सुपौल : कोसी के इलाके में विकास का कारवां दशकों से गढा जा रहा है. सड़क, बिजली हो या शिक्षा, स्वास्थ्य या फिर मनरेगा के तहत हो रहे गांव का समुचित विकास. इन सबके बावजूद सदर प्रखंड स्थित हजारों की आबादी वाला कर्णपुर गांव के लोग एक अदद नाला निर्माण के लिए तरस रहे हैं.
ग्रामीणों द्वारा कई बार पंचायत प्रतिनिधियों से इस समस्या के समाधान करने की दिशा में पहल किये जाने का अनुरोध किया गया. बावजूद इसके नाला की समस्या से लोगबाग जूझते हैं. आलम यह है कि काफी सघन बस्ती रहने के कारण पानी की निकासी नहीं हो पा रही है.
इस कारण सड़क के आसपास जलजमाव हो जाता है और उक्त जमाव से निकल रहे सड़ांध से लोगों में तरह-तरह की बीमारी पनपने की आशंका बनी रहती है.संभ्रांत गांव माना जाता रहा है कर्णपुर जिला मुख्यालय से चार किलोमीटर की दूरी पर बसा तकरीबन दस हजार की आबादी वाला कर्णपुर को संभ्रांत गांव माना जाता है. इस गांव में तकरीबन सभी जाति के लोग निवास कर अपनी परिवार की गाड़ी चला रहे हैं. यहां उच्च वर्ग की संख्या काफी है.
संभ्रांत गांव होने का एक और कारण यह था कि स्वतंत्रता सेनानी सह सरकार में कैबिनेट स्तर के अहम पद पर सुशोभित रहे स्व लहटन चौधरी व स्व चंद्र किशोर पाठक आदि जैसे देश के सच्चे सपूतों का गांव रहा है. साथ ही गांव से होकर कर्णपुर – राजनपुर व सुपौल – सहरसा पथ भी गुजरती है. इस कारण आवागमन की सुविधा भी ठीकठाक ही मानी जा रही है. आजादी के बाद प्राथमिकता के आधार पर इन लोगों द्वारा गांव सहित आस पास के क्षेत्रों में बिजली, स्वास्थ्य, उच्च विद्यालय व अंतर स्नातक महा विद्यालय का संचालन कराया गया, ताकि लोगों को किसी प्रकार के कठिनाई का सामना ना करनी पड़े.
पर, कतिपय कारणों से अब तक उच्च विद्यालय कर्णपुर व जगन्नाथ मिश्र इंटर महाविद्यालय का सरकारी करण नहीं हो पाया है. 1990 के बाद स्थिति में हुआ बदलाव 1990 में सरकार के बदलने के साथ ही जातिगत समीकरण उभरने लगा. जिस कारण कई गांवों में विकास का राजनीति पर जातिगत समस्या पनपने लगा.
ग्रामीणों का कहना है कि दस हजार से अधिक की आबादी वाले गांव के समीप इंटर कॉलेज का सरकारीकरण तो दूर गांव में संचालित उच्च विद्यालय को भी मंजूरी नहीं मिली है. इस कारण इस गांव की छात्र व छात्राओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने को लेकर चार – पांच किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ रही है. यहां तक कि एक होम्यो औषधालय भी संचालित था, जिसे विभाग ने जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल में शिफ्ट कर दिया है.
इस कारण मरीजों को छोटे – छोटे उपचार को लेकर या तो झोला छाप डॉक्टर या फिर पांच किलोमीटर की दूरी नापने की विवशता होती है. उदासीन है पंचायती व्यवस्था पंचायती राज व्यवस्था के सक्रिय होने के साथ ही लोगों ने गांव के समुचित विकास होने का सपना देखा. दशकों पूर्व पंचायत मद से कर्णपुर गांव में एक नाला का निर्माण कराया गया,
लेकिन संवेदक द्वारा बिना ढक्कन के नाला बनाये जाने के कारण नाला जाम हो गया. स्थिति यह है कि बनाये गये नाले का ससमय रख रखाव व मरम्मत नहीं कराये जाने के कारण अब नाला का अवशेष भी नहीं दिख रहा है. ग्रामीणों ने बताया कि जब से पंचायती राज व्यवस्था द्वारा इस पंचायत के मुखिया सहित कुछ वार्ड को आरक्षित सीट में तब्दील कर दिया गया है. पंचायत प्रतिनिधि द्वारा विकासात्मक कार्य में अनदेखी की जा रही है.
इस कारण लाखों की लागत से निर्माण कराये गये नाले का रख रखाव के मसले पर स्थानीय जन प्रतिनिधि द्वारा रुचि नहीं ली गयी और सरकारी राजस्व की क्षति हुई है.नाला निर्माण को लेकर पहुंचे दरबार नाला की समस्या से आजिज होकर कर्णपुर निवासी नितेश कुमार झा ने गुरुवार को समाहरणालय में आयोजित जनता दरबार में गांव की स्थिति से अवगत कराते हुए लिखित आवेदन सौंपा. आवेदन में नाला की समस्या के बारे में बताया गया है.
श्री झा ने बताया है कि कर्णपुर काफी सघन बस्ती वाला गांव है. उन्होंने डीएम से स्वयं जांच कर नाला निर्माण कराये जाने की दिशा में पहल करने का अनुरोध किया है.