शुरू नहीं हुआ कटाव निरोधी कार्य
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सूरत-ए-हाल . फिर तबाही के डर से चिंतित हैं कोसी तटबंध के भीतर बसे लोग
शुरू नहीं हुआ कटाव निरोधी कार्य प्रति वर्ष कोसी की विभीषिका झेलना बनी कोसीवासियों की नियति सुपौल : नदियों से जल और जल से जीवन. पर, जीवन देने वाली नदियां और इनका जल कभी-कभी इनसानों के लिए दुखदायी भी सिद्ध होता है. हम बात कर रहे हैं हिमालय से निकलने वाली कोसी नदी की, जो […]
प्रति वर्ष कोसी की विभीषिका झेलना बनी कोसीवासियों की नियति
सुपौल : नदियों से जल और जल से जीवन. पर, जीवन देने वाली नदियां और इनका जल कभी-कभी इनसानों के लिए दुखदायी भी सिद्ध होता है. हम बात कर रहे हैं हिमालय से निकलने वाली कोसी नदी की, जो सदियों से कोसी के इस इलाके में व्यापक रूप से तबाही मचाती रही है. यही वजह है कि इस नदी को बिहार का शोक भी कहा गया है.
इस नदी की वजह से प्रत्येक वर्ष जिले के एक तिहाई भाग में बसी लाखों की आबादी उजड़ती, बिखरती, डूबती और फिर उभरती रही है. मानसून सत्र के समाप्ति के बाद एक बार फिर नयी उम्मीदों के साथ जिंदगी की शुरुआत होती है. नये आशियाने बनते हैं, लेकिन दिलों में खौफ बना रहता है कि अगले वर्ष फिर इस भयानक तबाही के दौर से गुजरना पड़ेगा.
छह प्रखंडों के 130 गांव हैं प्रभावित
जिले के कोसी तटबंध के भीतर स्थित छह प्रखंडों की 36 पंचायतें एवं इन पंचायतों के 130 गांवों में बसी करीब डेढ़ लाख की आबादी की यही कहानी है. प्रत्येक वर्ष कोसी नदी के बाढ़ व कटाव की विभीषिका झेलनी इनकी नियति बन चुकी है. सरकारें बदलती रहीं, जिले के अन्य भागों में विकास के नित नये आयाम गढ़े जाते रहे.
पर, कोसी तटबंध के भीतर बसी लाखों की आबादी को अपने हाल पर छोड़ दिया गया है. सरकारी तंत्र एवं जनप्रतिनिधियों को मानो इन लोगों की तनिक भी चिंता नहीं है. तबाही के दौरान एक क्विंटल अनाज व चंद रुपये देकर प्रशासनिक पदाधिकारी भी अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं. उसके बाद बाढ़ व कटाव से विस्थापित परिवारों को अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है.
75 हजार हेक्टेयर भूमि है प्रभावित
कोसी तटबंध के भीतर बसे जिले के 130 गांवों में करीब 75 हजार हेक्टेयर भूमि कोसी से प्रभावित है. बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के गरीब किसान हर वर्ष काफी मेहनत व मशक्कत के बाद खाली पड़ी जमीन में फसल लगाते हैं. पर, बाढ़ न सिर्फ इन फसलों को, बल्कि कोसी पीड़ित किसानों के अरमान भी साथ बहा ले जाती है. पानी के साथ आने वाले गाद व बालू के कारण खेत रेत की वजह से बंजर हो जाते हैं. इससे किसानों के समक्ष भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
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