रांची: टय़ूबरक्यूलोसिस (टीबी) या यक्ष्मा विश्व व्यापी रोग है. दुनिया भर में हर वर्ष 90 लाख (झारखंड में लगभग 22 हजार) लोग टीबी से ग्रसित होते हैं. वहीं इनमें से करीब 30 लाख लोगों का बेहतर इलाज नहीं हो पाता.
ऐसा उनकी पहचान व कारगर दवा की उपलब्धता न होने से होता है. इसलिए विश्व टीबी दिवस का नारा है-30 लाख लोगों को खोजना, उन्हें दवा देना तथा ठीक करना. दरअसल टीबी किसी भी आम या खास को हो सकती है. तभी तो एडोल्फ हिटलर जैसा ताकतवर भी इसकी चपेट में रहा था. यही नहीं नेल्सन मंडेला, स्वामी विवेकानंद, मो.अली जिन्ना, एलेक्जेंडर ग्राहम बेल, कमला नेहरू सहित फ्लोरेंस नाइटएंगल जैसे लोग भी कभी न कभी टीबी से पीड़ित रहे थे.
हिटलर व मंडेला ने टीबी से लड़ कर इस पर जीत हासिल की थी. आज डॉट्स प्रणाली के तहत टीबी का इलाज और आसान है. सरकार रिवाइज्ड नेशनल टय़ूबरक्यूलोसिस कंट्रोल प्रोग्राम (आरएनटीसीपी) के तहत नि:शुल्क दवा व बलगम जांच केंद्र का संचालन करती है. राज्य में 72 टीबी यूनिट, 300 बलगम जांच केंद्र व 19 हजार से अधिक डॉट्स प्रदाता कार्यरत हैं.
दो चिकित्सक सम्मानित
टीबी मुक्ति का प्रभावी कार्यक्रम चलाने के लिए दो जिला यक्ष्मा पदाधिकारियों को सम्मानित किया गया. अभियान निदेशक ने दुमका के डॉ ए सोरेन तथा साहेबगंज के डॉ एनएन पांडेय को मोमेंटो देकर सम्मानित किया.