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वेतन को छोड़, कैश कारोबार पर रोक

कार्रवाई. संवेदक को भुगतान नहीं करने के मामले में जिला कोषागार को किया गया सील एक संवेदक को भुगतान नहीं करने के मामले में असैनिक न्यायाधीश वरीय कोटि प्रथम दिलीप कुमार सिंह के न्यायालय द्वारा पारित आदेश के आलोक में गुरुवार को जिला कोषागार सील कर दिया गया. सुपौल : 27 साल पुराने एक मामले […]

कार्रवाई. संवेदक को भुगतान नहीं करने के मामले में जिला कोषागार को किया गया सील

एक संवेदक को भुगतान नहीं करने के मामले में असैनिक न्यायाधीश वरीय कोटि प्रथम दिलीप कुमार सिंह के न्यायालय द्वारा पारित आदेश के आलोक में गुरुवार को जिला कोषागार सील कर दिया गया.
सुपौल : 27 साल पुराने एक मामले में असैनिक न्यायाधीश वरीय कोटि प्रथम दिलीप कुमार सिंह के न्यायालय द्वारा पारित आदेश के आलोक में गुरुवार को जिला कोषागार सील कर दिया गया. इसके साथ ही वेतन मद के कार्यों को छोड़ अन्य किसी भी मद में कैश के कारोबार अथवा स्वीकृति पर रोक लगा दी गयी. मामला एक संवेदक को भुगतान नहीं करने से जुड़ा था. जिसमें टाइटल सूट संख्या 01/07 हरदेव सिंह बनाम बिहार सरकार द्वारा जिलाधिकारी सुपौल वगैरह में आदेश पारित किया गया.
यह आदेश न्यायालय द्वारा 13 फरवरी को निर्गत किया गया था. जिसमें स्पष्ट किया गया कि संवेदक हरदेव सिंह कंस्ट्रक्शन को एक करोड़ छह लाख 56 हजार 213 रुपये भुगतान करने तक कोषागार सील रहेगा. गौरतलब है कि संवेदक को राज्य सरकार द्वारा कुनौली में जल संसाधन विभाग के कार्य के बदले 16 लाख रुपये के भुगतान का आदेश हुआ था. लेकिन लंबे समय तक राशि भुगतान नहीं करने के बाद संवेदक हरदेव सिंह द्वारा अधिकार वाद संख्या 14/1990 दायर किया गया. जिसमें न्यायालय द्वारा 20 जून 2006 को संवेदक को 36 लाख 45 हजार 20 रुपये सहित ब्याज की अतिरिक्त राशि भुगतान का आदेश दिया गया था. न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि दो माह के अंदर राशि का भुगतान करने की स्थिति में 19 अप्रैल 1991 से भुगतान की तिथि तक में 06 फीसदी ब्याज भुगतान करना होगा. वही दो माह की तिथि बीत जाने की स्थिति में ब्याज दर 09 फीसदी हो जायेगा.
16 लाख के बदले अब एक करोड़ का होगा भुगतान : 27 साल बाद आये इस फैसले से कोर्ट की ओर से जहां संवेदक पक्ष में खुशी व्याप्त है. वही सरकारी पक्ष एक बार फिर मामले की काट तलाशने में जुटा हुआ है. दरअसल सरकार के लिए परेशानी की बात यह है कि स्वयं सरकार द्वारा ही सर्वप्रथम कार्य के लिए संवेदक को 16 लाख रुपये के भुगतान का आदेश जारी किया गया था. लेकिन भुगतान में देरी की वजह से संवेदक ने न्यायालय का शरण लिया और फिर यह राशि 36 लाख के पार हो गयी.
लेकिन एक बार फिर जब सरकारी पक्ष उच्च न्यायालय पहुंचा तो उसकी उम्मीदों को झटका लगा. जबकि 13 फरवरी को आये न्यायालय के फैसले के बाद सरकार की परेशानी बढ़ गयी है. व्यवहार न्यायालय की ओर से यह इस प्रकार का पहला कड़ा फैसला है. जिसमें वेतन भुगतान संबंधी कार्य मात्र के लिए कोषागार को छूट दी गयी है.
जबकि शेष सभी कार्य 01 करोड़ 06 लाख 56 हजार 213 रुपये का भुगतान करने तक लंबित रहेंगे. विशेष तौर पर मार्च क्लोजिंग को देखते हुए न्यायालय का यह फैसला सरकार की परेशानी बढ़ाने वाला है. गौरतलब है कि सरकारी पक्ष की ओर से जीपी नारायण कामत मामले की पैरवी कर रहे थे. जबकि डिग्रीदार पक्ष की ओर से अधिवक्ता ब्रजेश कुमार सिंह थे. श्री सिंह ने न्यायालय के इस फैसले का स्वागत किया है. गुरुवार को ही आशय से संबंधित नोटिस कोषागार में चिपका दिया गया है. साथ ही नोटिस की प्रति कार्यालय कर्मियों को दे दी गयी है.
उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी याचिका
वर्ष 2006 में असैनिक न्यायाधीश वरीय कोटि चतुर्थ द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध जिला प्रशासन ने सरकार की ओर से उच्च न्यायालय में परिवाद दायर कर दिया. लेकिन उच्च न्यायालय ने सरकार की इस पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया और व्यवहार न्यायालय के आदेश को कायम रखते हुए संवेदक को राशि भुगतान करने को कहा. बावजूद सरकार की ओर से टालमटोल का रवैया जारी रहा. नतीजा रहा कि परिवादी संवेदक ने एक बार फिर असैनिक
न्यायाधीश वरीय कोटि प्रथम के न्यायालय में परिवाद संख्या 01/07 दाखिल कर दिया. मामले में दोनों पक्षों की ओर से दलील सुनने के बाद न्यायालय ने यह फैसला सुनाया. हालांकि इससे पूर्व गत वर्ष भी कोर्ट द्वारा नोटिस जारी किया गया था. लेकिन इसके बावजूद अपेक्षित कार्रवाई नहीं होने के कारण यह कड़ा फैसला सुनाया गया.

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