प्रताप : गंज मानव जब तक अपनी चेतना को सांसारिक प्रवृत्ति से अलग कर ज्ञानेन्द्रियों को जागृत नहीं करेगा. तब तक बाहरी विकारों पर काबू नहीं पा सकेगा. प्राणी काम, क्रोध, लोभ, मोह, घृणा, ईर्ष्या, मद व हिंसा ऐसा विकार है. जिससे मानव जीवन पूर्ण रूप से प्रभावित हो रहा है.
यह बातें मुख्यालय बाजार स्थित आयोजित दो दिवसीय संतमत को संबोधित करते हुए महर्षि मेंही आचार्य हरिनंदन बाबा ने कही. आचार्य ने कहा कि परमात्मा सर्वव्यापी है. सभी धर्मों और पंथों का एक ही ईश्वर है. स्थान विशेष व भाषाई भिन्नता के कारण अलग – अलग धर्मों का नामाकरण हुआ है. जिस कारण विविध धर्मों की उपासना की जाती रही है.
लेकिन सभी का क्रिया एक परमात्मा की प्राप्ति ही है. आचार्य ने बताया कि मानव जीवन दुखों का जंजाल है. उसे दैहिक, दैविक व भौतिक तापो का सामना करना पड़ता है. बताया कि प्राणी ही संतों के बताये गये मार्ग का अनुसरण कर मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं. कहा कि जो मानव अपनी भक्ति व साधना के बल पर तप हासिल कर लेते हैं. वहीं संत कहलाते है. कहा कि परमात्मा इतना सूक्ष्मादि सूक्ष्म है कि उसे बाहरी इंद्रियां नहीं देख पाती है और ना ही समझ पाती है.
परमात्मा के अद्भुत मार्ग के भेद को समझ पाने के लिए सत्संग आवश्यक है. आचार्य ने बताया कि प्राणी को मरने का भय सताता है. बताया कि अंत समय में मनुष्य के शरीर के नौ द्वारों में से किसी एक द्वार द्वारा प्राण जबरन निकलवाया जाता है. बताया कि संतों की वाणी में कही गयी है कि दुखों से मुक्ति हेतु हमें भक्ति का मार्ग अपनाना चाहिए.
संत मत को स्वामी निर्मलानंद जी महाराज, श्याम नंदन बाबा, अशोक बाबा आदि ने मानव जीवन से संबंधित तथ्यों पर विस्तार पूर्वक चर्चा किया. कार्यक्रम को सफल बनाने में रमण कारक, विंदेश्वरी कारक, दिलीप भगत, किशोर महतो, रमेश प्रसाद यादव, बिजेंद्र लाल दास सहित अन्य का सहयोग सराहनीय रहा है.