आदिम जनजातियों के संरक्षण की सरकारी योजनाएं बेकार
कोडरमा के मरकच्चो में महज लू लगने के बाद इलाज के अभाव में साढ़े चार माह की बिरहोर बच्ची की मौत हो गयी, जबकि स्वास्थ्य केंद्र आधा किमी भी दूर नहीं. वहीं चैनपुर प्रखंड के गांवों में आदिम जनजाति समुदाय के सदस्यों की असमय मौत का सिलसिला सा चल पड़ा है. एक माह में पांच लोग काल के गाल में समा गये हैं. मौत की ठोस वजह अब तक सामने नहीं आयी है. इस जाति के संरक्षण व संवर्धन के लिए कई योजनाएं चल रही हैं, पर चैनपुर प्रखंड की हकीकत बड़ी तल्ख है.
इलाज के अभाव में चली गयी जान
मरकच्चो : प्रखंड के देवीपुर में अस्थायी तौर पर रह रहे संजय बिरहोर की साढ़े चार माह की बच्ची की मौत इलाज के अभाव में हो गयी. उसे लू लगा था. संजय बिरहोर की झोपड़ी से मात्र 400 मीटर की दूरी पर अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है. बावजूद बच्ची का इलाज नहीं कराया गया. इसकी जानकारी मिलते ही बीडीओ अरुण कुमार मुंडा ने देवीपुर के पंचायत सेवक कन्हैया यादव को पीड़ित बिरहोर परिवार के पास भेजा. पंचायत सेवक ने पीड़ित परिवार को 75 किलो चावल, 500 नकद के अलावा 500 रुपये की अन्य खाद्य सामग्री राहत के रूप में दी.
उल्लेखनीय है कि उक्त बिरहोर परिवार कुछ सप्ताह पहले ही देवीपुर में रह रहा था. इसके पूर्व उक्त परिवार मुर्कमनाय पंचायत स्थित बरियारडीह बिरहोर कॉलोनी में रह रहा था. जहां पीड़ित परिवार के नाम से बीपीएल का कार्ड भी है. इन्हें सरकारी योजना के तहत आवास भी उपलब्ध कराया गया है. बच्ची की मौत पर पिता संजय बिरहोर ने कहा कि इलाज के लिए उसके पास पैसे नहीं थे. न सरकारी स्वास्थ्य केंद्र मुफ्त में इलाज की सुविधा की जानकारी ही उसे थी.
पीड़ित परिवार की ओर से बच्ची के बीमार होने की जानकारी नहीं दी गयी थी.सूचना मिलते ही मदद दी गयी है.
अरुण कुमार मुंडा, बीडीओ
फिर एक व्यक्ति ने मूंद लीं आंखें
चैनपुर (पलामू) : चैनपुर के गोरे बलहिया गांव में रविवार को आदिम जनजाति समुदाय के एक युवक सुनील कोरबा की मौत हो गयी. उसकी उम्र 18 साल थी. वह मजदूरी करने बिहार गया था. इसी दौरान वह बीमार हो गया. बीमार होकर वह घर लौटा था. बीमारी के कारण रविवार को उसकी मौत हो गयी. एक माह के दौरान इस गांव में आदिम जनजाति परिवार के तीन लोगों की मौत हो गयी है. इसके पूर्व इस गांव में 11 अप्रैल को अज्ञात बीमारी से पांच वर्षीय पूनम कुमारी और उसके दादा गुडल कोरबा की मौत एक ही दिन हो गयी थी.
इसके बाद इस गांव में प्रशासन द्वारा स्वास्थ्य शिविर लगाया गया था. इलाज की मुकम्मल व्यवस्था नहीं होने के कारण आदिम जनजाति के लोग असमय काल के गाल में समा रहे हैं.
चोरहट में भी हो चुकी है मौत : चैनपुर के चोरहट गांव में 23 अप्रैल को भी रामू परहिया की मौत हो गयी थी. वह महुआ चुनने गया था. इसी दौरान उसकी मौत हुई थी. जबकि दो सप्ताह पहले उसकी पत्नी की अज्ञात बीमारी से मौत हो गयी थी. वह रात में सोयी थी. सुबह आंख ही नहीं खुली.