजीवन आश्रम, बाराद्वारी की कुष्ठ रोगी सरस्वती ने नहीं मानी हार
* कुष्ठ रोगी होने के कारण कोई नहीं देता था काम
* समाज से बहिष्कार कर दिया था लोगों ने
* चाय की दुकान चला कर बेटों के आश्रम के स्कूल में पढ़ाया
* बड़ा बेटा उमेश कोलकाता में फिजियोथेरापिस्ट है
* छोटा बेटा महेश क्रिकेट खिलाड़ी है, आइपीएल के लिए भी हुआ था चयन