बसंतपुर : प्रखंड क्षेत्र के किसानों की हजारों हेक्टेयर भूमि कुसहा त्रासदी में समा जाने के बाद से अब तक रेत की परत जमी हुई है. किसानों द्वारा खेत को उपजाऊ बनाने को लेकर काफी मशक्कत की गयी. क्षेत्र के किसानों ने अपेक्षा पाल रखी थी कि सरकारी प्रयत्न से लोग खुशहाल जीवन व्यतीत करेंगे. पर, सरकारी राहत अनुदान किसानों के लिए ‘ऊंट के मुंह में जीरा का फोरन ‘ चरितार्थ कर रहा है.
अधिकांश स्थानीय किसान कृषि कार्य से विमुख होकर जीविकोपार्जन के लिए बाहरी प्रदेश को पलायन कर रहे हैं.खेत ऊंचा, नहर नीचा कृषि कार्य को लेकर सरकार द्वारा नहरों के माध्यम से छह लाख हेक्टेयर खेतों में सिंचाई उपलब्ध कराने का दावा किया गया था. यह सरकारी दावा विभागीय फाइलों तक सिमटता नजर आ रहा है.
आलम है कि वर्तमान समय में प्रवाहित नहर के अपेक्षा सभी खेतों की स्थिति ऊंची है. जिस कारण किसानों के लिए नहरों से सिंचाई करना बेेमानी साबित हो रहा है. ऐसे में प्राकृतिक मार झेल रहे किसानों द्वारा की गयी ऋण लेकर किये गये धान व आलू की खेती ने चिंता बढ़ा दी है. मौसमी खेती पर निर्भर हैं किसान प्रखंड क्षेत्र के किसानों की आजीविका का साधन मौसमी खेती है. विभाग की मानें, तो इस बार अन्य वर्षों की भांति 27 प्रतिशत बारिश कम होने का अनुमान लगाया गया है. 15 जून से 15 अक्तूबर तक बाढ़ अवधि मानी जाती है. साथ ही किसानों ने उम्मीद जतायी थी कि हथिया नक्षत्र के बारिश से फसल में सुधार आ जायेगा.
पर, किसानों को इस नक्षत्र में भी हताशा हाथ लगी है. आलम है कि खेतों में लगी धान की फसल या तो सूख रही है या फिर पीली पड़ रही है. कहते हैं किसान किसान महेंद्र यादव, राम जी मंडल, युगल यादव, बिंदेश्वरी सादा, कामता प्रसाद आदि ने बताया कि क्षेत्र के किसानों द्वारा कई स्रोतों से खेतों में धान की रोपाई की गयी है. बताया कि इस क्षेत्र की अधिकांश भूमि ऊंची है. नहर का खेत से काफी नीचे होने के कारण पटवन का कार्य नहीं कराया जा सकता.
सरकारी नलकूप भी किसानों के लिए सफेद हाथी की तरह साबित हो रहे हैं. विभाग द्वारा पटवन को लेकर किसानों को अनुदान उपलब्ध कराये जाने की घोषणा भी की गयी, लेकिन किसानों के लिए यह अनुदान छलावा साबित हो रहा है. एक तरफ जहां किसानों को ऋण चुकाने को लेकर व्यथित हैं. वहीं गेंहू व मक्का की खेती किये जाने को लेकर चिंता सता रही है. किसान भिखो मेहता ने बताया कि सरकार द्वारा किसानों को उन्नत बीज, खाद व सरकारी सहायता ससमय उपलब्ध करायी जाये. साथ ही हरेक फसल के बाद मिट्टी की जांच करायी जाये तो इस क्षेत्र के किसानों का भला हो सकता है.