अनदेखी. धान अधिप्राप्ति घोटाले में अधिकारियों ने साध रखी थी चुप्पी
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साल दर साल होते रहे घोटाले
अनदेखी. धान अधिप्राप्ति घोटाले में अधिकारियों ने साध रखी थी चुप्पी राज्य सरकार द्वारा ग्राम पंचायत स्तर पर पैक्स के माध्यम से धान अधिप्राप्ति की योजना बनायी गयी थी. लेकिन अधिकारियों की इस योजना पर गिद्ध दृष्टि के कारण योजना लूट खसोट की योजना बन कर रह गयी. सुपौल : राज्य सरकार द्वारा किसानों के […]
राज्य सरकार द्वारा ग्राम पंचायत स्तर पर पैक्स के माध्यम से धान अधिप्राप्ति की योजना बनायी गयी थी. लेकिन अधिकारियों की इस योजना पर गिद्ध दृष्टि के कारण योजना लूट खसोट की योजना बन कर रह गयी.
सुपौल : राज्य सरकार द्वारा किसानों के खून पसीने से उपजाये गये फसल का समर्थन मूल्य घोषित कर ग्राम पंचायत स्तर पर पैक्स के माध्यम से धान अधिप्राप्ति की योजना बनायी गयी थी. लेकिन जिले के अधिकारियों की इस योजना पर गिद्ध दृष्टि के कारण कृषकों के हित की यह योजना लूट खसोट की योजना बन कर रह गयी. सरकार की इस महत्वपूर्ण योजना का किसानों को कोई लाभ नहीं मिल सका.
जबकि बिचौलिया, माफिया मिलर और अधिकारी इस योजना का बेड़ा गर्क कर रातोंरात मालामाल हो गये.धान अधिप्राप्ति की योजना के प्रारंभ वर्ष 2011 से लेकर 2015 तक प्रत्येक वर्ष अधिप्राप्ति के दौरान लगातार करोड़ों रुपये का घोटाला होता रहा और संबंधित अधिकारी इस पर अंकुश लगाने के बजाय खुद नोट बटोरने में लगे रहे. वित्तीय वर्ष 2011 से लेकर अब तक हुए करीब 100 करोड़ रुपये के घोटाले के मामले में जिले के संबंधित थानों में 39 प्राथमिकी दर्ज किये गये हैं. धान अधिप्राप्ति घोटाले में शामिल 42 आरोपियों के विरुद्ध नीलाम पत्र वाद दायर किया जा चुका है.वहीं इस पूरे प्रकरण में अब तक मात्र एक आरोपी की गिरफ्तारी होने से पुलिस के अनुसंधान पर भी सवाल उठ रहे हैं.
साल दर साल होते रहे घोटाले, कहां थे अधिकारी : चार वर्षों तक लगातार मिलर माफियाओं द्वारा करोड़ों रुपये के धान घोटाले को अंजाम दिया जाता रहा.जबकि इस योजना के क्रियान्वयन एवं निगरानी के लिए जवाबदेह अधिकारी इस दौरान चुप्पी साधे रहे.जो इस घोटाले में उनकी संलिप्तता को दर्शाता है.इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा किसानों को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाने एवं योजना की निगरानी के लिए जिला स्तर पर एक सशक्त कमेटी का भी गठन किया गया था.
इन सबके बावजूद घोटालेबाजों ने इतनी बड़ी सरकारी राशि के घोटाले को अंजाम दिया.सूत्रों की मानें तो विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से हुए इन तमाम घोटालों में उनकी संलिप्तता थी.मिलर माफिया खुद तो इस योजना में लूट खसोट कर मालामाल हुए ही अधिकारियों को भी लाभान्वित किया गया. यही वजह है कि इस दौरान ना केवल विभागीय अधिकारी चुप्पी साधे रहे बल्कि घोटालेबाजों को उनका भरपूर सहयोग व संरक्षण भी प्राप्त हुआ. अधिकारी व कर्मियों की मिलीभगत से जिला राज्य खाद्य निगम के कार्यालय से कई महत्वपूर्ण फाइल गायब हो चुके हैं.
योजना के प्रारंभ में ही रखी गयी घोटाले की नींव
आजादी के सात दशक बीत जाने के बावजूद उद्योग का दर्जा मिलने से वंचित कृषि क्षेत्र के उद्धार के लिए राज्य सरकार की महत्वपूर्ण योजना धान अधिप्राप्ति के लागू होते ही भ्रष्टाचारियों ने इस योजना को हाईजेक कर लिया.योजना के प्रारंभ में ही अधिकारी, मिलर माफियाओं के गंठजोड़ से घोटाले की नींव रखी जा चुकी थी.वित्तीय वर्ष 2011-12 के दौरान पहली बार हुए धान अधिप्राप्ति के क्रम में 18 करोड़ 50 लाख रुपये के घोटाले को अंजाम दिया गया.
हालांकि घोटाले के कुछ दिन बाद ही इन लोगों की कलई खुल गयी और करोड़ों रुपये के इस घोटाले को लेकर तत्काल जिला पदाधिकारी के आदेश पर जिले के विभिन्न थानों में 15 मिलरों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करवायी गयी. लेकिन घोटालेबाजों ने इससे कोई सबक नहीं लिया और पुन: वित्तीय वर्ष 2012-13 के दौरान धान अधिप्राप्ति के क्रम में एक कदम आगे बढ़ते हुए इस बार 29 करोड़ 87 लाख रुपये का गबन किया गया.इस मामले में सड़क से लेकर सदन तक जांच की मांग उठने के बाद पुन: प्रशासन ने 18 प्राथमिकी दर्ज करवायी.वित्तीय वर्ष 2013-14 के दौरान धान अधिप्राप्ति के क्रम में पुन: 19 करोड़ 20 लाख रुपये के घोटाले को अंजाम दिया गया.इस मामले में जिला प्रशासन के आदेश पर छह प्राथमिकी दर्ज करवायी गयी.
39 प्राथमिकी, गिरफ्तारी सिर्फ एक
मिलर माफिया और राज्य खाद्य निगम के जिला कार्यालय के अधिकारियों एवं कर्मियों की मिलीभगत का ही नतीजा है कि इतने बड़े घोटाले में सिर्फ एक आरोपी की गिरफ्तारी हो पायी है.जिले के विभिन्न थानों में धान अधिप्राप्ति के दौरान हुए घोटाले को लेकर कुल 39 प्राथमिकी दर्ज करायी गयी थी.
इन सभी मामलों में चार दर्जन से अधिक लोगों को आरोपी बनाया गया था.लेकिन विभागीय अधिकारियों के संरक्षण और पैरवी तथा पहुंच के दम पर पुलिसिया जांच को भी शिथिल कर दिया गया.चार वर्षों के दौरान पुलिस की कार्रवाई एक गिरफ्तारी के बाद आगे नहीं बढ़ सकी और आरोपियों को बच निकलने का भरपूर मौका दिया गया.हालांकि अब आर्थिक अपराध इकाई पटना द्वारा कार्रवाई प्रारंभ किये जाने के बाद लोगों में यह उम्मीद जगी है कि किसानों के मुंह से निवाला छीनने वाले घोटालेबाज सलाखों के पीछे पहुंच सकेंगे.
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