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हेमंत की जमीन के मामले में डीसी से जवाब-तलब

सुप्रीम कोर्ट ने धनबाद के उपायुक्त से उस मामले में जवाब-तलब किया है, जिसमें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने सीएनटी एक्ट का उल्लंघन कर धनबाद जिले के गोविंदपुर में आदिवासी जमीन खरीदी है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता रमेश कुमार राही पर हाइकोर्ट द्वारा लगाये गये 50 हजार दंड को भी […]

सुप्रीम कोर्ट ने धनबाद के उपायुक्त से उस मामले में जवाब-तलब किया है, जिसमें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने सीएनटी एक्ट का उल्लंघन कर धनबाद जिले के गोविंदपुर में आदिवासी जमीन खरीदी है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता रमेश कुमार राही पर हाइकोर्ट द्वारा लगाये गये 50 हजार दंड को भी माफ कर दिया है. अदालत ने उपायुक्त को जवाब देने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है.

हाइकोर्ट ने सीएनटी का उल्लंघन कर जमीन खरीदे जाने के सिलसिले में दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया था. हाइकोर्ट ने इसे जनहित का मामला मानने से इनकार कर दिया था. इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी- सिविल 6992/2014) की सुनवाई जस्टिस केएस राधाकृष्ण और जस्टिस विक्रमजीत सेन की खंडपीठ में हुई.

रांची: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर सीएनटी एक्ट का उल्लंघन कर आदिवासी जमीन खरीदने का आरोप लगाया गया है. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कई जमीनों का विवरण देते हुए दावा किया गया है कि ये सभी जमीन हेमंत सोरेन ने खरीदी है. जमीन धनबाद जिले के गोविंदपुर में खरीदी गयी है. याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका के साथ जमीन की जो सूची शामिल की है, उसमें इस बात का जिक्र है कि हेमंत सोरेन के नाम से लगभग 5.29 एकड़ जमीन खरीदी गयी है. सीएनटी एक्ट के अनुसार, एक थाना क्षेत्र से बाहर का व्यक्ति आदिवासी की जमीन को नहीं खरीद सकता है.

याचिका में यह भी कहा गया है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जमीन का निबंधन सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य से कम पर कराया है. उदाहरण के रूप में 32 डिसमिल जमीन का खरीद मूल्य 75 हजार रुपये दिखाया गया है. याचिका के साथ शामिल सूची में कई और जमीन का उल्लेख है, जिसे हेमंत सोरेन के परिजनों के नाम पर होने का आरोप लगाया गया है. याचिकाकर्ता की दलील सुनने के बाद अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रभावशाली और बड़े लोगों द्वारा नियमों का उल्लंघन करने पर अदालत आंख बंद कर नहीं रह सकती है. अदालत ने इस मामले में धनबाद के उपायुक्त को दो सप्ताह के अंदर जवाब देने का आदेश दिया है. उन्हें अपने जवाब में यह बताना है कि क्या जमीन हस्तांतरण में काश्तकारी अधिनियम की धाराओं का उल्लंघन हुआ है.

सीएनटी एक्ट में क्या है प्रावधान
छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 में किसी भी जनजातीय आबादी (आदिवासी) के लिए उनकी भूमि की खरीद-बिक्री एक ही थाना क्षेत्र के तहत करने का प्रावधान है. इसके लिए भी संबंधित जिलों के उपायुक्त से जमीन विक्रेता को अनुमति लेनी होगी. अधिनियम की धारा 46 (बी) के अंतर्गत अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के रैयतों को भी उनकी जमीन बेचने के लिए संबंधित जिलों के उपायुक्तों से परमिशन लेना जरूरी है. राज्य में सितंबर 2010 के बाद से अधिनियम के प्रावधानों को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया गया है. कानून में इस बात का भी उल्लेख है कि आदिवासी जमीन के विक्रेता और क्रेता (खरीदार) को एक ही थाना क्षेत्र का निवासी होना जरूरी है. इतना ही नहीं, जमीन विक्रेता को यह साबित करना होगा कि उसे शिक्षा, चिकित्सा अथवा घर के निर्माण के लिए पैसों की सख्त जरूरत है. इसमें यह भी सन्निहित है कि जमीन विक्रेता को यह सुनिश्चित करना होगा कि जमीन की बिक्री के बाद उसके कब्जे में 2.5 एकड़ पुश्तैनी जमीन होना चाहिए. सेक्शन 46 में जमीन को लीज में देने का प्रावधान है, पर इसकी अवधि पांच वर्ष तक ही सीमित है. लीज दी गयी जमीन का उपयोग कृषि, बागवानी में किया जाना चाहिए.

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