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मध्यमवर्गीय की बढ़ी परेशानी

शिक्षा एवं शैक्षणिक संस्थानों की चकाचौंध में आज के बच्चे व अभिभावक पिस रहे हैं. अभिभावक अपने बच्चों को शिक्षित व संस्कारित कराने के लिये जान की बाजी लगा दे रहे हैं. वहीं कम उम्र के बच्चों की पीठ पर लदे किताबों के बढ़ते बोझ ने आम लोगों व बुद्धिजीवियों को चिंतित कर रखा है. […]

शिक्षा एवं शैक्षणिक संस्थानों की चकाचौंध में आज के बच्चे व अभिभावक पिस रहे हैं. अभिभावक अपने बच्चों को शिक्षित व संस्कारित कराने के लिये जान की बाजी लगा दे रहे हैं. वहीं कम उम्र के बच्चों की पीठ पर लदे किताबों के बढ़ते बोझ ने आम लोगों व बुद्धिजीवियों को चिंतित कर रखा है.
सुपौल : आधुनिक शिक्षा व्यवसायीकरण का स्वरूप ले चुका है. जिस कारण शिक्षा एवं शैक्षणिक संस्थानों की चकाचौंध में आज के बच्चे व अभिभावकगण पिस रहे हैं. एक तरफ जहां अधिकांश संस्थानों द्वारा अनुशंसित किताबें एवं स्टेशनरी बच्चों को उपलब्ध करवाने की आवश्यकता आज के अभिभावकों की विवशता बन गयी है.
आलम यह है कि छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं या संस्थानों के संचालकों द्वारा शिक्षा का व्यवसायीकरण किया जा रहा है, यह अभिभावकों एवं आम लोगों के समझ से परे हैं. यह अलग बात है कि अभिभावक अपने बच्चों को शिक्षित व संस्कारित कराने के लिये जान की बाजी लगा दे रहे हैं. वहीं कम उम्र के बच्चों की पीठ पर लदे किताबों के बढ़ते बोझ ने आम लोगों व बुद्धिजीवियों को चिंतित कर रखा है.
कमीशन के खेल में पिस रहे अभिभावक : सीबीएसइ मान्यता प्राप्त सहित अन्य शिक्षण संस्थानों में एनसीइआरटी पैटर्न पर ही विभिन्न कंपनियों की किताबें ऊंची कीमत की रहती है. जो सामान्य एवं मध्यम वर्गीय अभिभावकों के बूते से बाहर है. जबकि सरकारी स्तर पर एनसीइआरटी किताबों की कीमत सामान्य रहती है. शिक्षण संस्थानों द्वारा कुछ खास बुक स्टॉल से ही किताबें एवं स्टेशनरी खरीदने का दबाव अभिभावकों पर रहता है. कुछ शिक्षण संस्थान अपने स्तर से ही किताबों एवं स्टेशनरी छात्रों को देते हैं, इसके बदले मनमाफिक राशि की वसूली की जाती है. बुक स्टॉल के मालिक द्वारा संबंधित शिक्षण संस्थान के संचालकों को 30 प्रतिशत का कमीशन दिया जाता है. इसका बोझ सीधे अभिभावकों की जेब पर पड़ता है. स्कूल फीस, किताबों, स्टेशनरी एवं विभिन्न मदों में राशि की उगाही अभिभावकों के लिये सर दर्द बनी है.
बच्चों के लिये अभिभावक लाचार : किताबों और स्टेशनरी की बढ़ती कीमत के सामने अभिभावक लाचार बने हुए हैं. बच्चों की खुशी एवं ज्ञानवान बनाने की चाह ने अभिभावकों को हर कष्ट सहने को मजबूर कर दिया है. पेशे से भुजा व्यवसायी वार्ड नंबर तीन निवासी अनिल कुमार ने कहा कि बच्चों को बेहतर शिक्षा देना जरूरी है. शिक्षण संस्थान प्रबंधन द्वारा जो सुझाव दिये जाते हैं, उस पर अमल करना भी मजबूरी है.
वार्ड नंबर पांच निवासी अभिभावक राजेश कुमार ने कहा कि बच्चों को ज्ञानावान बनाना आज के दौर में आवश्यक है. ऐसे में शिक्षण संस्थान बच्चों के हित में कोई सुझाव या आवश्यक शिक्षण सामग्री खरीदने के लिये लिस्ट थमाता है, तो मजबूरी में लिस्ट के अनुसार सामान की खरीद करनी पड़ती है. वार्ड नंबर 13 निवासी राजेंद्र कुमार ने कहा कि कमीशन के खेल से शिक्षण संस्थान भी अछूता नहीं है. यह शिक्षा के व्यवसायी करण का सबूत है. वार्ड नंबर 06 निवासी महेश्वरी यादव ने कहा कि निजी शिक्षण संस्थानों पर हर स्तर से नकेल कसना सरकार का काम है, अभिभावकों को शोषण रोकने के लिये प्रशासन व सरकार को उचित कदमउठाना चाहिये.

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