लंबे अरसे बाद प्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व बदला. प्रदीप बलमुचु की जगह सुखदेव भगत को जिम्मेवारी मिली. पद संभालने के चंद महीनों बाद प्रदेश अध्यक्ष श्री भगत के समक्ष लोकसभा चुनाव की चुनौतियां हैं. कांग्रेस के नौ प्रत्याशी चुनावी समर में उतारे हैं. प्रदेश अध्यक्ष कहते हैं : जिम्मेवारी के साथ चुनौतियां ना मिले, तो फिर आपकी पहचान भी नहीं बनती है. प्रदेश अध्यक्ष लोकसभा चुनाव में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन की संभावना देखते हैं. प्रभात खबर ब्यूरो प्रमुख आनंद मोहन ने वर्तमान राजनीतिक हालात पर श्री भगत से लंबी बातचीत की. पेश है बातचीत के अंश-
लोकसभा चुनाव में पार्टी की क्या संभावना है
बहुत अच्छी संभावना है. हमारा प्रदर्शन बेहतर होगा. मुङो उम्मीद है कि हम पहले से ज्यादा बेहतर करेंगे. आला कमान ने सोच-समझ कर प्रत्याशी दिया है. यूपीए का मजबूत गंठबंधन काम कर रहा है. सभी घटक दल संगठित हो कर काम कर रहे हैं. विरोधियों के पास केवल भ्रामक प्रचार ही सहारा है. केंद्र में यूपीए सरकार ने जो वादा किया है, वह पूरा किया. हम पूरे आत्मबल और विश्वास के साथ मैदान में जा रहे हैं.
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि कांग्रेस के विरोध में हवा है?
ऐसी कोई बात नहीं है. कांग्रेस केवल चुनाव ही नहीं लड़ती. चुनाव में वह विकास के साथ-साथ विचारधारा की लड़ाई भी लड़ती है. देश में जिस सेक्यूलर ताना-बाना के पक्ष में करोड़ों जनता खड़ी है, हम उनकी लड़ाई लड़ते हैं. कांग्रेस देश बचाने के लिए चुनाव लड़ रही है. भाजपा और दूसरे विरोधी दल ऐसी हवा बनाने की कोशिश करते हैं. चुनाव तक ऐसे लोग हवा-हवाई हो जायेंगे. हमने देश के लिए काम किया है. झारखंड में भाजपा कहीं नहीं टिकने वाली है.
क्षेत्रीय दल भी कांग्रेस के लिए चुनौती है, बात केवल भाजपा की नहीं है?
भारत संघीय ढांचे का देश है. लोकसभा चुनाव संकीर्ण दायरे में नहीं लड़ी जाती है. देश केंद्रीय एजेंडों पर चल रहा है. स्थानीय एजेंडे नहीं चलेंगे. झारखंड में क्षेत्रीय दलों के पास कहने के लिए कुछ नहीं है. स्थानीय एजेंडे के लिए विधानसभा चुनाव है. आज देश के सामने कई समस्याएं हैं. लोकसभा चुनाव में वही मुद्दे हैं. कांग्रेस व्यापक सोच के साथ चुनाव लड़ती है. कांग्रेस ने स्थानीय स्तर पर शासन को मजबूत करने के लिए कई संवैधानिक प्रावधान किये हैं. हमने पंचायत तक को मजबूत करने का काम किया है. स्थानीय निकाय के चुनाव के एजेंडे लोकसभा में लागू नहीं हो सकते हैं. जनता को भी पता है कि कौन सा अधिकार हमें कहां से मिलेगा.
चुनाव से पहले बड़े नेता पार्टी छोड़ कर चले गये. ददई दुबे, स्टीफन मरांडी जैसे लोग दूर हो गये ?
पार्टी में लोगों का आना-जाना लगा रहता है. बेशक पुराने लोगों के जाने से दु:ख होता है. परिवार के लोग जाते हैं, तो अच्छा नहीं लगता है. पार्टी में नीतियों-सिद्धांत के साथ रहना चाहिए. महज टिकट के लिए पुराने लोगों को पार्टी नहीं छोड़ना चाहिए. टिकट के लिए पार्टी छोड़ना अवसरवादिता कहलायेगा. मैं यह भी साफ कर दूं कि संगठन से बड़ा कोई नहीं है. कांग्रेस में बहुत ऐसे लोग हैं, जिन्हें जो मिलना चाहिए नहीं मिला. लेकिन वह नीतियों के साथ हैं और पार्टी से जुड़े हैं. कार्यकर्ता नेता बनते हैं. जनता से ताकत मिलती है. नेताओं को भ्रम छोड़ देना चाहिए कि वे संगठन से ऊपर हैं.
कांग्रेस ने झामुमो के साथ सरकार बनायी. सरकार बनाने का लाभ हुआ या नुकसान?
यह आकलन का समय नहीं है. अभी मैं इस सवाल पर तटस्थ हूं. परिणाम के बाद हम नफा-नुकसान का आकलन करेंगे. अभी इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता है.
झामुमो के साथ गंठबंधन का चुनाव में फायदा होगा ?
सफर में सहयोगी मिला है, तो अच्छा तो लगेगा ही. हम साझा लड़ाई लड़ रहे हैं. जहां तक गंठबंधन के फायदे-नुकसान की बात है, तो अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है. परिणाम के बाद ही कुछ कहा जा सकता है.
आपके अध्यक्ष बनते ही चुनौती मिली है. चुनाव बाद तो आपके नेतृत्व का भी मूल्यांकन होगा?
चुनौती मुङो अच्छी लगती है. विपरीत परिस्थितियों में ही आपकी क्षमता का आकलन होता है. मैं निष्ठा के साथ जवाबदेही निभा रहा हूं, परिणाम को लेकर चिंता नहीं करता. मैं मेहनत कर रहा हूं, पूरी शिद्दत से लगा हूं. मेरी मेहनत ही मेरी राजनीतिक पूंजी है. चुनाव बाद आप मूल्यांकन करते रहिए.
पूर्ववर्ती अध्यक्ष द्वारा खड़ा किये गये संगठन का लाभ मिला या फिर कोई कसर रह गयी थी?
बलमुचु हमारे सीनियर लीडर है. उन्होंने अपने दायित्व का निर्वहन किया है. कोई भी व्यक्ति अपने ढंग से संगठन बनाता है. उसे निभाता है. मुङो जो दायित्व मिला है, उसे निभा रहा हूं. मैं पार्टी के सिपाही की तरह काम कर रहा हूं. अपनी क्षमता से बेहतर करने का प्रयास कर रहा हूं. दूसरे के काम के मूल्यांकन से ज्यादा अपने काम पर फोक्स करता हूं.