मिथिलेश झा
देश में मतदान को अनिवार्य बनाने और मतदान नहीं करनेवालों पर जुर्माना लगाने की बहस अभी ठीक से शुरू भी नहीं हुई है. विशेषज्ञ कह रहे हैं कि भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में यह मुमकिन नहीं है. व्यावहारिक नहीं है. लेकिन, गुजरात के राजकोट में एक गांव है, जिसने विशेषज्ञों को गलत साबित कर दिया है. इस गांव में सभी वोटरों के लिए मतदान करना अनिवार्य है. वर्ष 2009 के आम चुनाव में इस गांव में करीब 98 फीसदी मतदान हुआ था. इस बार 100 फीसदी मतदान सुनिश्चित करने की योजना है.
राजकोट से 30 किलोमीटर दूर स्थित राज समाधियाला गांव, जहां एक हजार से भी कम वोटर हैं, में मतदान अनिवार्य है. यह कोई सरकारी या लिखित कानून नहीं है. 80 के दशक में तत्कालीन सरपंच ने यह अनोखी व्यवस्था बनायी थी. सर्वसम्मति से. किसी ने इसका विरोध नहीं किया. व्यवस्था के तहत मतदान से दूर रहनेवाले को इसकी मुफीद वजह बतानी होती है. ऐसा नहीं करने पर 500 रुपये तक जुर्माना भरना पड़ता है. 15 सदस्यीय ग्राम समिति को ऐसे व्यक्ति पर आर्थिक जुर्माना लगाने के साथ-साथ सामाजिक रूप से दंडित करने का भी अधिकार है. आमतौर पर दंडस्वरूप गांव की गलियों की सफाई करवाया जाती है.
दरअसल, 1980 के शुरुआत में इस गांव में गंभीर जल संकट था. भू-जल स्तर 250 मीटर तक गिर गया. अन्य गांव के लोगों ने इस गांव में अपनी बेटियों का ब्याह करने से मना कर दिया. सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाये. ग्रामीणों ने हिम्मत नहीं हारी. ग्राम विकास समिति बनायी. 1,090 हेक्टेयर क्षेत्र में अपने दम पर 45 चेक डैम बना डाले. आज गुजरात में यह एक मॉडल गांव है. लोग खुशहाल हैं. साल में तीन नकदी फसलें उगाते हैं. गांव को समृद्ध बनाने के बाद ग्रामीणों के लिए मतदान को अनिवार्य बनाया गया. यह व्यवस्था शुरू करनेवाले पूर्व सरपंच हरदेवसिंह जडेजा की इच्छा है कि इस बार 100 फीसदी मतदान हो, ताकि उनका गांव देश में आदर्श स्थापित कर सके. राजनेताओं से दूरी बनाये रखनेवाले इस गांव के लोग मतदान के प्रति काफी जागरूक हैं. मतदान में कोई व्यवधान न हो, इसलिए वोट के दिन गांव में शादी-ब्याह व अन्य आयोजन नहीं रखे जाते.
गांव की वर्तमान सरपंच सारदाबेन मुचादिया बोगस वोटिंग रोकने के लिए पूरी तरह तत्पर हैं. पंचायत के सर्वे में कुल 950 में 40 वोटरों की मौत हो चुकी है. 60 युवा राजकोट चले गये हैं. सो सरपंच ने गुजरात के मुख्य चुनाव अधिकारी को चिट्ठी लिखी कि जो लोग गांव में नहीं हैं, उनका नाम मतदाता सूची से हटा दें. उनके आग्रह के बावजूद मतदाता सूची में उन लोगों के नाम मौजूद हैं, लेकिन पंचायत समिति ने तय किया है कि वह 30 अप्रैल को वोटिंग पर पूरी नजर रखेगी और बोगस वोटिंग नहीं होने देगी.
पार्टियों को प्रचार की अनुमति नहीं
राज समाधियाला गांव में कोई भी राजनीतिक दल चुनाव प्रचार के लिए नहीं आता. पंचायत ने इस पर रोक लगा रखी है. पार्टियों के पोस्टर-बैनर लगाने पर भी प्रतिबंध है. ग्रामीणों का मानना है कि राजनीतिक दलों के लोग प्रचार करने आयेंगे, तो गांववालों को जाति-धर्म के नाम पर बांट देंगे. भारत सरकार से ‘तीर्थ ग्राम’ पुरस्कार पा चुके इस गांव की विशेषता यह है कि तीन दशक से अपराध की कोई वारदात यहां नहीं हुई. पांच दशक से सरपंच के चुनाव नहीं हुए. यहां सर्वसम्मति से सरपंच की नियुक्ति होती है. हाल में एक दलित महिला सारदाबेन को सरपंच नियुक्त किया गया. विधानसभा या लोकसभा के चुनावों से एक दिन पहले ग्राम समिति की बैठक होती है. ग्रामीणों को यह नहीं कहा जाता कि वे किसके पक्ष में वोट करें. सिर्फ इतना कहा जाता है कि प्रत्याशी के गुण-दोष देखने के बाद वोट करें.