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रैनबसेरे में लटका रहता है ताला
रोटी के लिए शहर में आकर दिन भर ताबड़तोड़ मेहनत करनेवाले गरीबों और बेसहारा लोगों को चौक-चौराहे और सड़क के फुटपाथ पर रात गुजारनी पड़ती है. काश! शहर में मेहनत-मजदूरी करने वाले गरीबों और असहाय लोगों को रैन बसेरे की सुविधा मिल पाती. हाजीपुर : काश। शहर में मेहनत-मजदूरी करने वाले गरीबों और असहाय लोगों […]
रोटी के लिए शहर में आकर दिन भर ताबड़तोड़ मेहनत करनेवाले गरीबों और बेसहारा लोगों को चौक-चौराहे और सड़क के फुटपाथ पर रात गुजारनी पड़ती है. काश! शहर में मेहनत-मजदूरी करने वाले गरीबों और असहाय लोगों को रैन बसेरे की सुविधा मिल पाती.
हाजीपुर : काश। शहर में मेहनत-मजदूरी करने वाले गरीबों और असहाय लोगों को रैनबसेरे की सुविधा मिल पाती. दो जून की रोटी के लिए शहर में आकर दिन भर ताबड़तोड़ मेहनत करने वाले गरीबों और बेसहारा लोगों को चौक-चौराहे और सड़क के फुटपाथ पर रात गुजारनी पड़ती है.
गरमी, बरसात और ठंडे के मौसम में गरीबों को आसरा देने वाले रैनबसेरे में नगर पर्षद को आर्थिक लाभ तो हो रहा है, लेकिन आश्रय विहीन लोग जहां-तहां खुले आसमान के नीचे बसर करने को बाध्य हैं. प्रशासनिक उदासीनता के कारण आलम यह है कि शहर के लोगों को पता भी नहीं चलता कि आखिर ये रैन बसेरे हैं कहां.
त्रिमूर्ति चौक पर रैन बसेरा, पर चलती हैं दुकानें : हाजीपुर शहर में 90 के दशक में रिक्शा-ठेला चालकों एवं गरीब व असहाय लोगों के लिए रैनबसेरे का निर्माण कराया गया था.
इसका उद्देश्य था कि दिनभर शहर में मजदूरी के बाद मजदूरों को रात में खुले आसमान के नीचे आसरा न लेना पड़े. निर्माण के कुछ साल बाद तक तो सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा, लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, प्रशासनिक उदासीनता के कारण रैनबसेरे का अस्तित्व समाप्त होता चला गया. शहर के त्रिमूर्ति चौक के निकट बने रैनबसेरे के नीचे दुकानें आवंटित कर दी गयी हैं. इसके ऊपर में लगभग 20 लोगों के रहने की जगह है, लेकिन इसमें हमेशा ताला लगा रहता है.
मेहनत-मजदूरी करनेवालों के समक्ष समस्या : दूसरी तरफ शहर में बाहर से आकर रिक्शा चलानेवाले, खोमचा लगानेवाले और मजदूरी करनेवालों को स्टेशन परिसर या चौक-चौराहे पर ही रात में शरण लेनी पड़ती है. शहर के अनवरपुर चौक के निकट भी एक रैनबसेरा बनाया गया था, लेकिन उसका वजूद अब इस रूप में नहीं रहा. इसमें नीचे दुकानें खुल गयीं और ऊपरी तल्ले में स्थानीय लोगों ने स्थायी रुप से कब्जा जमा लिया. हालांकि इसमें जिन लोगों ने अपना बसेरा बना लिया है, वे सब महादलित श्रेणी के हैं. यहां से उन्हें हटाना इसलिए संभव नहीं दिखता, क्योंकि उनके सामने पुनर्वास की समस्या खड़ी हो जायेगी.
सरकार ने किया था गरीबों के लिए सस्ते भोजन का वादा
तत्कालीन नगर विकास एवं आवास मंत्री सम्राट चौधरी ने घोषणा की थी कि रैनबसेरों में आश्रय लेनेवालों को सस्ती दर पर भोजन भी उपलब्ध कराया जायेगा. रैनबसेरे में बेड, बिछावन, कंबल और लॉकर की सुविधा के साथ सस्ता खाना मिलेगा ताकि मजदूरों को कमा कर लौटने के बाद चूल्हा नहीं जलाना पड़े. रैनबसेरों में बिजली और शौचालय की व्यवस्था भी होगी.
महिलाओं के लिए अलग रैनबसेरा बनाने की बात भी कही गयी थी. मंत्री की घोषणा के डेढ़ साल बीत गये, लेकिन हाजीपुर के एकमात्र रैनबसेरे में अभी तक शौचालय का निर्माण नहीं हुआ. बाकी सुविधाएं भी सिर्फ घोषणा में रह गयीं. हाजीपुर शहर में उन पर अमल होता नहीं दिख रहा.
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